"हम आपके हैं कौन": अवतरणों में अंतर

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== संक्षेप ==
 
यह प्रेम नाम के युवक और निशा नाम की युवती की कहानी है। दोनों चुलबुले, हंसमुख, और शरारती हैं। प्रेम के माता पिता का उसके बचपन में देहान्त हो चुका है। प्रेम और उसके ज्येष्ठ भ्राता राजेश को उनके चाचा कैलाशनाथ ने पाला है। कैलाशनाथ भतीजों के उचित पालनपोषण के लिये आजीवन अविवाहित रहे हैं। राजेश अपने चाचा के व्यवसाय को कुशलता से चला रहा है। कैलाशनाथ को उसके लिये योग्य वधू की तलाश है। प्रेम और राजेश के मामा निशा की दीदी पूजा का नाम सुझाते हैं। राजेश और पूजा का रिश्ता तय हो जाता है। पहली मुलाकात से ही प्रेम और निशा के बीच नोक-झोंक, मजाक और शरारत का सिलसिला चलने लगता है। पूजा दुल्हन बन कर ससुराल आ जाती है। वह अपने सरल, निर्मल व स्नेहशील स्वभाव से सबका दिल जीत लेती है। कुछ समय बाद जब वह गर्भवती होती है तो उसकी गोदभराई के लिये एक भव्य समारोह का आयोजन किया जाता है। निशा इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिये अपनी दीदी के ससुराल आती है और बच्चे के जन्म तक वहीं रहती है। इस बीच प्रेम और निशा एक दूसरे को चाहने लगते हैं। पूजा एक बेटे को जन्म देती है। दोनों परिवारों में खुशी छा जाती है। अपने घर वापिस जाते समय निशा भारी मन के साथ प्रेम से विदा लेती है। प्रेम उसे विश्वास दिलाता है कि वह जल्दी अपने परिवार से कहकर उन दोनों का रिश्ता तय करा लेगा। कुछ दिनों बाद जब पूजा अपने बेटे को लेकर मायके जाना चाहती है तो प्रेम उसे वहां तक पहुंचाने जाता है। वहां जाकर वह अपनी भाभी को निशा और अपने संबंध में बतलाता है। पूजा बहुत खुश होती है और उन दोनों को विवाह के बन्धन में बांधने का संकल्प लेती है। प्रतीक स्वरूप वह निशा को अपने ससुराल का खानदानी हार भेंट करती है। तभी फोन की घंटी बजती है। राजेश से बात करने को उत्सुक पूजा फोन उठाने जाती है, पर तभी उसका पैर फिसल जाता है और वह सिर के बल गिर कर लहूलुहान हो जाती है। अस्पताल में डॉक्टर उपचार के बहुत प्रयास करते हैं, किन्तु पूजा की जीवन लीला समाप्त हो जाती है। इस त्रासदी से सभी हतप्रभ और शोकमग्न रह जाते हैं।
 
पूजा की मृत्यु के बाद सबको राजेश और उसके नन्हे पुत्र की चिन्ता होती है। पत्नी के वियोग और बेटे के भविष्य की फिक्र के कारण राजेश का स्वास्थ्य गिरने लगता है। ऐसे में पूजा के पिता यह प्रस्ताव रखते हैं कि राजेश उनकी छोटी बेटी निशा से विवाह कर ले। इस बात से प्रेम कुछ पल के लिये दुविधा में घिर जाता है। किन्तु अपने भाई और भतीजे के लिये वह अपनी भावनाओं का बलिदान दे देता है और प्रस्ताव का समर्थन करता है। सबके बहुत समझाने पर बेटे के हित में राजेश इस विवाह के लिये तैयार हो जाता है। निशा के माता पिता उससे पूछ्ते हैं कि क्या वह अपनी दीदी के ससुराल में बहू बन कर जायेगी। वह समझती है कि वे उसका विवाह प्रेम से तय कर रहे हैं और शर्माते हुए अपनी स्वीकृति दे देती है। विवाह के कुछ दिन पहले ही निशा को पता चलता है कि भ्रमवश उसने राजेश की पत्नी बनने के लिये हां कर दी है। परन्तु उसे यह बोध भी होता है कि उसका यह निर्णय उसके नन्हें भांजे और राजेश के जीवन में खुशियां ला सकता है। इसलिये वह अपनी भावनाओं की बलि देने को तैयार हो जाती है। विवाह का दिन आ जाता है। अपने दुख को भूल कर प्रेम अपने भैया की बारात के साथ निशा के घर पहुंचता है। दुल्हन बनी निशा को पूजा का भेंट किया हुआ खानदानी हार याद आता है। वह प्रेम को हार लौटाना चाहती है। निशा हार को लपेट कर एक पत्र के साथ प्रेम के पास भेज देती है। परन्तु वह पत्र और हार प्रेम के स्थान पर राजेश के हाथ लग जाते हैं। सब कुछ जान कर राजेश प्रेम और निशा से पूछता है कि उन्होंने उसे विश्वास में क्यों नहीं लिया। राजेश दोनों परिवारों को प्रेम और निशा के संबंध की जानकारी देता है और उनका विवाह कराने का प्रस्ताव रखता है। अन्ततः सबकी सहमति और आशीर्वाद के साथ प्रेम और निशा का विवाह हो जाता है।