"ग़ज़ल": अवतरणों में अंतर

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== स्वरूप ==
ग़ज़ल एक ही [[बहर]] और [[वज़न]] के अनुसार लिखे गए शेरों का समूह है। इसके पहले [[शेर]] को मतला कहते हैं। ग़ज़ल के अंतिम शेर को मक़्ता कहते हैं। मक़्ते में सामान्यतः [[शायर]] अपना नाम रखता है। आम तौर पर ग़ज़लों में शेरों की विषम संख्या होती है (जैसे तीन, पाँच, सात..)।<ref name='निर्देशिका'>{{cite book|title=ग़ज़ल निर्देशिका|author=आर॰पी॰सिंह 'महर्षि'|editor=यश खन्ना 'नीर'|publisher=तारिका प्रकाशन|location=अम्बाला छावनी|pages=13-15}}</ref>
ग़ज़ल एक ही [[बहर]] और [[वज़न]] के अनुसार लिखे गए शेरों का समूह है। इसके पहले [[शेर]] को [[मत्तला]] कहते हैं जो हम [[काफिया]] और हम [[रदीफ]] या हम काफिया होते हैं। जिस शेर में [[शायर]] अपना नाम रखता है उसे [[मख़ता]] कहते हैं। ग़ज़ल के सबसे अच्छे शेर को [[शाहे वैत]] कहा जाता है। । एक ग़ज़ल में 5 से लेकर 25 तक शेर हो सकते हैं। ये शेर एक दूसरे से स्वतंत्र होते हैं। किंतु कभी-कभी एक से अधिक शेर मिलकर अर्थ देते हैं। ऐसे शेर [[कता]] बंद कहलाते हैं। ग़ज़लों के ऐसे संग्रह को [[दीवान]] कहते हैं जिसमें हर हर्फ से कम से कम एक ग़ज़ल अवश्य हो। उर्दू का पहला दीवान शायर [[कुली कुतुबशाह]] है।
एक ग़ज़ल में 5 से लेकर 25 तक शेर हो सकते हैं। ये शेर एक दूसरे से स्वतंत्र होते हैं। कभी-कभी एक से अधिक शेर मिलकर अर्थ देते हैं। ऐसे शेर [[कता]] बंद कहलाते हैं।
 
ग़ज़ल के शेर में तुकांत शब्दों को [[क़ाफ़िया]] कहा जाता है और शेरों में दोहराए जाने वाले शब्दों को रदीफ़ कहा जाता है। शेर की पंक्ति को मिस्रा कहा जाता है। मतले के दोनों मिस्रों में काफ़िया आता है और बाद के शेरों की दूसरी पंक्ति में काफ़िया आता है। रदीफ़ हमेशा काफ़िये के बाद आता है। रदीफ़ और काफ़िया एक ही शब्द के भाग भी हो सकते हैं, और बिना रदीफ़ का शेर भी हो सकता है जो काफ़िये पर समाप्त होता हो।<ref name='निर्देशिका'/>
 
ग़ज़ल के सबसे अच्छे शेर को शाहे वैत कहा जाता है। ग़ज़लों के ऐसे संग्रह को [[दीवान]] कहते हैं जिसमें हर हर्फ से कम से कम एक ग़ज़ल अवश्य हो। उर्दू का पहला दीवान शायर [[कुली कुतुबशाह]] है।
 
== ग़ज़ल के प्रकार ==
"https://hi.wikipedia.org/wiki/ग़ज़ल" से प्राप्त