"बाबा गंगेश्वरनाथ धाम": अवतरणों में अंतर

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|स्थान= [[संत रविदास नगर जिला]]
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'''बाबा गंगेश्वर नाथ धाम''' मंदिर गंगा नदी से तीनो दिशाओ से घिरे [[कोनिया क्षेत्र]] के [[इटहरा]] गाँव में स्थित है यह [[भगवान शिव]] का मंदिर है ,पश्चिम वाहिनी गंगा के सम्मुख होने के कारण इस मंदिर को बाबा गंगेश्वर नाथ कहा गया है । इस मंदिर का निर्माण कार्य [[बिसेन]] राजपूतो ने तत्कालीन [[काशी नरेश]] की सहायता से लगभग १५०2५० वर्ष पूर्व इ. सन १८५०१७५० में कराया था ।शिवलाल सिंह इटहरा गाँव के निवासी थे, वे बिसेन राजपूतो से संबाधित थे । बहुत ही धार्मिक प्रवृति होने के कारण इस मंदिर का शिलान्यास शिवलाल सिंह के द्वारा कराया गया । '''फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी के दिन महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है।यहाँ पर [[महाशिवरात्रि]] पर्व के दिन मेला लगता है और महाशिवरात्रि पर्व बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है ।''' ऐसी मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव ज्योतिर्लिंग रूप में प्रकट हुए थे। इस संबंध में एक पौराणिक कथा भी है। उसके अनुसार- [[भगवान विष्णु]] की नाभि से कमल निकला और उस पर ब्रह्माजी प्रकट हुए। ब्रह्माजी सृष्टि के सर्जक हैं और विष्णु पालक। दोनों में यह विवाद हुआ कि हम दोनों में श्रेष्ठ कौन है? उनका यह विवाद जब बढऩे लगा तो तभी वहां एक अद्भुत ज्योतिर्लिंग प्रकट हुआ। उस ज्योतिर्लिंग को वे समझ नहीं सके और उन्होंने उसके छोर का पता लगाने का प्रयास किया, परंतु सफल नहीं हो पाए। जब दोनों [[देवता]] निराश हो गए तब उस ज्योतिर्लिंग ने अपना परिचय देते हुए कहां कि मैं शिव हूं। मैं ही आप दोनों को उत्पन्न किया है।
 
तब विष्णु तथा ब्रह्मा ने [[भगवान शिव]] की महत्ता को स्वीकार किया और उसी दिन से शिवलिंग की पूजा की जाने लगी। [[शिवलिंग]] का आकार दीपक की लौ की तरह लंबाकार है इसलिए इसे [[ज्योतिर्लिंग]] कहा जाता है। एक मान्यता यह भी है कि [[फाल्गुन]] मास के [[कृष्ण पक्ष]] की चतुर्दशी को ही शिव-पार्वती का विवाह हुआ था इसलिए महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है।