"पिंजर (फ़िल्म)": अवतरणों में अंतर
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कहानी में अमृता प्रीतम मुख्य पात्र पूरो को महिला शक्ति और महत्त्व का प्रतीक बनाती है। उसका पति, राशिद, एक गतिशील पात्र के रूप में पेश ककिया जाता है। मगर पूरो का वर्णन दिखता है कि महिला जनसँख्या के भीतर भी एक दबी हुई क्षमता है। लेखिका समझना चाहती है कि औरत को अपना अधिकार जाताना चाहिए। इसी कारण से यह पुस्तक मशूर हुआ था|
= निर्माण का यात्रा =
पिंजर पीरियड लुक की वजह से सराही गई। स्क्रिप्ट लिखने में आठ महीने लग गए। कुल छे महीने प्रे- प्रोडक्शन में और साथ महीने पोस्ट- प्रोडक्शन में लगे रहे, दो साल में फ़िल्म शूटिंग पूरी की गई । मुंबई फिल्मसिटी में सात एकड में छह सेट लगाए गए थे, जिसे 400 मजदूरों की 40 दिन की मेहनत के बाद तैयार किया गया था। चार करोड़ की लागत से बने सेट पर 50 दिन की शूटिंग हुई। कला निर्देशक मुनीष सप्पल ने अमृतसर, लाहौर के सेट को नाही सिर्फ तैय्यार किया, बल्कि सेट और वेशभूषा को उसी पीरियड के रूप में दर्शाया। इसके लिए इन्होने संग्रहालयों से शोध सामग्री और सहयोगियों का मदद लेकर तैयार किया। इसके अलावा , गांव के वास्तविक दृश्यों के लिए राजस्थान के ढुढलोंद गांव ( नवलगढ़), श्री गंगानगर के मटलीरठान गांव , अमृतसर के सराय अमानत खान , गुजरात के सूरत और मैसाना में फिल्म की आउट डोर शूटिंग हुई है ।
=कहानी का सारांश =
पिंजर पूरो की कहानी है। विभाजन के पहले वह आज के पाकिस्तान के सीमावर्ती गांव में रहती है। समृद्ध जमींदार परिवार की बडी बेटी पूरो की शादी रामचंद से होनी है। उस समय समाज के पारंपरिक मानदंडों का मान रखते हुए, पूरो के भाई- त्रिलोक कि शादी रामचंद की बहन - लज्जो के साथ तय होती हैं। लेकिन उसके पहले ही रशीद नामक मुसलमान उसका अपहरण कर लेता है। रशीद से उनकी पुश्तैनी दुश्मनी है। पूरो के परिवार ने कभी रशीद के परिवार की एक औरत को अगवा और बेइज्जत किया था। रशीद पर दबाव है कि वह इसका बदला ले। जब पुरो रशीद के घर से भागकर, अपनी परिवार के पास वापस लौटती हैं, तब उसकी पिताजी पूरो को, चाहते हुए भी स्वीकाऱने में असमर्थता व्यक्त करते हैं ताकि पूरो के अपहरण से परिवार सामाजिक अपमान का सामना न करे । उन्हें डर है कि रशीद का परिवार पूरे कि परिवार कि हत्या कर देगी। यह घटना इस बात को दर्शाती हैं कि चाहे हिन्दू हो या मुसलमान, दोनों कि पीड़ा और समस्याएँ सार्वभौमिक हैं ।
कड़वी सच का सामना करते हुए, पूरो उदास मन से रशीद के पास वापस लौठती हैं । रशीद उससे कोई सवाल नहीं करता और वे दोनों शादी करते हैं । पूरो के साथ रहते-रहते रशीद उसे प्यार करने लगता है इस बात पिंजर कि पहली छवि को बाहर लाती हैं - राशिद के रूप में एक पिंजरे सामाजिक पिंजरे और प्यार के पिंजरे के पीछे का आयोजन किया गया है ।
