"स्थानापन्न मातृत्व": अवतरणों में अंतर

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सरोगट मात्रत्व का अभ्यास एक लम्बा इतिहास रहा है और यह कई सन्स्क्रितियो मे स्वीकार किया गया है। "ओल्ड टेस्टामेन्ट्स"नाम के पुस्तक मे इभ्रहिम, सारा, और हागर के बीच की कहानी तथा रेछल और नौकर की कहानी, यह स्थाभित करता है कि स्थानापन्न मात्रत्व यहूदी समाज मे स्वीक्रत्व था। हालांकी, यूरोपीय सन्स्क्रितियों में सरोगसी निःसंदेह अभ्यास किया गया है परन्तु अतीत मे इस सामाजिक और कानूनी नियमों औपचारिक रूप से स्वीकार नहीं किया गया था। परम्परागत समाजों मे सरोगट माँ, अपने बच्चे को 'दान' के रूप मे देती है परन्तु पाश्चातिक समाजो मे सरोगट माँ अपने बच्चे को 'दूर' कर देते है। कई समाजो मे सरोगसी दोस्ती और सज्जनता के रूप मे भी देखने को मिलता है। औस्ट्रेलिया मे सरोगसी प्रक्रिया, पिछ्ले शतब्दि तक अनौपचारिक रूप से उपस्थित थे। औस्ट्रेलिया के पहले सरोगसी का मामला १९८८ में हुआ था। इस प्रक्रिया द्वारा पैदा होने वाली पहली ई वी एफ बच्ची एलिस किर्कमान, मेल्बोर्न मे २३ मई १९८८ को हुआ था। हाल ही मे, मार्च १९९६ मे औस्ट्रेलिया के 'पहला कानूनी व्यवस्था' का सूचना मिलि थी। उस समय, एक नारी अपनी भाई तथा भाभी के आनुवंशिक भ्रूण को अपने गर्भ पात्र मे उपजने दिया। इस मामला, औस्ट्रेलियन कापिटल टेरिटोरी कानून के तहत मे आगे बढने दिया। इस बच्चे के पैदा के साथ साथ, मीडिया की दिल्चस्पी और सरोगसी से संबंधित प्रश्णों का तूफान आया था।
== सरोगसी- भारतीय दृश्य ==
भारत, सरोगसी या स्थानापन्न मात्रत्व का एक गंतव्य है। भारतीय सरोगट नारियों की लोकप्रियता बढती जा रही है क्योंकि इस प्रक्रिया भारत मे कम लागत की है। भारतीय क्लीनिकें, एक ही समय मे मूल्य निरधारण मे अधिक से अधिक सरोगट नारियों को भाडा किया है। भारत मे सरोगसी प्रक्रिया कम लागत की है और साथ साथ कानून लचीला भी है। २००८ मे, मंजी के मामले (जापानी बेबी) में भारत के उच्चतम न्यायालय वाणिज्यिक स्थानापन्न मात्रत्व को भारत मे अनुमति देने का आयोजन किया गया है। इसी कारण, भारत को एक और बार सरोगसी प्रक्रिया का उचित गंत्व्य माना गया है और भारत की ओर अंतरराष्ट्रों का आत्मविश्वास बढ गया है। सरोगसी व्यवस्थ को विनिमयित करने के लिए असिस्स्टेड रीप्रोड्क्टिव टेक्नोलजी मसौदा के आयोजन आने वाला है। हालांकी यह संदिण्ध चिकित्साओं द्वारा क्लीनिकों में आत्मविश्वास बढाने के लिए तथा इस व्यवहार को प्रोत्साहित करने की उम्मीद में है।
=== कानूनी प्रापेक्ष्य ===
