"दूरस्थ शिक्षा": अवतरणों में अंतर

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'''दूरस्थ शिक्षा''' (Distance education), शिक्षा की वह प्रणाली है जिसमें शिक्षक तथा शिक्षु को स्थान-विशेष अथवा समय-विशेष पर मौजूद होने की आवश्यकता नहीं होती। यह प्रणाली, अध्यापन तथा शिक्षण के तौर-तरीकों तथा समय-निर्धारण के साथ-साथ गुणवत्ता संबंधी अपेक्षाओं से समझौता किए बिना प्रवेश मानदंडों के संबंध में भी उदार है।
 
[[भारत]] की मुक्त तथा दूरस्थ शिक्षा प्रणाली में राज्यों के [[मुक्त विश्वविद्यालय]], शिक्षा प्रदान करने वाली संस्थाएं तथा विश्वविद्यालय शामिल है तथा इसमें दोहरी पद्धति के परंपरागत विश्वविद्यालयों के पत्राचार पाठयक्रम संस्थान भी शामिल हैं। यह प्रणाली, [[सतत शिक्षा]], सेवारत कार्मिकों के क्षमता-उन्नयन तथा शैक्षिक रूप से वंचित क्षेत्रों में रहने वाले शिक्षुओं के लिए गुणवत्तामूल्क तर्कसंगत शिक्षा के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
 
== इन्हें भी देखें ==
* [[मुक्त विश्वविद्यालय]]
* [[राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान]]
* [[इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय]]HJHHJB
* [[मुक्त पाठ्यक्रम]] (Open course)
 
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* [http://www.usdla.org/html/resources/2._USDLA_Instructional_Media_Selection_Guide.pdf An Instructional Media Selection Guide for Distance Learning], an official publication of the United States Distance Learning Association
* http://www.txdla.org/ The Texas Distance Learning Association (TxDLA)
दूरस्थ शिक्षा के क्षेत्र में हिन्दी माध्यम में पाठ्यक्रम विकास
 
डा शंकर सिंह
 
उच्च शिक्षा के क्षेत्र में अपने देश में दूरस्थ शिक्षा के उद्देश्य से स्थापित किये विश्वविद्यालय मुक्त विश्वविद्यालय हैं । ऐसे विश्वविद्यालय भारत, यूके तथा अन्य देशों में कार्य कर रहे हैं। इन विश्वविद्यालयों में प्रवेश/नामांकन की नीति खुली या शिथिल होती है अर्थात विद्यार्थियों को अधिकांश स्नातक स्तर के प्रोग्रामों में प्रवेश देने के लिये उनके पूर्व शैक्षिक योग्यताओं की जरूरत का बन्धन नहीं लगाया जाता। रहा है । अत्याधुनिक दूर शिक्षा प्रणाली ने समाज के दूर-दराज के क्षेत्रों में रहने वाले वर्गों तक पहुँचने में सहायता की है ।दूरस्थ शिक्षा छात्रों को पाठ्यक्रम सामग्री प्रदान कर सहायता प्रदान करता है.
 
पाठ्यक्रम विकास मॉडल, के रूप में हम संस्थानों की जरूरत , उपलब्ध संसाधन, गुणवत्ता की विशिष्ट आवश्यकताओं आश्वासन नियंत्रण के महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा करने के लिए हम पुस्तकालय और सूचना विज्ञान कोर्स के विभिन्न मॉडलों पर प्रासंगिकता, नवाचार, लचीलापन, अन्तरक्रियाशीलता के मानकों, भाषा ,गुणवत्ता आश्वासन पर ध्यान केंद्रित करेंगे. .
 
 
I) पाठ्यक्रम सामग्री सबसे अधिक बाहरी विशेषज्ञों द्वारा और अन्य समन्वय काम कोर संकाय द्वारा किया जाता है.
Ii) पाठ्यक्रम सामग्री सीमित मानदंडों के अनुसार आत्म - शिक्षण सामग्री के लिए है ,
मुद्रण प्रबंध कोर संकाय द्वारा किया जाता है.
 
