"अरस्तु का विरेचन सिद्धांत": अवतरणों में अंतर

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[[ग्रीक]] के महान राजनीतिक और दार्शनिक चिंतक [[अरस्तु]] ने इस सिद्धांत के द्वारा [[कला]] और [[काव्य]] की महत्ता को पुनर्प्रतिष्ठित करने का सफल प्रयासकिया। अरस्तु के गुरुसाथ [[प्लेटो]]उनको नेसमझने कवियोंमें औरहमारी कलाकारों को अपने आदर्श राज्यभावनाओं के बाहर रखने की शिफारिश की थी। उनका मानना था कि काव्य हमारे वासनाओंयोगदान को पोषितस्थापित करने और भड़काने में सहायक है इसलिए निंदनिय और त्याज्य है। धार्मिक और उच्च कोटि का नैतिकबहुत साहित्यही इसकाप्रभावकारी अपवादप्रयास हैकिया किंतु अधिकांश साहित्य इस आदर्श श्रेणी में नहीं आताथा है।
 
संक्षेप में कहें तो विरेचन सिद्धांत कला, अभिनय, साहित्य, काव्य और अभिरुचियों की समझ का सिद्धांत है । उपन्यास, कविता, नाटक या किसी चित्र अथवा चल चित्र को देखकर हम प्रसन्न होते, दुखी होते अथवा आवेश में क्यों आते हैं, विरेचन का सिद्धांत यही बताता है । हम कैसे किसी दूसरे की भावना, उदगार, अभिव्यक्ति और परिस्थिति के बारे में अपने मस्तिष्क में अपने पूर्व अनुभव के आधार पर कोई आकलन करते हैं, यही विरेचन का विषय है ।
 
विरेचन सिद्धांत द्वारा अरस्तु ने प्रतिपादित किया कि कला और साहित्य के द्वारा हमारे दूषित मनोविकारों का उचित रूप से विरेचन हो जाता है। सफल त्रासदी विरेचन द्वारा [[करुणा]] और [[त्रास]] के भावों को उद्बुदबढ़ावा करतीदेती है उनका सामंजनपारस्परिक करतीसामंजस्य हैभी और इस प्रकारअनुभूती से हमको एक हार्दिक आनंद कीका भूमिकाअनुभव प्रस्तुतहोता करतीहै है। विरेचन सेवस्तुतः हमारी भावात्मक विश्रांतिमनस्थिति हीको नहींप्रबल होतीऔर भावात्मकपरिमार्जित परिष्कारकरता भी होताहै है। इस तरह अरस्तु ने एक प्रकार से प्रत्येक प्रकार की कला, साहित्य और काव्य को प्रशंसनीय, ग्राह्य और सायाससमाज के हित में संरक्षण रक्षनीययोग्य सिद्ध किया है।
 
अरस्तु के गुरु [[प्लेटो]] ने कवियों और कलाकारों को अपने आदर्श राज्य के बाहर रखने की सिफारिश की थी। उनका मानना था कि काव्य हमारे वासनाओं को पोषित करने और भड़काने में सहायक है इसलिए निंदनिय और त्याज्य है। धार्मिक और उच्च कोटि का नैतिक साहित्य इसका अपवाद है किंतु अधिकांश साहित्य इस आदर्श श्रेणी में नहीं आता है।
 
[[श्रेणी:पाश्चात्य काव्यशास्त्र]]