"उपनिवेशवाद": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Ганди.jpg|right|thumb|150px|उपनिवेशवाद के विरुद्ध संघर्ष के महान योद्धा '''महात्मा गाँधी''']]
[[चित्र:Colonisation2.gif|right|thumb|300px|१४९२ से २००८ तक उपनिवेशीकरण की गति]]
किसी एक भौगोलिक क्षेत्र के लोगों द्वारा किसी दूसरे भौगोलिक क्षेत्र में [[उपनिवेश]] (कॉलोनी) स्थापित करना और यह मान्यता रखना कि यह एक अच्छा काम है, '''उपनिवेशवाद''' (Colonialism) कहलाता है।
 
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==उपनिवेशीकरण का इतिहास==
[[चित्र:Acceso a la independencia.png|right|thumb|300px|राष्ट्रों द्वारा स्वतंत्रता प्राप्ति की कालावधियाँ]]
उपनिवेशवाद का इतिहास साम्राज्यवाद के इतिहास के साथ अनिवार्य रूप से जुड़ा हुआ है। सन् 1500 के आसपास [[स्पेन]], [[पुर्तगाल]], [[ब्रिटेन]], [[फ़्रांस]] और [[हालैण्ड]] की विस्तारवादी कार्रवाइयों को युरोपीय साम्राज्यवाद का पहला दौर माना जाता है। इसका दूसरा दौर 1870 के आसपास शुरू हुआ जब मुख्य तौर पर ब्रिटेन साम्राज्यवादी विस्तार के शीर्ष पर था। अगली सदी में [[जर्मनी]] और [[संयुक्त राज्य अमेरिका]] उसके प्रतियोगी के तौर पर उभरे। इन ताकतों ने दुनिया के विभिन्न हिस्सों में जीत हासिल करके अपने उपनिवेश कायम करने के ज़रिये शक्ति, प्रतिष्ठा, सामरिक लाभ, सस्ता श्रम, प्राकृतिक संसाधन और नये बाज़ार हासिल किये। साम्राज्यवादी विजेताओं ने अपने अधिवासियों को एशिया और अफ़्रीका में फैले उपनिवेशों में बसाया और मिशनरियों को भेज कर ईसाइयत का प्रसार किया। ब्रिटेन के साथ फ़्रांस, जापान और अमेरिका की साम्राज्यवादी होड़ के तहत उपनिवेशों की स्थापना दुनिया के पैमाने पर प्रतिष्ठा और आर्थिक लाभ का स्रोत बन गया। यही वह दौर था जब युरोपियनों ने अपनी सांस्कृतिक श्रेष्ठता के दम्भ के तहत साम्राज्यवादी विस्तार को एक सभ्यता के वाहक के तौर पर देखना शुरू किया।
[[चित्र:Colonisation2.gif|thumb|500px|पश्चिमी साम्राज्यवादियों के उपनिवेश, 1492 से वर्तमान समय तक]]
जिन देशों ने उपनिवेश बनाए उनमें से प्रमुख ये हैं-
 
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साम्राज्यवाद की दूसरी लहर ने सबसे पहले [[अफ़्रीका]] को अपना शिकार बनाया। इस महाद्वीप की हुकूमतें युरोपियन फ़ौजों के सामने आसानी से परास्त हो गयीं। [[बेल्जियम]] के लिए [[हेनरी स्टेनली]] ने [[कोंगो नदी]] घाटी पर कब्ज़ा कर लिया; [[फ़्रांस]] ने [[अल्जीरिया]] को हस्तगत करके [[स्वेज नहर]] का निर्माण किया और उसके जवाब में ब्रिटेन ने [[मिस्र]] पर कब्ज़ा करके इस नहर पर नियंत्रण कर लिया ताकि एशिया की तरफ़ जाने वाले समुद्री रास्तों पर उसका प्रभुत्व स्थापित हो सके। इसी के बाद फ़्रांस ने [[ट्यूनीशिया]] और [[मोरक्को]] को अपना उपनिवेश बनाया। [[इटली]] ने [[लीबिया]] को हड़प लिया। लातिनी और दक्षिणी अमेरिका में मुख्य तौर पर [[स्पेन]] के उपनिवेश रहे। इन क्षेत्रों की कई अर्थव्यवस्थाओं की लगाम अमेरिका और युरोपीय ताकतों के हाथों में रही।
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==उपनिवेशों का अन्त==
[[चित्र:Acceso a la independencia.png|right|thumb|300px|राष्ट्रों द्वारा स्वतंत्रता प्राप्ति की कालावधियाँ]]
[[चित्र:Ганди.jpg|right|thumb|150px|महात्मा गाँधी]]
[[द्वितीय विश्वयुद्ध]] के बाद उपनिवेशवाद का प्रभाव तेज़ी से घटा। कुछ विद्वानों की मान्यता है कि [[रूसी क्रान्ति|अक्टूबर क्रांति]] के पश्चात ही औपनिवेशिक प्रणाली दरकने की शुरुआत हो गयी थी। 1945 के बाद स्पष्ट हो गया कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय पर उपनिवेशवाद विरोधी रुझान हावी हो चुके हैं। अमेरिका और [[सोवियत संघ]] ने इस दौर में पुराने किस्म के उपनिवेशवाद का जम कर विरोध किया और [[आत्म-निर्णय]] के सिद्धान्त का पक्ष लिया। [[युरोप]] की हालत इस समय तक बेहद कमजोर हो गयी थी। वह दूर-दराज़ में फैले हुए उपनिवेशों की आर्थिक लागत उठाने की हालत में नहीं था। नवगठित [[संयुक्त राष्ट्र संघ]] उपनिवेशों में चल रहे राष्ट्रवादी आंदोलनों के प्रभाव में वि-उपनिवेशीकरण की प्रक्रिया को प्रोत्साहित कर रहा था। नतीजे के तौर पर 1947 से 1980 के बीच में ब्रिटेन को क्रमशः [[भारत]], [[बर्मा]], [[घाना]], [[मलाया]] और [[ज़िम्बाब्वे]] का कब्ज़ा छोड़ना पड़ा। इसी सिलसिले में आगे डच साम्राज्यवादियों को 1949 में [[इण्डोनेशिया]] से जाना पड़ा और अफ़्रीका में आख़िरी औपनिवेशिक ताकत के रूप में [[पुर्तगाल]] ने अपने उपनिवेशों को 1974-75 में आज़ाद कर दिया। 1954 में इंडो-चीन क्षेत्र और 1962 में अल्जीरिया के रक्तरंजित संघर्ष के सामने फ़्रांस को घुटने टेकने पड़े। साठ के दशक में ही भारत के प्रांत [[गोवा]] से पुर्तगाल ने अपना बोरिया-बिस्तर समेट लिया।