Iii) कुछ प्रोग्राम एक विशेषज्ञ को परियोजना के आधार पर आवंटित किया गया है.
आंतरिक संकाय शिक्षण सामग्री को अनुकूलित कर सुनिश्चित पूरा करने के लिए जिम्मेदार है
विषय विशेषज्ञों, मीडिया विशेषज्ञों, अनुदेशात्मक डिजाइनर, बाहरी संपादकों.के अनुसार, शिक्षण की संरचना एक मूल विचार है
 
I.प्रासंगिकता
कार्यक्रमों की पहचान कैसे हो? बाजार अनुसंधान और परिप्रेक्ष्य में किस तरह की योजना है और बाजार में उभरती प्रवृत्तियों की पहचान के लिए आवश्यक ? नए कार्यक्रमों या तो (एक) आंतरिक संकाय या (ख) एक बाहरी एजेंसी द्वारा द्वारा पहचाने जाते हैं .
'हालांकि प्रासंगिकता' अक्सर रोजगार बाजार की मांग से जुड़ा है, यह भी महत्वपूर्ण है. सामाजिक सामंजस्य साझा मूल्यों की भावना के आधार पर किया जा सकता है , केवल एक मूल्य आधारित शिक्षा प्रदान कर सकते हैं. लेकिन यह भी मतलब नहीं है -शिक्षा केवल रोजगार के लिए तैयार है. शिक्षा या तो एक साधन के रूप में एकीकरण कार्य की सुविधा में प्रयोग किया जाता है .यह मौजूदा व्यवस्था के तर्क में युवा पीढ़ी के बारे में यह अनुरूप करने के लिए, या 'स्वतंत्रता' का अभ्यास इसका मतलब है जिसमें से पुरुषों और महिलाओं के लिए गंभीर और , वास्तविकता के साथ रचनात्मक और दुनिया के परिवर्तन में भाग लेने के लिए है. और दुनिया के परिवर्तन" अपने दृष्टिकोण के परिवर्तन के बाद ही संभव है.
यह इस कारण यह है कि जमीनी स्तर पर जागरूकता पैदा करने के लिए पंचायती राज के रूप में इस तरह के कार्यक्रमों के लिए कार्यकर्ताओं और महिला सशक्तिकरण पर एक कार्यक्रम शुरू किया गया है.
 
