"वैकासिक अर्थशास्त्र": अवतरणों में अंतर
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'''वैकासिक अर्थशास्त्र''' (Development economics) [[अर्थशास्त्र]] की एक शाखा है जो प्रति व्यक्ति [[सकल घरेलू उत्पाद]] (जीडीपी) के मामले में पिछड़े रहने वाले देशों को उनकी ग़रीबी से
== इतिहास ==
== अवधारणा == वैकासिक अर्थशास्त्र के पीछे यही बुनियादी थीसिस काम करती है कि अगर ग़रीब देशों की कृषि आधारित अर्थव्यवस्थाओं को निर्यात-आयात आधारित वाणिज्य और कारख़ाना उत्पादन का आधार मिल जाए तो उनका आर्थिक कल्याण सम्भव है। वैकासिक अर्थशास्त्र के सिद्धांत दीर्घकालीन बचत, उसके निवेश और प्रौद्योगिकीय प्रगति की भूमिका के इर्द- गिर्द सूत्रबद्ध होते हैं। इस लिहाज़ से आर्थिक विज्ञान की यह शाखा सैद्धांतिक और व्यावहारिक अर्थशास्त्र का मिला-जुला रूप है। इसमें एक तरफ़ मुक्त व्यापार का रवैया अपनाते हुए बाज़ार के ज़रिये आर्थिक वृद्धि हासिल करने की कोशिश की जाती है। दूसरी ओर राष्ट्रीय सरकारों के हस्तक्षेप और आर्थिक नियोजन का सहारा लिया जाता है। इसका तीसरा पहलू है अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं द्वारा किया जाने वाला हस्तक्षेप। इन संस्थाओं में अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक और अन्य क्षेत्रीय ऋणदाता बैंक शामिल हैं। इसी मिले-जुले रूप के कारण वैकासिक अर्थशास्त्र नियोक्लासिकल और मार्क्सवादी अर्थशास्त्रियों की आपसी टकराहट का अखाड़ा बना रहता है। नियोक्लासिकल तर्क ग़रीब देशों में बाज़ार की विफलता को उनकी कमज़ोरी का कारण बताता है। उसकी तरफ़ से सुझाव आता है कि इन देशों को अपनी शुल्क प्रणाली, विनिमय दरें और मौद्रिक प्रणालियों में परिवर्तन करने चाहिए ताकि बाज़ारों में सुधार हो सके। मार्क्सवादी रवैया अंतर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण अपनाते हुए पूँजीवादी शोषण को दूसरी अर्थव्यवस्थाओं के हाशिये पर रह जाने का कारण बताता है।
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[[श्रेणी:अर्थशास्त्र]]
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