"प्रियप्रवास": अवतरणों में अंतर
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'''प्रियप्रवास''', [[अयोध्यासिंह "हरिऔध"]] की [[हिन्दी]] काव्य रचना है। हरिऔध जी को काव्यप्रतिष्ठा "प्रियप्रवास" से मिली। इसका रचनाकाल सन् 1909 से सन् 1913 है।
== वर्ण्य-विषय ==
महापुरुष के रूप में अंकित होते हुए भी "प्रियप्रवास" के कृष्ण में वही अलौकिक स्फूर्ति है जो अवतारी ब्रह्मपुरुष में। कवि ने कृष्ण का चरित्रचित्रण मनोवैज्ञानिक दृष्टि से किया है, उनके व्यक्तित्व में सहानुभूति, व्युत्पन्नमतित्व और कर्मकौशल है।
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== भाषा, छन्द एवं शैली ==
इसके पहिले से ही हिंदी कविता में व्रजभाषा के स्थान पर खड़ी बोली की स्थापना हो गई थी। [[
"प्रियप्रवास" यद्यपि संस्कृतबहुल और समासगुंफित है, तथापि इसकी भाषा में यथास्थान बोलचाल
"प्रियप्रवास" [[द्विवेदी युग]] में प्रकाशित हुआ था। खड़ी बोली की काव्यकला (भाषा, [[छंद]], अतुकांत, इत्यादि) में बहुत परिवर्तन हो चुका है। किंतु एक युग बीत जाने पर भी [[खड़ी बोली]] के काव्य-विकास में "प्रियप्रवास" का ऐतिहासिक महत्व है।
== बाहरी कड़ियाँ ==
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