2.अभिनव
एमबीए, बीए, बीएससी जैसे शैक्षणिक कार्यक्रमों आदि के क्षेत्रों में, अभिनव कार्यक्रम जागरूकता पीढ़ी और निर्माण में व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के श्रमिकों के लिए है. आत्म - शिक्षण सामग्री के विकास के लिए एक मानकीकृत स्वरूप है. यूनिट एक संरचना है, एक रूपरेखा, व्यवहार शब्द, एक परिचय, एक चर्चा में लक्ष्यों के एक बयान मुख्य विषयों, शब्दकोष, एक रीडिंग सूची और स्वयं जांच व्यायाम. यह विशेष रूप से उपयुक्त है .
भारतीय छात्र को जो एक स्कूल प्रणाली से उभरा है ,शिक्षक और मुद्रित शब्द, जबकि विभिन्न कार्यक्रमों की प्रेरणा और प्रकाश में लाना ,विभिन्न स्तरों ,विभिन्न शिक्षण शैली , सामान्य रूप में, अंक, प्रचुर स्पष्टीकरण और समाधान के साथ एक संरचित तरीके से पढ़ाया जाता है,.
उद्योग पाठ्यक्रमों के लिए सीखने और की क्षमता बढ़ाने के उद्देश्य काम में 'ज्ञान प्रदान' नहीं बल्कि काम करने के लिए ज्ञान' है .उद्योग के साथ निकट संपर्क / नियोक्ता इसलिए चिंतित हैं कि पाठ्यक्रम विकासं आवश्यक दक्षताओं को परिभाषित करता है ., संगत के लिए प्रदर्शन प्राप्त मानकों और मानदंडों का आकलन विकसित करने के लिए इन विशिष्ट उद्देश्यों के नवाचार , दृष्टिकोण और पाठ्यक्रम विकास की प्रक्रिया में निहित है.
3.लचीलापन
शिक्षार्थी केंद्रित , सीखने की खुली सिस्टम प्रवेश बिंदुओं के संदर्भ में लचीलापन प्रदान करना चाहिए. एक कार्यक्रम गतिशीलता संयोजनों का एक मॉड्यूलर संरचना है जो सीखने को सक्षम करने पर क्रेडिट लेने और उसके कार्यक्रम को स्वयं की गति के अनुसार , अपनी जरूरत और क्षमता है . विभिन्न शिक्षार्थियों के विभिन्न शिक्षण शैली और लचीलापन छोटे मॉड्यूल करने के लिए क्रेडिट हस्तांतरित किया जा सकता है . अन्य कार्यक्रम. हालांकि, सार्थक स्थानांतरण के लिए होते हैं, हम को ध्यान में रखना चाहिए:
i) लक्ष्य कार्यक्रम की संरचना के साथ क्रेडिट की संख्या
ii) स्तर, उदाहरण के लिए, केवल एक स्नातकोत्तर स्तर के कार्यक्रम में लगाया जा सकता है
एक और स्नातकोत्तर कार्यक्रम
Iii) क्या हस्तांतरित किया जा रहा पाठ्यक्रम मॉड्यूल / लक्ष्य कार्यक्रम के उद्देश्यों को पूरा करेगा.
4.अन्तरक्रियाशीलता
शिक्षार्थी केवल ज्ञान के एक निष्क्रिय उपभोक्ता नहीं है और न ही पाठ्यक्रम सामग्री एक आभ्यांतरिक पैकेज है . शिक्षा के उद्देश्य के बीच में, अन्य बातें है, सीखने की निष्क्रिय महत्वपूर्ण और विश्लेषणात्मक क्षमता सक्रिय करने के लिए इतना है कि वह बेहतर करने में सक्षम होना चाहिए .उसे पर्यावरण के साथ प्रतिक्रिया और विचारों से दूर इस तरह के पाठ्यक्रम सामग्री आह्वान करने में सक्षम होना चाहिए .. अन्तरक्रियाशीलता मामले में सामग्री अपनी प्रस्तुति में है यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए. पहले व्यक्ति में संवादी बल्कि पाठ्यपुस्तक शैली की तुलना में, सुबोध भाषा में ,सीधे सीखने और उपयोग उपकरणों की. विषयगत चर्चा प्रदान करते हैं,. प्रारूप करने के लिए छात्र को प्रेरित करना है, सीखने और सुविधा सामग्री का स्पष्ट और व्यवस्थित प्रस्तुति द्वारा आत्मसात, पुनरावृत्ति से सुदृढ़ और नियमित रूप से प्रोत्साहित
रूप में है .शिक्षकों, द्वारा अन्तरक्रियाशीलता सुनिश्चित कर इकाइयों में निर्माण किया जा सकता है .
एक इंटरैक्टिव पाठ्यक्रम सामग्री के शिक्षण घटक और एक महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया चैनल प्रदान करता है.
5.भाषा
छात्र अंग्रेजी या हिन्दी माध्यम से अध्ययन कर सकते हैं. हिन्दी के लिए अंग्रेजी में लिखा मूल से अनुवाद हैं. अंग्रेजी ',' शब्दसूचियां या त्वरित भाषा एड्स और मदद कर सकते हैं .सामग्री का अनुवाद करने के लिए अनुवादक जरूरी विषय के विशेषज्ञ हैं और इसलिए व्याख्या की एक समस्या नहीं है. .
लक्ष्य भाषा में तकनीकी और अवधारणाओं एक कमी है एक मानकीकृत तकनीकी दृष्टि से और कभी कभी शब्दसूचियां अनुवाद पहचानने योग्य है . हिन्दी माध्यम समस्याओं के लिए ही संभव समाधान हैं:
1) एक बहु - भाषी और के अनुरूप समाज में अनुवाद के महत्व के एक मान्यता ,अनुवादकों को प्रोत्साहन ,
2) अनुवादक और विषय विशेषज्ञ आवश्यकता के लिए मिलकर काम ,
3)कठोर पुनरीक्षण और मूल्यांकन की आवश्यकता ,
4)हर रोज जहां तक संभव, भाषण की भाषा के रूप में उपयोग करें.
टेलर ने कहा है कि दूरस्थ शिक्षा के क्षेत्र में 'भाषा के उचित उपयोग शायद अधिक महत्वपूर्ण है .छात्र पाठ और के माध्यम से सीखता है . सुबोध भाषा, कठिन पदों में व्याख्या करने के लिए सही अनुवाद और भाषा के लिए समावेशी सवाल है .
6.गुणवत्ता
सामग्री की गुणवत्ता राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों स्तर पर है. उपलब्ध विशेषज्ञों के बीच में से पाठ्यक्रम डिजाइनरों और लेखकों का चयन ,देश में. लिखित सामग्री ,समय सीमा की मांग , विशिष्ट संबंधित क्षेत्र में अपेक्षित संपादन विशेषज्ञता. सामग्री की गुणवत्ता में हो सकता है . सामग्री पुनरीक्षित, संशोधित किया जाना चाहिए. जहाँ भी पूरा कोर्स संशोधन संभव नहीं हो ,अनुपूरक सामग्री प्रदान की जा सकती है. इसके अलावा पाठ्यक्रम डिजाइन, विकास की प्रक्रिया और काफी कठोर पाठ्यक्रम की गुणवत्ता को आश्वस्त किया जाना चाहिए.कुछ प्रदर्शन संकेतक के रूप में गुणवत्ता आश्वासन के लिए एक रूपरेखा के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है .
 
