"शचीन्द्रनाथ बख्शी": अवतरणों में अंतर

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'''शचीन्द्रनाथ बख्शी''' ([[अंग्रेजी]]:Sachindra Bakshi, [[जन्म]]: 25 दिसम्बर 1904, [[मृत्यु]]: 23 नवम्बर 1984) [[भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम]] के एक प्रमुख क्रान्तिकारी थे। [[ब्रिटिश साम्राज्य]] के विरुद्ध सशस्त्र क्रान्ति के लिये गठित [[हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन]] के सक्रिय सदस्य होने के अलावा इन्होंने [[रामप्रसाद बिस्मिल]] के नेतृत्व मेमें [[काकोरी काण्ड]] में भाग लिया था और फरार हो गये।
 
बख्शी को [[भागलपुर]] से पुलिस ने उस समय गिरफ्तार किया जब काकोरी-काण्ड के मुख्य मुकदमे का फैसला सुनाया जा चुका था। स्पेशल जज जे० आर० डब्लू०जे॰आर॰डब्लू॰ बैनेट की अदालत में काकोरी षड्यन्त्र का पूरक मुकदमा दर्ज़ हुआ और 13 जुलाई 1927 को उन्हें आजीवन कारावास की सजा दी गयी। 1937 में [[जेल]] से छूटकर आये तो [[कांग्रेस|काँग्रेस पार्टी]] के लिये जी-जान से काम किया।
 
स्वतन्त्र भारत में उनका काँग्रेस से मोहभंग हुआ और वे [[जनसंघ]] में शामिल हो गये। वेउन्होंने [[विधान सभा]] केका सदस्य भीचुनाव रहेजीता और [[लखनऊ]] जाकर रहने लगे। अपने जीवन काल में उन्होंने दो पुस्तकें भी लिखीं। [[सुल्तानपुर]] (उत्तर प्रदेश) में 80 वर्ष का आयु में 23 नवम्बर 1984 को उनका निधन हुआ।
 
==संक्षिप्त जीवन परिचय==
शचीन्द्रनाथ बख्शी का जन्म 25 दिसम्बर 1904 को बनारस में हुआ था। उनके पिता मूलत: [[बंगाल]] के फरीदपुर जिले के रहने वाले थे जो बाद मेमें बंगाल से आकर संयुक्त प्रान्त आगरा व अवध के शहर बनारस में बस गये थे। सचीन दा ने एफ०ए०एफ॰ए॰ की पढ़ाई छोड़कर कुछ क्रान्तिकारी कार्य करने की सोची। इस उद्देश्य से उन्होंने पहले सेण्ट्र्ल हेल्थ इम्प्रूविंग सोसाइटी बनायी फिर सेण्ट्रल हेल्थ यूनियन का गठन किया। हेल्थ यूनियन के बैनर तले उन्होंने बनारस के नवयुवकों की तैराकी की कई प्रतियोगिताएँ आयोजित कीं। 1923 में दिल्ली की स्पेशल काँग्रेस के दौरान येवे बिस्मिल के सम्पर्क में आये और उनकी क्रान्तिकारी पार्टी एच॰आर॰ए॰ में शामिल हो गये। कुछ दिनों [[झाँसी]] से निकलने वाले एक अखबार का सम्पादन किया। उन्होंने काकोरी काण्ड में प्रत्यक्ष रूप से भाग लिया था परन्तु पुलिस के हाथ नहीं आये बल्कि फरार हो गये। शचीन्द्रनाथ बख्शी को [[भागलपुर]] में पुलिस उस समय गिरफ्तार कर पायी जब काकोरी-काण्ड के मुख्य मुकदमे का फैसला सुनाया जा चुका था। आखिरकार स्पेशल जज जे०आर०डब्लू० बैनेट की अदालत में काकोरी षड्यन्त्र का पूरक मुकदमा दर्ज़ हुआ और 13 जुलाई 1927 को इन्हें आजीवन कारावास की सजा दी गयी। इसी पूरक मुकदमें में [[अशफाक उल्ला खाँ]] को फाँसी की सजा हुई थी।
 
