"षड्गोस्वामी": अवतरणों में अंतर

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'''षड्गोस्वामी''' (छः गोस्वामी) से आशय छः गोस्वामियों से है जो वैष्णव भक्त, कवि एवं धर्मप्रचारक थे। इनका कार्यकाल १५वीं तथा १६वीं शताब्दी था। [[वृन्दावन]] उनका कार्यकेन्द्र था। [[चैतन्य महाप्रभु]] ने जिस [[गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय]] की आधारशिला रखी गई थी, उसके संपोषण में उनके षण्गोस्वामियों की अत्यंत अहम् भूमिका रही। इन सभी ने भक्ति आंदोलन को व्यवहारिक स्वरूप प्रदान किया। साथ ही वृंदावन के सप्त देवालयों के माध्यम से विश्व में आध्यात्मिक चेतना का प्रसार किया।
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'''[[चैतन्य महाप्रभु]]''' ने जिस [[गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय]] की आधारशिला रखी गई थी, उसके संपोषण में उनके षण्गोस्वामियों की अत्यंत अहम् भूमिका रही। इन सभी ने भक्ति आंदोलन को व्यवहारिक स्वरूप प्रदान किया। साथ ही वृंदावन के सप्त देवालयों के माध्यम से विश्व में आध्यात्मिक चेतना का प्रसार किया। रसिक कवि कुल चक्र चूडामणि श्री जीव गोस्वामी महराज षण्गोस्वामी गणों में अन्यतम थे। उन्होंने परमार्थिकनि:स्वार्थ प्रवृत्ति से युक्त होकर सत्सेवाव जन कल्याण के जो अनेकानेक कार्य किए वह स्तुत्य हैं। चैतन्य महाप्रभु के सिद्धान्तानुसारहरिनाम में रुचि, जीव मात्र पर दया एवं वैष्णवों की सेवा करना उनके स्वभाव में था।
 
श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु 1572 विक्रमी में वृंदावन पधारे। वे व्रज की यात्रा करके पुनः श्री [[जगन्नाथ पुरी|जगन्नाथ धाम]] चले गये परंतु उन्होंने अपने अनुयाई षड् गोस्वामियों को भक्ति के प्रचारार्थ वृंदावन भेजा। ये गोस्वामी गण सनातन गोस्वामी, रुप गोस्वामी, जीव गोस्वामी आदि अपने युग के महान विद्वान, रचनाकार एवं परम भक्त थे। इन गोस्वामियों ने वृंदावन में सात प्रसिद्ध देवालयों का निर्माण कराया जिनमें ठाकुर मदनमोहनजी का मंदिर, गोविन्द देवजी का मंदिर, गोपीनाथजी का मंदिर आदि प्रमुख हैं।
वह मात्र 20वर्ष की आयु में ही सब कुछ त्याग कर वृंदावन में अखण्ड वास करने आ गए थे। उनका भक्तिभावव वैराग्य अद्भुत था। भक्त-श्रद्धालओं के द्वारा उनके पास जो भी धन आता था, उसे वह अत्यन्त आदर के साथ यमुना में विसर्जितकर देते थे। उन्होंने मीराबाईको रागानुगाभक्ति का रहस्य समझाते हुए उन्हें श्रीकृष्ण चैतन्य स्वरूप तत्व को हृदयंगम कराया था। ब्रजमण्डलमें युगल विग्रह की उपासना का शुभारंभ श्री जीव गोस्वामी ने ही किया था। साधु सेवा का विधान उन्हीं के द्वारा प्रारंभ हुआ। उन्हें गौडीयसम्प्रदाय का अपने गुरु के बाद दूसरा अध्यक्ष बनाया गया था।
 
श्री जीव गोस्वामी का जन्म पौषशुक्ल तृतीया, संवत् 1568(सन् 1511)को बंगाल के रामकेलिग्राम में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री अनुपम गोस्वामी था। उन्होंने अपनी बाल्यावस्था में ही अपने स्वाध्याय के द्वारा विभिन्न शास्त्रों, पुराणों, वेदों व उपनिषदों आदि पर असाधारण अधिकार प्राप्त कर लिया था। वह श्रीमद्भागवत के अनन्य अनुरागी थे। उनकी शिक्षा दीक्षा काशी व वृंदावन में हुई।
ये छः गोस्वामी थे-
# [[रूप गोस्वामी]]
# [[सनातन गोस्वामी]]
# [[रगुनाथ भट्ट गोस्वामी]]
# [[जीव गोस्वामी]]
# [[गोपाल भट्ट गोस्वामी]]
# रगुनाथ दास गोस्वामी]]
 
