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'''शिशुपालवध''' महाकवि [[माघ]] द्वारा रचित [[संस्कृत]] [[काव्य]] है। २० सर्गों तथा १८०० अलंकारिक [[छन्द|छन्दों]] में रचित यह ग्रन्थ संस्कृत के छः [[महाकाव्य|महाकाव्यों]] में गिना जाता है। इसमें [[कृष्ण]] द्वारा [[शिशुपाल]] के वध की कथा का वर्णन है।
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==परिचय==
[[जरासंघ]] का वध करके श्री कृष्ण, [[अर्जुन]] और [[भीम]] इन्द्रप्रस्थ लौट आये एवं धर्मराज [[युधिष्ठिर]] से सारा वृत्तांत कहा जिसे सुनकर वे अत्यन्त प्रसन्न हुये। तत्पश्चात् धर्मराज युधिष्ठिर ने [[राजसूय यज्ञ]] की तैयारी शुरू करवा दी। उस यज्ञ के ऋतिज आचार्य होता थे।
 
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ऋतिजों ने शास्त्र विधि से यज्ञ-भूमि को सोने के हल से जुतवा कर धर्मराज युधिष्ठिर को दीक्षा दी। धर्मराज युधिष्ठिर ने सोमलता का रस निकालने के समय यज्ञ की भूल-चूक देखने वाले सद्पतियों की विधिवत पूजा की। अब समस्त सभासदों में इस विषय पर विचार होने लगा कि सब से पहले किस देवता की पूजा की जाये। तब सहदेव जी उठ कर बोले -
 
:"श्री कृष्ण देवन के देव, उन्हीं को सब से आगे लेव।
:ब्रह्मा शंकर पूजत जिनको, पहिली पूजा दीजै उनको।
 
:अक्षर ब्रह्म कृष्ण यदुराई, वेदन में महिमा तिन गाई।
ब्रह्मा शंकर पूजत जिनको, पहिली पूजा दीजै उनको।
:अग्र तिलक यदुपति को दीजै, सब मिलि पूजन उनको कीजै।"
 
अक्षर ब्रह्म कृष्ण यदुराई, वेदन में महिमा तिन गाई।
 
अग्र तिलक यदुपति को दीजै, सब मिलि पूजन उनको कीजै।"
 
परमज्ञानी [[सहदेव]] जी के वचन सुनकर सभी सत्पुरुषों ने साधु! साधु! कह कर पुकारा। [[भीष्म]] पितामह ने स्वयं अनुमोदन करते हुये सहदेव के कथन की प्रशंसा की। तब धर्मराज [[युधिष्ठिर]] ने शास्त्रोक्त विधि से भगवान श्री कृष्ण का पूजन आरम्भ किया। चेदिराज [[शिशुपाल]] अपने आसन पर बैठा हुआ यह सब दृश्य देख रहा था। सहदेव के द्वारा प्रस्तावित तथा भीष्म के द्वारा समर्थित श्री कृष्ण की अग्र पूजा को वह सहन न कर सका और उसका हृदय क्रोध से भर उठा। वह उठ कर खड़ा हो गया और बोला, "हे सभासदों! मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा है कि कालवश सभी की मति मारी गई है। क्या इस बालक सहदेव से अधिक बुद्धिमान व्यक्ति इस सभा में नहीं है जो इस बालक की हाँ में हाँ मिला कर अयोग्य व्यक्ति की पूजा स्वीकार कर ली गई है? क्या इस कृष्ण से आयु, बल तथा बुद्धि में कोई भी बड़ा नहीं है? बड़े-बड़े त्रिकालदर्शी ऋषि-महर्षि यहा पधारे हुये हैं। बड़े-बड़े राजा-महाराजा यहाँ पर उपस्थित हैं। क्या इस गाय चराने वाल ग्वाले के समान कोई और यहाँ नहीं है? क्या कौआ हविश्यान्न ले सकता है? क्या गीदड़ सिंह का भाग प्राप्त कर सकता है? न इसका कोई कुल है न जाति, न ही इसका कोई वर्ण है। राजा [[ययाति]] के शाप के कारण राजवंशियों ने इस यदुवंश को वैसे ही बहिष्कृत कर रखा है। यह जरासंघ के डर से मथुरा त्याग कर समुद्र में जा छिपा था। भला यह किस प्रकार अग्रपूजा पाने का अधिकारी है? इस प्रकार शिशुपाल जगत के स्वामी श्री कृष्ण को गाली देने लगा। उसके इन कटु वचनों की निन्दा करते हुये अर्जुन और भीमसेन अनेक राजाओं के साथ उसे मारने के लिये उद्यत हो गये किन्तु श्री कृष्णचन्द्र ने उन सभी को रोक दिया। श्री कृष्ण के अनेक भक्त सभा छोड़ कर चले गये क्योंकि वे श्री कृष्ण की निन्दा नहीं सुन सकते थे।
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== स्रोत ==
*[http://sukhsagarse.blogspot.com सुखसागर] के सौजन्य से
 
[[श्रेणी:श्रीमद्भागवत]]