बख्शी ने काकोरी काण्ड में प्रत्यक्ष रूप से भाग लिया था परन्तु पुलिस के हाथ नहीं आये। घर से फरार हो गये और [[बिहार]] में पार्टी का कार्य छुपे तौर पर करते रहे। उनको [[भागलपुर]] में पुलिस उस समय गिरफ्तार कर पायी जब काकोरी-काण्ड के मुख्य मुकदमे का फैसला हो चुका था। उन्हें और अशफाक को सजा दिलाने के लिये स्पेशल जज जे॰आर॰डब्लू॰ बैनेट की अदालत में काकोरी षड्यन्त्र का पूरक मुकदमा दर्ज़ हुआ और 13 जुलाई 1927 को उन्हें आजीवन कारावास की सजा दी गयी। इसी पूरक मुकदमें में [[अशफाक उल्ला खाँ]] को फाँसी की सजा हुई थी।
1937 में जेल से छूटकर आये तो काँग्रेस पार्टी में शामिल हो गये और पूरी निष्ठा से काम किया। स्वराज्य प्राप्ति के पश्चात गरीबी में भी हँसते हुए गुजारा किया। काँग्रेस की आपाधापी और आदर्श-भ्रष्टता से ऊबकर पार्टी छोड़ दी और जनसंघ में चले गये। जनसंघ के टिकट पर उन्होंने चुनाव लड़ा और [[उत्तर प्रदेश]] [[विधान सभा]] के सदस्य चुने गये।<ref>{{cite book |last1=क्रान्त|first1= |authorlink1= |last2= |first2= |editor1-first= |editor1-last= |editor1-link= |others= |title=स्वाधीनता संग्राम के क्रान्तिकारी साहित्य का इतिहास |url=http://www.worldcat.org/title/svadhinata-sangrama-ke-krantikari-sahitya-ka-itihasa/oclc/271682218 |format= |accessdate=5 दिसम्बर 2013 |edition=1 |series= |volume=1 |date= |year=2006 |month= |origyear= |publisher=प्रवीण प्रकाशन |location=नई दिल्ली |language=Hindi |isbn= 81-7783-119-4|oclc= |doi= |id= |page=239 |pages= |chapter= |chapterurl= |quote= |ref= |bibcode= |laysummary= |laydate= |separator= |postscript= |lastauthoramp=}}</ref>
 
1937 में जेल से छूटकर आये तो काँग्रेस पार्टी में शामिल हो गये और पूरी निष्ठा से काम किया। स्वराज्य प्राप्ति के पश्चातपश्चात् गरीबी में भी हँसते हुए गुजारा किया। काँग्रेस की आपाधापी और आदर्श-भ्रष्टता से ऊबकर पार्टी छोड़ दी और जनसंघ में चले गये। जनसंघ के टिकट पर उन्होंने चुनाव लड़ा और [[उत्तर प्रदेश]] [[विधान सभा]] के सदस्य चुने गये।<ref>{{cite book |last1=क्रान्त|first1= |authorlink1= |last2= |first2= |editor1-first= |editor1-last= |editor1-link= |others= |title=स्वाधीनता संग्राम के क्रान्तिकारी साहित्य का इतिहास |url=http://www.worldcat.org/title/svadhinata-sangrama-ke-krantikari-sahitya-ka-itihasa/oclc/271682218 |format= |accessdate=5 दिसम्बर 2013 |edition=1 |series= |volume=1 |date= |year=2006 |month= |origyear= |publisher=प्रवीण प्रकाशन |location=नई दिल्ली |language=Hindi |isbn= 81-7783-119-4|oclc= |doi= |id= |page=239 |pages= |chapter= |chapterurl= |quote= |ref= |bibcode= |laysummary= |laydate= |separator= |postscript= |lastauthoramp=}}</ref>
 
===शचीन्द्रनाथ बख्शी की पुस्तकें===
शचीन दा ने अपने क्रान्तिकारी जीवन के संस्मरणों पर आधारित दो पुस्तकें भी लिखीं थीं जो उनके मरने के बाद ही प्रकाशित हो सकीं। दोनों पुस्तकों का विवरण इस प्रकार है:<ref>[http://delhipubliclibrary.in/cgi-bin/koha/opac-search.pl?q=au:%E0%A4%AC%E0%A4%96%E0%A5%8D%E0%A4%B6%E0%A5%80,%20%E0%A4%B6%E0%A4%9A%E0%A5%80%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%20%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%A5 दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी au:बख्शी, शचीन्द्र नाथ]</ref>
* '''क्रान्ति के पथ पर:''' एक क्रान्तिकारी के संस्मरण [[लखनऊ]] लोकहित प्रकाशन [[2005]]
* '''वतन पे मरने वालों का''' [[नई दिल्ली]] ग्लोबल हारमनी पब्लिशर्स [[2009]]