"गौतम धर्मसूत्र": अवतरणों में अंतर

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'''गौतम धर्मसूत्र''' अब तक उपलब्ध [[धर्मसूत्र|धर्मसूत्रों]] में प्राचीनतम है। यद्यपि सभी धर्मसूत्र ग्रंथ बिना किसी शाखाभेद के संपूर्ण आर्यजन को सामान्य रूप से मान्य हैं, तथापि [[कुमारिल]] (तंत्रवार्तिक, काशी, पृ. 179) के अनुसार गौतम धर्मसूत्र और [[गोभिल गृह्यसूत्र]] छंदोग ([[सामवेद]]) अध्येताओं के द्वारा विशेष रूप से परिगृहीत हैं। गौतम धर्मसूत्र के आंतरिक साक्ष्य से कुमारिल के मत की पुष्टि होती है। इस ग्रंथ का संपूर्ण 26वां अध्याय सामवेद के ब्राह्मण सामविधान से गृहीत है। सामवेदीय गोभिलगृह्यसूत्र में गौतम के प्रमाणों के उद्धरण हैं। परंपरा के अनुसार सामवेद की शाखा राणायनीय का एक सूत्रचरण गौतम था और संभवत: इसी सूत्रचरण में गौतमधर्मसूत्र की रचना हुई। यह कल्पना भी दूरारूढ़ नहीं कि धर्मसूत्र के अतिरिक्त गौतमसूत्रचरण के गृह्य और श्रौतस्त्र थे जो अब उपलब्ध नहीं।
 
सामयाचारिक अथवा स्मार्त धर्म का विवेचन करनेवाले इस धर्मसूत्र में 28 अध्याय हैं, जिनमें वर्ण, आश्रम और निमित्त (प्रायश्चित्त) धर्मों का विस्तृत तथा गुणधर्म (राजधर्म) का अपेक्षतया संक्षिप्त विधान है। धर्मप्रमाण, प्रमाणों का पौर्वापर्य, उपनयन, शौच (अ. 1-2), ब्रह्मचारी, भिक्षु और बैखानस आश्रमों की विधि (अ.-3), गृहस्थाश्रम से संबद्ध संस्कार और कर्तव्य (अ. 4-6), ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र के कर्तव्य (अ. 9-10), राजधर्म (अ. 11), दंड (अ. 11-13), शौच (अ. 14), स्त्रीधर्म (अ. 18), प्रायश्चित्त (अ. 18-27), दायभाग (अ. 27, 28) एवं पुत्रों के प्रकार (अ. 28) का विवेचन है।
 
इस धर्मसूत्र का उपलब्ध रूप अनेक प्रक्षेपों से युक्त है। उदाहरण के लिये 19वें अध्याय में कर्मविपाक का अंश बाद में जोड़ा गया है। इसपर न तो मस्करी का भाष्य और न हरदत्त की व्याख्या है। बौधायन (2, 2, 4, 17) द्वारा उद्धृत गौतमधर्मसूत्र के वचन तथा प्रस्तुत धर्मसूत्र के आंतरिक साक्ष्य पर अध्याय 6 का छठा सूत्र भी परवर्ती प्रक्षेप प्रतीत होता है।
 
इसमें अन्य धर्मसूत्रों के समान बीच बीच में फुटकर पद्य नहीं हैं। संपूर्ण गौतमधर्मसूत्र गद्य में है, यद्यपि कुछ सूत्र वत्तगंधिशैली में लिखे गए हैं और अनुष्टुप् के अंश प्रतीत होते हैं, अन्य धर्मसूत्रों की अपेक्षा इसकी भाषा पाणिनीय व्याकरण की अधिक अनुयायिनी है, किंतु यह संस्कार भी बाद का प्रतीत होता है।
 
क्योंकि इस धर्मसूत्र में सामविधान ब्राह्मण का एक अंश गृहीत है, और वसिष्ठ और बौधायन धर्मसूत्रों में इस धर्मसूत्र के मतों का नामपूर्वक उल्लेख है, अत: इसकी रचना सामविधान ब्राह्मण के बाद और वसिष्ठ और बौधायनधर्मसूत्रों के पूर्व हुई होगी। इस तथ्य तथा बौद्ध धर्म के द्वारा की गई वर्णाश्रम धर्म की आलोचना के अनुल्लेख तथा उसकी प्रत्यालोचन के अभाव के आधार पर इस धर्मसूत्र का रचनाकाल 600-400 ई. पूर्व माना गया है।
 
इसपर हरदत्त की "मिताक्षरा" व्याख्या और मस्करी का "भाष्य" है।
 
==कर्त्ता==
गौतम धर्मसूत्र के रचियता ऋषि गौतम मुनि माने जाते हैं। गौतम नाम का उल्लेख प्राचीन शास्त्रों में अनेकत्र पाया जाता है। यथा न्याय दर्शन के प्रणेता भी अक्षपाद गौतम माने जाते हैं। कठोपनिषद में गौतम का प्रयोग नचिकेता तथा उसके पिता वाजश्रवस् के लिए हुआ है। इसी प्रकार छान्दोग्य उपनिषद* में हारिद्रुम नाम के आचार्य का उल्लेख हुआ है। अथर्ववेद* में भी गौतम नाम है। ऋग्वेद* के ऋषि रहूगण गौतम हैं। इनमें से किसने धर्मसूत्र का प्रणयन किया है, यह अनिश्चित है। चरणव्यूह की टीका के अनुसार गौतम सामवेद की राणायनी शाखा के एक विभाग के आचार्य थे।*