ग्राहक सेवा के संदर्भ में. इन कोर्स, विकास की जरूरतों के लिए संशोधित उपयोगी दिशा निर्देश -
(I) कार्यक्रम के उद्देश्यों संवाद. दिशा निर्देश यथार्थवादी होना चाहिए.
(Ii)प्रासंगिक पाठ्यक्रम - सामग्री
(Iii)सुझाव, मूल्यांकन और परिणाम
. विचारों को मूर्त भौतिक सुविधाओं की उपस्थिति, उपकरण, कार्मिक, संचार -.
(I) अध्ययन सामग्री -आउट आकर्षक ले विवेकपूर्ण चित्र उपयोग में मदद करता है सामग्री और अधिक आकर्षक बनाते हैं.
(Ii) समाचारपत्रिकाएँ, पत्र और अन्य संचार संक्षिप्त होना चाहिए
(Iii) छात्रों के लिए संपर्क कार्यकुशलता, सूचना, प्रशिक्षण ,बातचीत करने के लिए सक्षम सार्थक तरीके.
III.पाठ्यक्रम से संबंधित प्रतिक्रिया -
(I) भाषा बोधगम्यता (ii) सामग्री की पहुँच (iii) अन्तरक्रियाशीलता सामग्री (iv) प्रासंगिक और पाठ्यक्रम का चुनौतीपूर्ण प्रकृति सामग्री अभ्यास /. इस डेटा के संशोधन और शोधन की प्रक्रिया में मदद मिलेगी.
गुणवत्ता का सवाल अलगाव में नहीं देखा जा सकता है लेकिन सीखने का समर्थन करने के लिए गुणवत्ता पाठ्यक्रम विकास रणनीतियों सख्ती से लागू किया जाना चाहिए.
 
 
 
