"शशि थरूर": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Shashi Tharoor WEF.png|thumb|शशि थरूर]]
'''शशि थरूर''' दिल्ली में मन्त्री हैं। इससे पहले वह [[संयुक्त राष्ट्रसंघ]] के उप महासचिव हैंथे और महासचिव पद के लिये (2006) चुनावी मैदान में हैं। हलांकि चुनाव से पहले उन्होनें अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली है।थे।

संयुक्त राष्ट्र महासचिव पद की दौड़ से बाहर होने वाले [[भारत]] समर्थित उम्मीदवार शशि थरूर ने [[दक्षिण कोरिया]] के '''बान की मून''' से हार तो मान ली लेकिन उनका कहना है कि उनके जीवन भर की मेहनत का सही सिला नहीं मिला है।
 
== उम्मीदवारी वापसी ==
वो कहते हैं, “मैने अपने जीवन के 28 साल इस संस्था के लिए लगाए. दूसरे सारे उम्मीदवारों ने अपनी सरकारों के लिए काम किया है, मैं ही सिर्फ़ एक ऐसा उम्मीदवार था जिसने किसी एक देश के लिए नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय के हित के लिए काम किया. तो मैने सोचा कि यह मेरे हक में जाएगा लेकिन आप देखिए कि आख़िर में सबसे अहम यह बात होती है कि सारे देश कैसे वोट देते हैं.” जिस देश ने मेरे खिलाफ़ वीटो का इस्तेमाल किया वह मेरे या भारत के खिलाफ़ वोट नहीं है बल्कि वो बान की मून को ही जिताना चाहता था इसलिए एक रणनीति के तहत दूसरे उम्मीदवारों को हराना ज़रूरीथा. शशि थरूर का कहना है कि जिस वीटो धारक देश ने उनके खिलाफ़ वोट दिया है वह पहले से ही मन बना चुका होगा कि बान की मून को ही जिताना है । वह कहते हैं, “जिस देश ने मेरे खिलाफ़ वीटो का इस्तेमाल किया वह मेरे या भारत के खिलाफ़ वोट नहीं है बल्कि वो बान की मून को ही जिताना चाहता था इसलिए एक रणनीति के तहत दूसरे उम्मीदवारों को हराना ज़रूरी था.”
 
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शशि थरूर स्ट्रॉ पोल में दूसरे स्थान पर रहे. उन्हे समर्थन के 10 वोट मिले और तीन सदस्यों ने उनका विरोध किया जिसमें एक स्थायी सदस्य भी शामिल था. मैने अपने जीवन के 28 साल इस संस्था के लिए लगाए. दूसरे सारे उम्मीदवारों ने अपनी सरकारों के लिए काम किया है, मैं ही सिर्फ़ एक ऐसा उम्मीदवार था जिसने किसी एक देश के लिए नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय के हित के लिए काम किया. तो मैने सोचा कि यह मेरे हक् में जाएगा लेकिन आप देखिए कि आख़िर में सबसे अहम यह बात होती है कि सारे देश कैसे वोट देते हैं
 
== वापसी का कारण ==
चुनाव में उनकी तैयारी में क्या कुछ कमी रह गई थी या भारत की कोशिशों में कुछ कमी थी. इस सवाल पर शशि थरूर कहते हैं, “मै जितना कर सकता था मैने किया और भारत सरकार जितना कर सकती थी उसने भी किया, इसलिए हमारी कोशिशों में कोई कमी नहीं रह गई थी.”