"खगोलीय स्पेक्ट्रमिकी": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Star-Spectroscope.jpg|right|thumb|300px|लिक वेधशाला (Lick Observatory) का स्टार-स्पेक्ट्रोस्कोप]]
'''खगोलीय स्पेक्ट्रमिकी''', (Astronomical spectroscopy) वह विज्ञान है जिसका उपयोग आकाशीय पिंडों के परिमंडल की भौतिक अवस्थाओं के अध्ययन के लिए किया जाता है। प्लैस्केट के मतानुसार भौतिकविद् के लिए [[स्पेक्ट्रमिकी]] वृहद् शस्त्रागार में रखे हुए अनेक अस्त्रों में से एक अस्त्र है। खगोल भौतिकविद् के लिए आकाशीय पिंडों के परिमंडल की भौतिक अवस्थाओं के अध्ययन का यह एकमात्र साधन है।
 
== ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और प्रारंभिक शोध ==
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श्वार्ट्सचालइल्ड के विचारों से मूल समस्याओं को समझने में काफी सहायता मिली परंतु बोर (Bohr) के परमाणु सिद्धांत के विकसित होने तक और सतत अवशोषण एवं उत्सर्जन की प्रक्रिया समझा में आने तक वे विचार अस्पष्ट रहे। इस सिद्धांत के अनुसार संतत अवशोषण तभी होता है जब कि बद्ध इलेक्ट्रॉन प्रकाशिक आयनन (photoionnisation) द्वारा मुक्त होता और संतत उत्सर्जन तभी होता है जब मुक्त इलेक्ट्रॉन का ग्रहण (capture) आयन द्वारा होता है।
 
[[परमाणु सिद्धांत]] के विकास की दृष्टि से श्वार्ट्स चाइल्ड के अन्वेषण निरंतर चलते रहे। 1920 ई. में लुंडब्लैंड ने (Lundbland) ने यह सिद्ध किया कि श्वार्ट् सचाइल्ड की कल्पनाएँ (assumptions), जैसे (1) अवशोषण गुणाक तरंगदैर्ध्य से स्वतंत्र है तथा (2) प्रकीर्णन (scattering) नगण्य है, बहुत हद तक ठीक हैं। इन कल्पनाओं के आधार पर व्युत्पन्न संतत स्पेक्ट्रम में तीव्रता का वितण प्रेक्षणों से भली भाँति मेल खाता है। श्वार्ट्सचाइल्ड की कल्पनाओं के आधार पर ही कार्य कर मिल्न (Milne) द्वारा आगे विकास किया गया और स्वतंत्र रूप से वे उन्हीं परिणामों पर पहुँचे जिन पर लंडब्लैड पहुँचे थे। मिल्न ने एक अन्वेषण द्वारा, जिसे उन्होंने 1923 ई. में प्रकाशित किया, संतत स्पेक्ट्रम के सिद्धांत का विस्तार समकालिक प्रकीर्णन और अवशोषण तक किया। संतत स्पेक्ट्रम के सिद्धांत में बनी कल्पनाओं की सार्थकता की जाँच तक ही भावी शोध सीमित था। ये कल्पनाएँ थीं :
 
(1) परिमंडल समतल समांतर है,
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(4) आयनों और इलेक्ट्रानों द्वारा उत्पन्न सांख्यिकीय उच्चावच क्षेत्र के कारण हाइड्रोजन हीलियम रेखाओं पर स्टार्क प्रभाव होता है।
 
(5) '''जेमीन प्रभाव''' - सूर्यकलंकों या चुंबकीय तारों में उत्पन्न रेखाएँ चुंबकीय क्षेत्र द्वारा चौड़ी या खंडित हो जाती हैं।
 
== वृद्धि का वक्र ==
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अनेक नीहारिकाओं में ऐसे स्पेक्ट्रम होते हैं। जिनमें चमकीली रेखाएँ होती हैं। उनमें सबसे प्रबल दोहरे और तेहरे आयनित आक्सीजन की वर्जित रेखाएँ हैं और उन्हें प्रकाशमान् गैसों का मेघ कहते हैं। अन्य नीहारिकाओं के स्पेक्ट्रम निकटवर्ती तारों के स्पेक्ट्रम के समान होते हैं और वे तारों के परावर्तित प्रकाश द्वारा चमकते हैं। फिर भी अन्य नीहारिकाओं, जैसे परागांगेय नीहारिकाओं (Extragalactic nebula) में काली रेखा के स्पेक्ट्रम पाए जाते हैं, जैसा अनेक तारों के मिश्रित प्रकाश से आशा की जाती है।
 
प्राचल (Parameter) के ताप से घनिष्ट रूप से संबंधित हार्वर्ड के स्पेक्ट्रम वर्गीकरण के तारों की वास्तविक ज्योति पर आधारित एक दूसरा वर्गीकरण भी है जिसका नामकरण क्ष्, क्ष्क्ष्, क्ष्क्ष्क्ष्, क्ष्ज्, ज् के नाम से यॉर्क्स वेधशाला के कीनन और मॉर्गेन द्वारा स्वतंत्र रूप से किया गया है। वास्तविक ज्योतियाँ [[निरपेक्ष तारकीय कांतिमान]] (Absolute steller magnitude) के रूप में व्यक्त की जाती हैं। तारों का कांतिमान वही है जो मानक दूरी, 10 पारसेक्स (32.6 प्रकाशवर्ष = 2*10^<sup>14</sup> मील) पर होता है। उदाहरणस्वरूप वर्ग एक के तारों का निरपेक्ष कांतिमान (Absolute magnitude) - 5 के क्रम का और वर्ग पाँच के तारों का अ 5 क्रम का होता है। अंतिम मान सूर्य की नैज चमक के अनुरूप और पहला मान 10,000 गुना अधिक चमकदार होता है।
 
== तारकीय स्पेक्ट्रमों की व्याख्या ==