"केशवदास": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Self Portrait of Keshav Das.jpg|right|thumb|300px|केशव का स्वचित्रण (१५७० ई)]]
 
'''केशव''' या '''केशवदास''' (जन्म (अनुमानत:) 1555 विक्रमी और मृत्यु (अनुमानत:) 1618 विक्रमी) [[हिन्दी साहित्य]] के [[रीतिकाल]] की कवि-त्रयी के एक प्रमुख स्तंभ हैं। वे [[संस्कृत]] [[काव्यशास्त्र]] का सम्यक् परिचय करानेवाले [[हिंदी]] के प्राचीन आचार्य और [[कवि]] हैं।
 
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आचार्य केशवदास का जन्म 1546 ईस्वी में [[ओरछा]] में हुआ था। वे सनाढय ब्राह्मण थे। उनके पिता का नाम पं काशीनाथ था। ओरछा के राजदरबार में उनके परिवार का बड़ा मान था। केशवदास स्वयं ओरछा नरेश महाराज रामसिंह के भाई इंद्रजीत सिंह के दरबारी कवि, मंत्री और गुरु थे। इंद्रजीत सिंह की ओर से इन्हें इक्कीस गांव मिले हुए थे। वे आत्मसम्मान के साथ विलासमय जीवन व्यतीत करते थे।
 
केशवदास [[संस्कृत]] के उद्भट विद्वान थे। उनके कुल में भी संस्कृत का ही प्रचार था। नौकर-चाकर भी संस्कृत बोलते थे। उनके कुल में भी संस्कृत छोड़ हिंदी भाषा में कविता करना उन्हें कुछ अपमानजनक-सा लगा -
 
:भाषा बोल न जानहीं, जिनके कुल के दास।
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==== वर्ण्य विषय ====
[[चित्र:Radha and Krishna in Rasikapriya, ca1634.jpg|right|thumb|300px|रसिकप्रिया की एक पाण्दुलिपि में राधा और कृष्ण का चित्रण (१६३४ ई)]]
केशव दरबारी कवि थे। अन्य दरबारी कवियों की भांति उन्होंने भी अपने आश्रयदाता राजाओं का यशोगान किया है। वीर सिंह देव चरित और जहांगीर जस चंद्रिका उनकी ऐसी ही रचनाएं हैं।
 
केशव का दूसरा रूप आचार्य का है। कवि-प्रिया और रसिक-प्रिया में इन्होंने संस्कृत के लक्षण, ग्रंथों का अनुवाद किया और उदाहरण स्वरूप अपनी कविताओं की रचना की।
 
राम चंद्रिका का विषय राम-भक्ति है किंतु केशव कवि पहले थे,Bhakt भक्त बाद में। अतः उनमें भक्ति-भावना की अपेक्षा काव्य-चमत्कार के प्रदर्शन की भावना अधिक है।
 
विज्ञान गीता में केशव ने वैराग्य से संबंधित भावनाओं को व्यक्त किया है।