 
पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञानं विषय में हिंदी माध्यम से पाठ्यक्रम सृजन
मुक्त शिक्षा प्रणाली के अंतर्गत परंपरागत विषयों में हिंदी माध्यम से ठ्यक्रम लेखन के लिए विषय का समुचित अध्ययन आवश्यक है .तभी हम विषय की मुख्य अवधारणा को सरल शब्दों में व्यक्त कर छात्रों की आवश्यकता के अनुरूप पाठ्य सामग्री को उपयोगी और महत्वपूर्ण बना सकते हैं .आज का युग प्रतिस्पर्धा का युग है तथा ज्ञान के आधार पर ही सफलता निर्भर करती है अत: पाठ्य सामग्री में विषय का सम्पूर्ण समावेश नितांत आवश्यक है .मानक क्रेडिट के अनुसार ही इकाइयों निर्धारित की जानी चाहिए और अपेक्षित पृष्ठों की संख्या भी संतुलित होनी चाहिए .
यहाँ पर हम पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञानं विषय में हिंदी माध्यम से पाठ्यक्रम सृजन पर चर्चा करेंगे .इंदिरागांधी राष्ट्रिय मुक्त विश्विद्यालय द्वारा वर्ष १९९९ में स्नातक स्तर पर पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञानं विषय(BLIS ) में हिंदी माध्यम से पाठ्यक्रम सृजन हेतु प्रयास किया गया .अंगरेजी माध्यम में उपलब्ध पाठ्य सामग्री का हिंदी में में रूपांतरण करने हेतु सर्वप्रथम विश्विद्यालय द्वारा पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञानं शब्दावली का विषय विशेषज्ञों द्वारा निर्माण कराया गया जिससे अंगरेजी माध्यम से हिंदी माध्यम में तकनीकी शब्दों का मानक शब्द निर्धारित किया गया .इसके आधार पर सभी सात सैद्धांतिक तथा दो प्रयोगात्मक विषयों का विषय विशेषज्ञों द्वारा हिंदी माध्यम से विभिन्न ब्लाक तथा इकाइयों के अंतर्गत लेखन कार्य किया गया .हिंदी संस्करण हेतु विशेषग्य समिति सदस्य ,एक कार्यक्रम समन्वयक ,कार्यक्रम संपादक ,पाठ्यक्रम समन्वयक तथा पाठ्यक्रम संपादक नियुक्त किये गए .विशेष योग्यता तथा अनुभव के आधार पर इकाई लेखक नियुक्त किये गए जिन्हें अंगरेजी माध्यम में उपलब्ध पाठ्य सामग्री का समय सीमा के अंतर्गत हिंदी में रूपांतरण करने हेतु आवश्यक निर्देश दिए गए .इस कार्यक्रम के अंतर्गत लेखक को सूचना प्रोद्योगिकी मूलाधार (BLIS -७) की १०,११,१२ तथा १३ कुल चार इकाइयाँ लिखने को आवंटित की गयी .
इसके अंतर्गत कंप्यूटर आधारित प्रणाली ,पुस्तकालय तथा सूचना नेटवर्क ,संसाधन सहभागिता नेटवर्क, तथा इन्टरनेट और इसकी सेवाएं से सम्बंधित पाठों का अंग्रेजी से हिंदी में रूपांतरण किया गया .तकनिकी शब्दों का अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद करना सरल नहीं था किन्तु इस कार्य में पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञानं शब्दावली तथा मानक शब्दकोशों का उपयोग करना पड़ा क्यूँ की अभी तक इस प्रकार की पाठ्य सामग्री हिंदी में उपलब्ध नहीं थी तथा इन विषयों पर हिंदी में पुस्तकों के संख्या भी उस समय नाममात्र ही थी . अंग्रेजी के अनेक लोकप्रिय शब्द हिंदी में भी उसी प्रकार लिखे गए जैसे कंप्यूटर,नेटवर्क,इन्टरनेट,वेब,सर्च इंजिन,इ-मेल. वर्ष २००१ से यह पाठ्य सामग्री हिंदी माध्यम में उपलब्ध हो सकी.
इसी प्रकार वर्ष 2000 में उत्तर प्रदेश राजर्षि टंडन मुक्त विश्विद्यालय इलाहबाद द्वारा स्नातकोत्तर स्तर पर पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञानं विषय(MLIS ) में हिंदी माध्यम से पाठ्यक्रम सृजन हेतु प्रयास किया गया .अभी तक इस विषय में इस स्तर पर हिंदी माध्यम से किसी प्रकार की पाठ्य सामग्री उपलब्ध नहीं थी अत: यह एक चुनोतिपूर्ण कार्य था.तत्कालीन कुलपति की अध्यक्षता में गठित विषय विशेषज्ञों की एक पाठ्यक्रम अभिकल्पन समिति का गठन किया गया तथा एक पाठ्यक्रम संयोजक भी नियुक्त किये गए.पाठ्यक्रम संयोजक स्नातक स्तर पर पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञानं विषय(BLIS ) में हिंदी माध्यम से पाठ्यक्रम सृजन कार्य इसकी तुलना में सरल था क्यूँ की वहां पर सम्बंधित पाठों का अंग्रेजी से हिंदी में रूपांतरण किया गया तथा पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञानं शब्दावली भी कार्य हेतु उपलब्ध थी.पाठ्यक्रम संयोजक ने इंदिरागांधी राष्ट्रिय मुक्त विश्विद्यालय द्वारा पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञानं शब्दावली को एक मानक के रूप में में प्रयोग करने तथा अंगरेजी व हिंदी में उपलब्ध एनी संसाधनों का भी सन्दर्भ लेने का परामर्श दिया .मुक्त विश्विद्यालय की अवधारणा को ध्यान में रखते हुए इस पाठ्यक्रम को आठ सैधांतिक तथा एक प्रयोगात्मक विषय के रूपों में लिखा गया.प्रत्येक विषय के अंतर्गत ९ इकाइयों में सम्पूर्ण विषय सामग्री का समावेश किया गया.यह एक अभिनव प्रयोग था क्यूँ की इंदिरागांधी राष्ट्रिय मुक्त विश्विद्यालय में भी स्नातकोत्तर स्तर पर पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञानं विषय(MLIS ) में हिंदी माध्यम से पाठ्यक्रम नहीं थी.यह पाठ्यक्रम छात्रों के बीच बहुत लोकप्रिय हो चूका है तथा अनेक विश्विद्यालयों के छात्र भी इसका लाभ उठा रहें हैं.
इसके पश्चात् वर्धमान महावीर कोटा मुक्त विश्विद्यालय द्वारा भी २००८ से स्नातकोत्तर तथा M फिल स्तर पर पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञानं विषय की पाठ्य सामग्री हिंदी माध्यम में उपलब्ध करायी गयी है. मध्य प्रदेश भोज मुक्त विश्विद्यालय भी स्नातकोत्तर स्तर पर पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञानं विषय की पाठ्य सामग्री हिंदी माध्यम में उपलब्ध करवा रहा है.
हिंदी माध्यम में पाठ्य सामग्री की लोकप्रियता निरंतर बढती जा रही है जिसके परिणामस्वरूप पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञानं विषय के अध्धयनकर्ताओं की संख्या में भी प्रत्येक स्तर पर वृद्धि स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है.
 
 
 
 
संदर्भ
 
[[श्रेणी:शिक्षा]]