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[[श्रेणी:संस्कृति]]
कीचड़ का काव्य पाठ में लेखक ने कीचड़ के गुणों व महत्व का वर्णन किया है। उसके अनुसार लोग कीचड़ को देखकर मुहँ बिगाड़ने लगते हैं, नाक को सिकोड़ने लगते हैं परन्तु यह भुल जाते हैं की यह कीचड़ कितनों गुणों से भरा हुआ है, हमारे लिए यह कितना उपयोगी है। उसके अनुसार कीचड़ में ही कमल का फूल खिलता है, जिसे हम भगवान पर चढ़ाते हैं। कीचड़ के कारण ही हमारे लिए अन्न की व्यवस्था हो पाती है क्योंकि यह कीचड़ में से ही उगता है। आधुनिक जीवन में तो लोग कीचड़ के समान रंग को अपनी दीवारों पर लगवाते हैं, कार्ड पर, किताबों पर व कीमती फूलदान आदि पर इसी रंग को लगवाना पसंद करते हैं। उसे वह कला का सुंदर रूप मानते हैं। फिर कीचड़ से घृणा क्यों की जाती है। लेखक को कीचड़ की लोगों द्वारा इस अनदेखी पर बहुत दुख होता है। वह यही कोशिश यदि वैज्ञानिक और व्यवहारिक दृष्टिकोण से देखा जाए , तो कीचड़ गंदी कही जाती है। इसके अंदर नमी के कारण कीटाणु और विषाणु बड़ी सरलता से पनप जाते हैं। कीचड़ के संपर्क में आने से ही बदबू के मारे दिमाग फटने लगता है। यदि इसे संपर्क हो जाए, तो कितने प्रकार के कीटाणु और विषाणु शरीर पर हमला कर सकते हैं। परन्तु यदि एक अलग दृष्टिकोण से देखा जाए, तो कृषि के लिए इस प्रकार का कीचड़ लाभकारी होता है। चावल की खेती के लिए इसी प्रकार की मिट्टी उपयोगी होती है। कमल कीचड़ में ही स्वरूप पाता है। हम कई बार जीवन में इतने व्यवहारिक हो जाते हैं कि हर वस्तु में छिपे सौंदर्य और महत्व को भूल जाते हैं। जैसे कीचड़ के विषय में हमारा व्यवहारिक दृष्टिकोण अधिक पाया जाता है। कीचड़ गंदा है क्योंकि उसमें दुर्गंध आती है। हम कमल को कभी गंदी या गंदगी नहीं मानते। अपितु उससे पूजा करना उचित मानते हैं। फिर कीचड़ के प्रति ऐसा दृष्टिकोण क्यों। कीचड़ न हो तो अन्न उगना असंभव हो जाए। अतः कीचड़ गंदा नहीं बल्कि बहुत गुणों से भरपूर है। जिस दिन इसके महत्व को स्वीकार कर लिया जाएगा, यह गंदगी नहीं कहलाएगा।कीचड़ का काव्य पाठ में लेखक ने कीचड़ के गुणों व महत्व का वर्णन किया है। उसके अनुसार लोग कीचड़ को देखकर मुहँ बिगाड़ने लगते हैं, नाक को सिकोड़ने लगते हैं परन्तु यह भुल जाते हैं की यह कीचड़ कितनों गुणों से भरा हुआ है, हमारे लिए यह कितना उपयोगी है। उसके अनुसार कीचड़ में ही कमल का फूल खिलता है, जिसे हम भगवान पर चढ़ाते हैं। कीचड़ के कारण ही हमारे लिए अन्न की व्यवस्था हो पाती है क्योंकि यह कीचड़ में से ही उगता है। आधुनिक जीवन में तो लोग कीचड़ के समान रंग को अपनी दीवारों पर लगवाते हैं, कार्ड पर, किताबों पर व कीमती फूलदान आदि पर इसी रंग को लगवाना पसंद करते हैं। उसे वह कला का सुंदर रूप मानते हैं। फिर कीचड़ से घृणा क्यों की जाती है। लेखक को कीचड़ की लोगों द्वारा इस अनदेखी पर बहुत दुख होता है। वह यही कोशिश करता है की इस पाठ को पढ़ लेने के बाद लोग शायद कीचड़ के विषय में अपनी सोच बदल लेगें।करता है की इस पाठ को पढ़ लेने के बाद लोग शायद कीचड़ के विषय में अपनी सोच बदल लेगें।
"https://hi.wikipedia.org/wiki/पंक" से प्राप्त