==छः गोस्वामियों का कालक्रम==
* '''१४८६''' : श्री चैतन्य प्रकट हुए
* '''१४८८''' : सनातन गोस्वामी प्रकट हुए
* '''१४८९''' : रूपा गोस्वामी प्रकट हुए
* '''१४९४''' : राहुनाथ रघुनाथ गोस्वामी प्रकट हुए
* '''१५०३''' : गोपाल भट्ट गोस्वामी प्रकट हुए प्रकट हुए
* '''१५०५''' : रघुनाथ भट्ट गोस्वामी प्रकट हुए
* '''१५०५''' : प्रभु चैतन्य ने सन्यास लिया
* '''१५१३''' : जीव गोस्वामी प्रकट हुए
* '''१५१५''' : प्रभु चैतन्य का वृन्दावन दर्शन
* '''१५३१''' : रघुनाथ भट्ट गोस्वामी वृन्दावन पधारे
* '''१५३४''' : प्रभु चैतन्य महाप्रभु अदृश्य हुए
* '''१५३५''' : जीव गोस्वामी वृन्दावन पधारे
* '''१५४२''' : राधा दामोदर आराध्य, प्रथम सेवा पूजा
* '''१५४२''' : राधा रमण आराध्य, प्रथम सेवा पूजा
* '''१५४५''' : जीव गोस्वामी ने राधा कुण्ड में भूमि खरीदी
* '''१५५२''' : रूप गोस्वामी ने भक्ति अमृत लिखा
* '''१५५८''' : स्नातन गोस्वामी अदृश्य हुए
* '''१५५८''' : राधा दामोदर में भूमि अर्जन
* '''१५६४''' : रूप गोस्वामी अदृश्य हुए
* '''१५७०''' : वृन्दावन में सम्राट अकबर की जीव गोस्वामी से भेंट
* '''१५७१''' : रघुनाथ दास गोस्वामी अदृश्य हुए
 
==मन्दिर तथा उनके निर्माता गोस्वामी==
; मंदिर निर्माता
# श्री राधामदनमोहन जी मंदिर -- श्री सनातन गोस्वामी
# श्री राधागोविंददेव जी मंदिर -- श्री रूप गोस्वामी
# श्री राधागोपीनाथ जी मंदिर -- श्री मधुपण्डित गोस्वामी
# श्री राधादामोदर जी मंदिर -- श्री जीव गोस्वामी
# श्री राधाश्यामसुन्दर जी मंदिर -- श्री श्यामानन्द गोस्वामी
# श्री राधारमण जी मंदिर -- श्री गोपाल भटट् गोस्वामी
# श्री राधागोकुलानन्द जी मंदिर -- श्री लोकनाथ गोस्वामी 
 
==परिचय==
'''[[चैतन्य महाप्रभु]]''' ने जिस [[गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय]] की आधारशिला रखी गई थी, उसके संपोषण में उनके षण्गोस्वामियों की अत्यंत अहम् भूमिका रही। इन सभी ने भक्ति आंदोलन को व्यवहारिक स्वरूप प्रदान किया। साथ ही वृंदावन के सप्त देवालयों के माध्यम से विश्व में आध्यात्मिक चेतना का प्रसार किया। रसिक कवि कुल चक्र चूडामणि श्री '''जीव गोस्वामी''' महराज षण्गोस्वामी गणों में अन्यतम थे। उन्होंने परमार्थिकनिपरमार्थिक नि:स्वार्थ प्रवृत्ति से युक्त होकर सत्सेवाव जन कल्याण के जो अनेकानेक कार्य किए वह स्तुत्य हैं। चैतन्य महाप्रभु के सिद्धान्तानुसारहरिनामसिद्धान्तानुसार हरिनाम में रुचि, जीव मात्र पर दया एवं वैष्णवों की सेवा करना उनके स्वभाव में था।
 
