"तन्त्रालोक": अवतरणों में अंतर
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तत्रलोक की रचना हेतु निमित्तभूत शिष्य, सहयोगी और पारिवारिक वातावरण
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अब हम मंद् के उपर आते हैं वे कर्ण के बाल्यावस्था के मित्र और चचेरे भाई होगे। वत्सलिका जो किसौरि की पत्नी थी अभिनव उन्हे भंद्र की चाची13 कहते हैं तथा जो कि कृपापूर्ण व्याक्तित्त्व से युक्त थी। अभिनव ने इन्ही की कृपापूर्ण व्यक्तित्त्व से युक्त थी। अभिनव ने इन्ही की कृपापूर्ण देखरेख, उनके एक कस्वे में स्थित आवास अपने साहित्यिक सृजन हेतु उपयुक्त स्थल मान14। इन सभी लोंगों की समवेत प्रार्थना ने ही अभिनव को तंत्रालोक की रचना हेतु विवश कर दिया उस प्रार्थना को ठीक उसी प्रकार अस्वीकार नही कर सके जैसे एक नर्तकी जो कि नर्तन की इच्छुक है किसी वाद्ययंत्र के वादन के समय अपने ऊपर नियंत्रण नही कर सकती।
तंत्रालोक का संग्रह स्थल
अभिनवगुप्त यद्यपि अपने जीवनवृत्त और परिस्थितियों के सम्बन्ध में पर्याप्त विवरण देते हैं तथापि वे अपने समय के सम्बन्ध में कोई भी प्रत्यक्ष संकेत नही देते हैं। अभिनव का स्थितिकाल अभ्रान्त रूप से स्पष्ट निश्चित है कि वे पू0 ई0 से 9020 ई0 के मध्य भूमण्डल
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सन्दर्भ में तंत्रालोक प्रमाणिक ग्रन्थ कहा गया है।32 इस तंत्रालोक को कहीं-कहीं ‘तंत्रालोक’ भी कहा गया है।33
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1. संग्रह ग्रन्थ
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