भारतीय सरकर ने २००८ मे एक विधान प्रारूप किया था जो धीरे-धीरे वर्तमान का ए आर टी रेगुमलेश्ण ड्राफ्ट बिल के रूप मे है, फिल्हाल यह बिल अब तक पास नहीं हुआ हैं। इस बिल द्वारा स्थानापन्न मात्रत्व के सारे प्रमाण पत्रों को कानूनी नियमों के अनुसार स्वीक्रत किया गया है। ईंडियन काँट्राक्ट एक्ट द्वारा सरोगसी प्रक्रिया के स्ंविदाओं को दूसरे स्ंविदाओं के बराबर माना जा सकता है। अकेले जनक या माता-पिता और सरोगेट माँ सारे निर्गमनों तथा समस्याओं पर एक अनुब्ंधन बनाते हुए इस प्रक्रिया को कानून के मध्यम से प्रवर्तनीय बनाया है। सरोगेट माँ की उम्र २१-३५ वर्ष होनी चाहिए और वह एक ही दम्पति के लिए भ्रूण स्थानांतरण ३ से ईज़्यादा बार गुज़रने के लिए अनुमति नहीं दी जएगी यदि सोगेट विवाहित हो तो पति के सहमती अनिवार्य है ताकी भविष्य में वैवाहिक विवादों को टाल सकें। सरोगेट को यौन सन्चारित रोगों के लिए जाँच की जाना चाहिए और पिछ्ले ६ महिनों मे रक्त आधान प्राप्त करना चाहिए क्योंकी यह गर्भावस्था के समय मे माँ और बच्चे पर प्रतीकूल असर पड सकता है। सरोगेट माँ की चिकित्सा का बीमा, गर्भावस्था तथा बच्चे की जन्मसे सम्भन्धित और अन्य उचित खर्च सहित खर्चों माता-पिता द्वारा वहन किया जाना चाहिए। सरोगेट माँ के लिए एक जीवन बीमा कवर को शामिल करना चाहिए। सरोगेट माँ को बच्चों पर किसी भी अभिभाविक अधिकार नहीं होना चाहिए और बच्चे के प्रमाण पत्र पर सरोगेट माँ की नाम नहीं होना चाहिए ताकी भविष्य मे जन्म अधिकार मे कोई कानूनी कलह न हो। माता-पिता कानून के अनुसार बच्चे (सामान्य हो या नहीं) की कस्टाडी को स्वीकार करने के लिए बाध्य है। अत्यंत गुप्त हमेशा बनाए रखा जाना चाहिए और दाता के निजता के अधिकार की रक्षा की जानी चाहिए।
== धार्मिक परिपेक्ष्य ==
=== ईसाई धर्म ===
ईसाइयों सरोगेट माँ के बारे मे उनकी राय मे एकमत सहमती नहीं है। कैथलिक जिरह एक बच्चे की हक नहीं बल्कि एक उपहार माना जाता है और 'एक मांस' सिद्दन्त के अनुसार सरोगसी अस्वीकार्य है। प्रोटेस्टेन्ट स्ंप्रदायों मे सरोगसी संबंधित सवालों कम कटौती तथा शुल्क है। प्रोटेस्टेंट चर्च इसे उदार दृष्टि से देखा जाता है।
==== यहूदी धर्म ===
रूढीवादी रब्बियाँ सरोगसी प्रक्रिया, मात्रत्व अनादर तथा अपमानजनक माना गया है। यह सरोगेट माँ तथा माता-पिता के बीच का अन्तर्निर्हित असन्तुलन तथा आर्थिक मत्भेद को प्रकाशित करता है।परन्तु लोगों के बंजरपन की पीडा को दूर करने के लिए कभी कभी स्वीकार भी करते है।
=== इस्लाम धर्म ===
मुस्लिम विद्धानों शरिया कानून के नज़रैये से सरोगसी प्रक्रिया को अस्वीकार करते हुए कहता है कि पैदा होनेवामले बच्चे को न्यायपूर्व वन्श नहीं मिल सकता है क्योकी तीसरे व्यक्ति के कुल भी जुडे है। फिल्हाल इस प्रक्रिया को विकास संबंधित मुसल्मानो ने अनुकूल किया है।
===हिन्दू धर्म और बौद्द धर्म ===
हिन्दू धर्म विशेष परिस्थितियों मे बंजरपन और कृत्रिम गर्भदान को अनुभूति देति है। और इस मे पित के शुक्राणुओं का उपयोग करते है ताकि बच्चे को अपने वन्श क पत हो।
बौद्द धर्म इस प्रक्रिया को पूरी तरह स्वीकार किया है क्योकी बौद्द धर्म प्रसव को नैतिक कर्तव्यों मे से नहीं माना गया है।