"प्रतिष्ठा": अवतरणों में अंतर

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== संस्कृत साहित्य में ==
संस्कृत साहित्य में प्रतिष्ठा के संबंध में रामायण, महाभारत आदि महाख्यानों से लेकर नीतिग्रंथों औ्र शास्त्रों में विभिन्न तरह की धारणाएं मिलती हैं। यह एक ओर प्रगति का स्रोत माना गया है तो कई लोगों द्वारा इसे अवनती के स्रोत के रूप में भी चिन्हित किया है। "प्रतिष्ठा शूकरोविष्ठा" अर्थातकी धारणा के अनुसार मात्र सम्मान पाने के दृष्टिकोण से किया गया काम सुअर के मल के समान होता है| इसहै। प्रकारऐसी 'प्रतिष्ठा' की आकांक्षा अपने आप में व्यर्थ और अपवित्र परिणाम मूलक होताहोती है|है।