"काशी हिन्दू विश्वविद्यालय": अवतरणों में अंतर
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|caption =काशी हिन्दू विश्वविद्यालय
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|motto = '''विद्ययाऽमृतमश्नुते'''<br /> ''
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|established = १९१६
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== इतिहास ==
[[चित्र:Electrical Engg Deptt IT-BHU.JPG|200px|thumb|विद्युत अभियांत्रिकी संकाय की इमारत]]
[[चित्र:Chemical Engg Deptt IT-BHU.JPG|thumb|200px|left|रासायनिकी संकाय की इमारत]]
पं. मदनमोहन मालवीय ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना का श्रीगणेश १९०४ ई. में किया, जब काशीनरेश महाराज प्रभुनारायण सिंह की अध्यक्षता में संस्थापकों की प्रथम बैठक हुई। १९०५ ई. में विश्वविद्यालय का प्रथम पाठ्यक्रम प्रकाशित हुआ। जनवरी, १९०६ ई. में [[कुंभ मेला|कुंभ मेले]] में मालवीय जी ने त्रिवेणी संगम पर भारत भर से आयी जनता के बीच अपने संकल्प को दोहराया। कहा जाता है, वहीं एक वृद्धा ने मालवीय जी को इस कार्य के लिए सर्वप्रथम एक पैसा चंदे के रूप में दिया। डा. ऐनी बेसेंट काशी में विश्वविद्यालय की स्थापना में आगे बढ़ रही थीं। इन्हीं दिनों [[दरभंगा]] के राजा महाराज [[रामेश्वर सिंह]] भी काशी में "शारदा विद्यापीठ" की स्थापना करना चाहते थे। इन तीन विश्वविद्यालयों की योजना परस्पर विरोधी थी, अत: मालवीय जी ने डा. बेसेंट और महाराज रामेश्वर सिंह से परामर्श कर अपनी योजना में सहयोग देने के लिए उन दोनों को राजी कर लिया। फलस्वरूप बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी सोसाइटी की १५ दिसंबर, १९११ को स्थापना हुई, जिसके महाराज दरभंगा अध्यक्ष, [[इलाहाबाद उच्च न्यायालय]] के प्रमुख बैरिस्टर सुंदरलाल सचिव, महाराज प्रभुनारायण सिंह, पं. मदनमोहन मालवीय एवं डा. ऐनी बेसेंट सम्मानित सदस्य थीं। तत्कालीन शिक्षामंत्री सर हारकोर्ट बटलर के प्रयास से १९१५ ई. में केंद्रीय विधानसभा से हिंदू यूनिवर्सिटी ऐक्ट पारित हुआ, जिसे तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड हार्डिंज ने तुरंत स्वीकृति प्रदान कर दी। १४ जनवरी, १९१६ ई. ([[वसंतपंचमी]]) के दिन ससमारोह वाराणसी में गंगातट के पश्चिम, रामनगर के समानांतर महाराज प्रभुनारायण सिंह द्वारा प्रदत्त भूमि में काशी हिंदू विश्वविद्यालय का शिलान्यास हुआ। उक्त समारोह में देश के अनेक गवर्नरों, राजे-रजवाड़ों तथा सामंतों ने गवर्नर जनरल एवं वाइसराय का स्वागत और मालवीय जी से सहयोग करने के लिए हिस्सा लिया। अनेक शिक्षाविद् वैज्ञानिक एवं समाजसेवी भी इस अवसर पर उपस्थित थे। [[महात्मा गांधी|गांधी जी]] भी विशेष निमंत्रण पर पधारे थे। अपने वाराणसी आगमन पर गांधी जी ने डा. बेसेंट की अध्यक्षता में आयोजित सभा में राजा-रजवाड़ों, सामंतों तथा देश के अनेक गण्यमान्य लोगों के बीच, अपना वह ऐतिहासिक भाषण दिया, जिसमें एक ओर ब्रिटिश सरकार की और दूसरी ओर हीरे-जवाहरात तथा सरकारी उपाधियों से लदे, देशी रियासतों के शासकों की घोर भर्त्सना की गई।
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* [http://medialabasia.in/ggk/CD3-aam/aam/html/main_page.htm ग्रामीण ज्ञान केन्द्र] (बीएचयू)
{{उत्तर प्रदेश के विश्वविद्यालय}}
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