"क्रांतिकारी बदलाव": अवतरणों में अंतर

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कुह्न के अनुसार, वैज्ञानिक क्रांति तब होती है जब वैज्ञानिकों का सामना ऐसी असामान्यताओं से होता है, जो सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत उस रूपांतरण के आधार पर समझाई नहीं जा सकती हैं, जिसकी सीमा में रह कर अब तक की वैज्ञानिक तरक्की की गई हो. यह रूपांतरण, कुह्न के विचार में केवल वर्तमान सिद्धांत नहीं है बल्कि एक संपूर्ण वैश्विक नजरिया है, जिसमें वह व उसमें निहित प्रभाव मौजूद होते हैं. यह वैज्ञानिकों द्वारा अपने चारों ओर पहचानी गई ज्ञान की दृश्यावली की विशेषताओं पर आधारित है. कुह्न ने बताया कि सभी रूपांतरणों में असामान्यताएं होती हैं, जिन्हें स्वीकार करने योग्य स्तरों की त्रुटियों के रूप में छोड़ दिया जाता है (कुह्न द्वारा प्रयुक्त एक मुख्य तर्क जिसे वह कार्ल पापर के वैज्ञानिक परिवर्तन के लिये आवश्यक मुख्य शक्ति के रूप में मिथ्याकारकता के माडल को अस्वीकार करने के लिये पेश करता है) या जिनसे निपटने की बजाय नजरअंदाज कर दिया जाता है. कुह्न के अनुसार उस समय के वैज्ञानिकों के लिये इन असमानताओं का विभिन्न स्तरों पर महत्व होता है. बीसवीं सदी के प्रारंभ के भौतिक शास्त्र के संदर्भ में कुछ वैज्ञानिकों को मर्क्यूरी के पेरीहीलियान की गणना मंम माइकेलसन-मोर्ली प्रयोग के परिणामों की तुलना में अधिक कठिनाई महसूस हुई, और कुछ के साथ इसका विपरीत हुआ. यहां और अन्य कई स्थानों पर कुह्न के वैज्ञानिक बदलाव के माडल में तार्किक प्रत्यक्षवादियों के माडल की तुलना में इस बात में भिन्नता देखी गई है कि यह विज्ञान को केवल तार्किक या दार्शनिक उपक्रम न मानकर वैज्ञनिकों के रूप में कार्य कर रहे व्यक्तिगत मानव पर अधिक जोर देता है.
 
"वर्तमान रूपांतरण के विरूद्ध पर्याप्त महत्वपूर्ण असामान्यताओं के जमा हो जाने पर, वैज्ञानिक अनुशासन, कुह्न के अनुसार एक ''संकट'' की स्थिति में चला जाता है. संकट के समय, नई युक्तियां, संभवतः पहले की त्यागी हुई, प्रयोग में लाई जाती हैं. अंततः नये रूपांतर का निर्माण होता है, जिसके अपने नए मानने वाले होते हैं और ''नये'' व पुराने रूपांतरणों को मानने वालों के बीच एक बौद्धिक जंग छिड़ जाती है. प्रारंभिक बीसवीं सदी के भौतिक शास्त्र के लिये [[जेम्स क्लर्क माक्सवेल|मैक्सवेलियन]] [[मैक्सवेल के समीकरण|विद्युतचुम्बकीय वैश्विक नजरिये]] और [[ऐल्बर्टअल्बर्ट आइनस्टाइनआइंस्टीन|आइंस्टीनीयनआइंस्टीन]] का [[सापेक्षिकता का सिद्धांत|सापेक्षता]] के नजरिये के बीच परिवर्तन न तो क्षणिक और न ही शांतिपूर्ण था, बल्कि दोनों पक्षों की तरफ से प्रयोगसिद्ध जानकारी और आलंकारिक या दार्शनिक तर्कों के साथ किये गए हमलों के लंबे इतिहास से भरा था, जिसमें अंततः आइंस्टीनीयन सिद्धांत की जीत हुई. फिर, सबूतों के वजन और नई जानकारी के महत्व को मानवीय चलनी से छाना गया, कुछ वैज्ञानिकों ने आइंस्टीन के समीकरणों की सरलता को अधिक सम्मोहक पाया जबकि अन्यों को वे मैक्सवेल के ईथर के विचार से अधिक जटिल लगे जिसे उन्होंने त्याग दिया था. कुछ लोगों को एड्डिंगटन के सूर्य के चारों ओर मुड़ते प्रकाश के चित्र सम्मोहक लगे, जबकि कुछ ने उनकी सटीकता और अर्थ पर प्रश्नचिन्ह लगाए. कुह्न ने [[मैक्स प्लांक|मैक्स प्लैंक]] के उद्धरण, "नई वैज्ञानिक सच्चाई की जीत उसके विरोधियों को संतुष्ट करके और उन्हें समझा कर नहीं होती बल्कि समय के साथ इन विरोधियों की मृत्यु और इस सच के साथ पैदा हुई और बड़ी होने वाली नई संतति के कारण होती है", का प्रयोग करते हुए कहा कि कभी-कभी इन पर भरोसा लाने वाली शक्ति केवल समय और इसके द्वारा ली जाने वाली मानवता की बलि ही होती है.<ref>थॉमस कुह्न में उद्धरित, ''द स्ट्रक्चर ऑफ़ साइंटिफिक रेवोल्यूशन'' (1970 एड.): पृष्ठ 150.</ref>
 
किसी विषय के एक रूपांतरण से दूसरे में परिवर्तित होने को कुह्न की पदावली में ''वैज्ञानिक क्रांति'' या ''क्रांतिकारी बदलाव'' कहा जाता है. दीर्घ प्रक्रिया से उत्पन्न इस अंतिम परिणाम के लिये अकसर आम भाषा में वैज्ञानिक क्रांति या ''क्रांतिकारी बदलाव'' पद का प्रयोग किया जाता है: वैश्विक नजरिये में, कुह्न के ऐतिहासिक तर्क की विशिष्टताओं को ध्यान में रखे बिना, मात्र (अकसर मूल) परिवर्तन.