"यजुर्वेद": अवतरणों में अंतर
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'''यजुर्वेद''' [[हिन्दू धर्म]] का एक महत्त्वपूर्ण [[श्रुति]] [[धर्मग्रन्थ]] है। ये चार [[वेद|वेदों]] में से एक है। इसमें यज्ञ की असल प्रक्रिया के लिये गद्य और पद्य मन्त्र हैं।
[[दक्षिण भारत]] में प्रचलित [[कृष्ण यजुर्वेद]] और [[उत्तर भारत]] में प्रचलित [[शुक्ल यजुर्वेद]] शाखा।
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;शाखाएं
यजुर्वेद [[कर्मकाण्ड]] से जुडा हुआ है। इसमें विभिन्न यज्ञों (जैसे [[अश्वमेध]]) का वर्णन है। यजुर्वेद पाठ अध्वुर्य द्वारा किया जाता है
# काठक
# कपिष्ठल
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# तैतीरीय
# वाजसनेयी
कहा जाता है कि वेद व्यास के शिष्य [[वैशंपायन]] के २७ शिष्य थे, इनमें सबसे प्रतिभाशाली थे [[याज्ञवल्क्य]] । इन्होंने एक बार यज्ञ में अपने साथियो की अज्ञानता से क्षुब्ध हो गए । इस विवाद के देखकर वैशंपायन ने याज्ञवल्क्य से अपनी सिखाई हुई विद्या वापस मांगी । इस पर क्रुद्ध याज्ञवल्क्य ने यजुर्वेद का वमन कर दिया - ज्ञान के कण कृष्ण वर्ण के रक्त से सने हुए थे । इससे ''कृष्ण यजुर्वेद'' का जन्म हुआ । यह देखकर दूसरे शिष्यों ने तीतर बनकर उन दानों को चुग लिया और इससे [[तैत्तरीय संहिता]] का जन्म हुआ ।
यजुर्वेद के भाष्यकारों में [[उवट]] (१०४० ईस्वी) और [[महीधर]] (१५८८) के भाष्य उल्लेखनीय हैं । इनके भाष्य यज्ञीय कर्मों से संबंध दर्शाते हैं । [[श्रृंगेरी मठ |शृंगेरी]] के शंकराचार्यों में भी यजुर्वेद भाष्यों की विद्वत्ता की परंपरा रही है ।
== इन्हें भी देखें ==
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