"चीड़": अवतरणों में अंतर
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अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) |
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[[चित्र:Retirada de resina do pinus 270506 1.JPG|right|thumb|300px|चीड़ से रेजिन निकालना]]
वनस्पति शास्त्र में चीड़ को कोनीफरेलीज़ (Coniferales) आर्डर में रखा गया है। चीड़ दो प्रकार के होते हैं : (1) कोमल या सफेद, जिसे हैप्लोज़ाइलॉन (Haploxylon) और (2) कठोर या पीला चीड़, जिसे डिप्लोज़ाइलॉन (Diploxylon) कहते हैं। कोमल चीड़ की पत्तियों में एक वाहिनी बंडल होता है, और एक गुच्छे में पाँच, या कभी कभी से कम, पत्तियाँ होती हैं। वसंत और सूखे मौसम की बनी लकड़ियों में विशेष अंतर नहीं होता। कठोर या पीले चीड़ में एक गुच्छे में दो अथवा तीन पत्तियाँ होती हैं। वसंत और सूखे मौसम की बनी लकड़ियों में विशेष अंतर नहीं होता। कठोर या पीले चीड़ में एक गुच्छे में दो अथव तीन पत्तियाँ होती हैं। इनकी वसंत और सूखे ऋतु की लकड़ियों में काफी अंतर होता है।▼
वनस्पति शास्त्र में चीड़ को कोनीफरेलीज़ (Coniferales) आर्डर में रखा गया है। चीड़ दो प्रकार के होते हैं : * (1) कोमल या सफेद, जिसे हैप्लोज़ाइलॉन (Haploxylon) और
* (2) कठोर या पीला चीड़, जिसे डिप्लोज़ाइलॉन (Diploxylon) कहते हैं।
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चीड़ की लकड़ी काफी आर्थिक महत्व की हाती है। विश्व की सब उपयोगी लकड़ियों का लगभग आधा भाग चीड़ द्वारा पूरा होता है। अनेकाने कार्यों में, जैसे पुल निर्माण में, बड़ी बड़ी इमारतों में, रेलगाड़ी की पटरियों के लिये, कुर्सी, मेज, संदूक और खिलौने इत्यादि बनाने में इसका उपयोग होता है।
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'''कठोर चीड़''' की लकड़ियाँ अधिक मजबूत होती हैं। अच्छाई के आधार पर इन्हें पाँच वर्गों में विभाजित किया गया है। इन वर्गों के कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं :
:(क) पाइनस पालुस्ट्रिस (Pinus palustris), पा. केरीबिया (P. caribaea)।
:(ख) पा. सिलवेस्ट्रिस (P. sylvestris), पा. रेजिनोसा (P. resinosa)।
:(ग) पा. पांडेरोसा (P. ponderosa)।
:(घ) पा. पिनिया (P. pinea), पा. लौंजिफोलिया (P. longifolia) तथा पा. रेडिएटा (P. radiata)।
:(ङ) पा. बैंक्सियाना (P. banksiana)।
उपयोगी लकड़ी प्रदान करनेवाले '''कोमल चीड़''' के कुछ उदाहरण वर्गानुसार निम्नलिखित हैं:
:(क) पाइनस स्ट्रोबस (P. strobus), पा. मोंटिकोला (P. monticola)
:(ख) पा. एक्सेल्सा (P. excelsa)।
:(ग) पा. पार्वीफ्लोरा (P. parveffora), पा. फ्लेक्सिलिस (P. flexilis)।
कई जातियों के वृक्षों से चुआ (tap) करके तारपीन का तेल और गंधराल (rosin) निकाला जाता है। इनकी लकड़ी काटकर आसवन द्वारा टार तेल (tar oil), तारपीन, पाइन आयल, अलकतरा (tar) और कोयला प्राप्त करते हैं। कुछ जातियों की पत्तियों से चीड़ की पत्ती का तेल (pine leaf oil) बनाते हैं, जिसका यथेष्ट औषधीय महत्व है। पत्तियों के रेशों से चटाई आदि बनती हैं।
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[[तारपीन]] और [[गंधराल]] उत्पन्न करनेवाले चीड़ के कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं :
'''भारत में''' - पा. लॉञ्जिफोलिया (P. longifolia), पा. एक्सेल्सा (p. excelsa)तथा प. खास्या (P. khasya)।
'''यूरोप में''' - पा. पिनास्टर (P. pinaster) तथा पा. सिलवेस्ट्रिस (P. sylvestris)
'''उत्तरी अमरीका में''' - पा. पालुस्ट्रिस (P. palustris), पा. केरीबिया (P. cariboea) तथा पा. पॉण्डेरोसा (P. ponderosa)।
चीड़ की बहुत सी जातियों के [[बीज]] खाने के काम आते हैं, जिनमें पश्चिमोत्तर हिमालय का चिलगोजा चीड़ अपने सूखे फल के लिये प्रसिद्ध और मूल्यवान् है। जिन चीड़ों के बीज खाए जाते हैं, उनके कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं :
'''भारत और पाकिस्तान में''' - पा. जिरार्डियाना (P. gerardiana) अर्थात् चिलगोजा।
'''यूरोप में''' - पा. पिनिया (P. pinea) तथा पा. सेंब्रा (P. cembra)
'''उत्तरी अमरीका में''' - पा. सेंब्रायडिस (P. cembroides) की कई किस्में, पा. साबाइकिऐना (P. sabikiana)
अमरीका के पा. लेंबरर्टिना (P. lambertina) की छाल से खरोंचकर रेजिन की तरह एक पदार्थ निकालते हैं, जो [[चीनी]] की तरह मीठा होता है। इसे चीड़ की चीनी कहते हैं।
कई देशों में चीड़ की कुछ जातियाँ सजावट के लिय बगीचों में लगाई जाती हैं।
[[कहरुवा]] (ऐम्बर, amber) नामक पत्थाराया हुआ [[सम्ख़]] (फॉसिल रेज़िन, fossil resin) पाइनस सक्सिनिफेरा (P. succinifera) द्वारा
== चीड़ की बीमारियाँ ==
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