"कथासरित्सागर": अवतरणों में अंतर

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[[File:Folio from Kathasaritsagara.JPG|thumb|कथासरित्सागर के एक संस्करण से 16वीं शताब्दी का एक फोलियो]]
'''कथासरित्सागर''', [[कथासाहित्य (संस्कृत)|संस्कृत कथा साहित्य]] का शिरोमणि ग्रंथ है। इसकी रचना कश्मीर में पंडित [[सोमदेव]] (भट्ट) ने त्रिगर्त अथवा कुल्लू कांगड़ा के राजा की पुत्री, कश्मीर के राजा अनंत की रानी सूर्यमती के मनोविनोदार्थ 1063 ई और 1082 ई. के मध्य [[संस्कृत]] में की। कथासरित्सागर में 21,388 पद्म हैं और इसे 124 तरंगों में बाँटा गया है। इसका एक दूसरा संस्करण भी प्राप्त है जिसमें 18 लंबक हैं। लंबक का मूल संस्कृत रूप लंभक था। [[विवाह]] द्वारा स्त्री की प्राप्ति "लंभ" कहलाती थी और उसी की कथा के लिए लंभक शब्द प्रयुक्त होता था। इसीलिए रत्नप्रभा, लंबक, मदनमंचुका लंबक, सूर्यप्रभा लंबक आदि अलग-अलग कथाओं के आधार पर विभिन्न शीर्षक दिए गए होंगे।