वह मात्र 20वर्ष20 वर्ष की आयु में ही सब कुछ त्याग कर वृंदावन में अखण्ड वास करने आ गए थे। उनका भक्तिभावव वैराग्य अद्भुत था। भक्त-श्रद्धालओं के द्वारा उनके पास जो भी धन आता था, उसे वह अत्यन्त आदर के साथ यमुना में विसर्जितकर देते थे। उन्होंने मीराबाईको रागानुगाभक्ति का रहस्य समझाते हुए उन्हें श्रीकृष्ण चैतन्य स्वरूप तत्व को हृदयंगम कराया था। ब्रजमण्डलमें युगल विग्रह की उपासना का शुभारंभ श्री जीव गोस्वामी ने ही किया था। साधु सेवा का विधान उन्हीं के द्वारा प्रारंभ हुआ। उन्हें गौडीयसम्प्रदाय का अपने गुरु के बाद दूसरा अध्यक्ष बनाया गया था।
 
श्री जीव गोस्वामी का जन्म पौषशुक्ल तृतीया, संवत् 1568(सन् 1511) को बंगाल के रामकेलिग्राम में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री अनुपम गोस्वामी था। उन्होंने अपनी बाल्यावस्था में ही अपने स्वाध्याय के द्वारा विभिन्न शास्त्रों, पुराणों, वेदों व उपनिषदों आदि पर असाधारण अधिकार प्राप्त कर लिया था। वह श्रीमद्भागवत के अनन्य अनुरागी थे। उनकी शिक्षा दीक्षा काशी व वृंदावन में हुई।
 
एक रात्रि जब श्री रूप गोस्वामी सो रहे थे तब ठाकुर राधा दामोदर ने उन्हें यह स्वप्न दिया कि तुम अपने शिष्य व मेरे भक्त जीव गोस्वामी के लिए दामोदर स्वरूप को प्रकट करो। तुम मेरे प्रकट विग्रह को मेरी नित्य सेवा हेतु जीव गोस्वामी को दे देना। इस घटना के तुरन्त बाद जब रूप गोस्वामी यमुना स्नान करके आ रहे थे, तो उन्हें रास्ते में श्याम रंग का विलक्षण शिलाखण्ड प्राप्त हुआ। तत्पश्चात ठाकुर राधा दामोदर ने उन्हें अपने प्रत्यक्ष दर्शन देकर शिलाखण्ड को दामोदर स्वरूप प्रदान किया। यह घटना माघ शुक्ल दशमी, संवत् 1599 (सन् 1542) की है।
 
एक रात्रि जब श्री रूप गोस्वामी सो रहे थे तब ठाकुर राधा दामोदर ने उन्हें यह स्वप्न दिया कि तुम अपने शिष्य व मेरे भक्त जीव गोस्वामी के लिए दामोदर स्वरूप को प्रकट करो। तुम मेरे प्रकट विग्रह को मेरी नित्य सेवा हेतु जीव गोस्वामी को दे देना। इस घटना के तुरन्त बाद जब रूप गोस्वामी यमुना स्नान करके आ रहे थे, तो उन्हें रास्ते में श्याम रंग का विलक्षण शिलाखण्ड प्राप्त हुआ। तत्पश्चात ठाकुर राधा दामोदर ने उन्हें अपने प्रत्यक्ष दर्शन देकर शिलाखण्ड को दामोदर स्वरूप प्रदान किया। यह घटना माघ शुक्ल दशमी, संवत् 1599(सन् 1542)की है।
यह दिन वृंदावन में ठाकुर राधा दामोदर प्राकट्य महोत्सव के रूप में अत्यन्त धूमधाम के साथ मनाया जाता है। स्वप्नादेशके अनुसार रूप गोस्वामी ने दामोदर विग्रह को अपने शिष्य जीव गोस्वामी को नित्य सेवा हेतु दे दिया। जीव गोस्वामी ने इस विग्रह को विधिवत् ठाकुर राधा दामोदर मंदिर के सिंहासन पर विराजितकर दिया। जीव गोस्वामी को अपने ठाकुर राधा दामोदर के युगल चरणों से अनन्य अनुराग था। उनके रसिक लाडले ठाकुर राधा दामोदर भी उन्हें कभी भी स्वयं से दूर नहीं जाने देते थे।
 
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== संदर्भ ==
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==बाहरी कड़ियाँ==
*[http://www.panchjanya.com/Encyc/2013/10/5/आज-का-वृन्दावन-धाम-षड्गोस्वामियों-की-देन.aspx?PageType=N आज का वृन्दावन धाम षड्गोस्वामियों की देन]
*[http://www.swatantraawaz.com/2/krishna.htm ‘अहो वृन्दावनं रम्यं यत्र गोवर्धनो गिरिः’]
 
{{चैतन्य}}