पूरो को हमीदा का नाम दिया जाता है। उपन्यास बहुत ही खूबसूरती से पूरो और हमीदा कि जीवन कि अंतर दिखाती है। दोनों एक ही शरीर में बसे हैं लेकिन पूरो अपने सपने में अपनी परिवार कि साथ बिताई गयी मीठी स्मृतियाँ में वक्त्त बिताती है और दिन भर दिन हमीदा होने कि भोज उस पर पड़ती रहती है। हकीकत में ना वो पूरो थी या हमीदा, सिर्फ एक कंकाल।
पूरो कि गर्भपात के बाद, वो एक पग्ली माँ कि बच्चे को अपनाकर उसकी पालन करती है। प्रारंभ में हिंदुओं उसे एक हिंदू बच्चे की परवरिश नहीं होने दिया , लेकिन बाद में बच्चे कि बिमारी के कारण , उसे पूरो और रशीद को सौंप दिया जाता है। यह घटना इस बात पर प्रकाश डालती हैं कि विभाजन के पहले हिंदुओं और मुसलमानों के बीच प्रतिद्वंद्विता कि बीज बोई गयी थी ।
इसी बीच विभाजन होता है। विभाजन के बाद की त्रासदी में उसके मंगेतर रामचंद की बहन का अपहरण हो जाता है। रशीद की मदद से पूरो उसे आजाद कराती है। रशीद के इस प्यार को देखके पूरो को ऐहसास होती हैं कि रशीद अपनी गलती का पश्चाताप करता आ रहा है। इन सारी घटनाओ से पूरो 'हमीदा' नामक व्यक्तित्व को अपनाती हैं । इसीलिए जब पूरो के भाई त्रिलोक उसे भारत वापस लौटने के लिए आग्रह करता है और रामचंद भी उसे अपनाने को तैयार हैं, वो फिर भी रशीद के साथ रहने कि निस्चय लेती हैं,अपनी परिवार से कोसो दूर। भारी मन से अलविदा कहकर, रशीद और हमीदा वापस लौटते है ।
= संगीत =
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यह सारे गाने उत्तम सिंह कि बनायीं गयी है और शब्द गुलज़ार कि लिखी गयी हैं। 'सा रे गा मा पा' ने इन गानो को वाघा बॉर्डर (भारत-पाकिस्तान बॉर्डर) पर रिलीज़ किया था।
=== चलचित्र के गाने ==
* नी शबा (कविता कृष्णामूर्ति, साधना सरगम, उदित नारायण)▼
यह गाना एक शादी के माहौल में दर्शाया गया है और हिंदी और पंजाबी का मेल करता है। इसमें एक बहन वर्णन करती है अपने भाई के शादी में घोड़े पर प्रवेश करने की। <br />▼
▲नी शबा (कविता कृष्णामूर्ति, साधना सरगम, उदित नारायण)
▲यह गाना एक शादी के माहौल में दर्शाया गया है और हिंदी और पंजाबी का मेल करता है। इसमें एक बहन वर्णन करती है अपने भाई के शादी में घोड़े पर प्रवेश करने की।
* मार उडारी (जसपिंदर नरुला, प्रीती उत्तम, अमय, निहार एस, आदी)▼
▲मार उडारी (जसपिंदर नरुला, प्रीती उत्तम, अमय, निहार एस, आदी)
इस गाने को जसपिंदर जी अपने अनोखे अंदाज़ में गाती है। यह भी हिंदी और पंजाबी का मेल करता है और गुलज़ार साह्ब के लिखे गए गीतकाव्यों के साथ यह एक काफ़ी चर्चित गाना बन गया था। इसका श्रेय पूरी तरह से जसपिंदर को ही जाता है।
* हाथ छूटे (जगजीत सिंह, प्रीती उत्तम, रूप कुमार राठोड़)▼
▲हाथ छूटे (जगजीत सिंह, प्रीती उत्तम, रूप कुमार राठोड़)
यह गाना सिंह जी के आवाज़ में गाई हुई एक खूबसूरत गज़ल है। यह दूरीयों के बारे में एक गंभीर गाना है। इस गाने के बोली में अधिक गहराई है जो दिल को तोड़ देता है और दर्शकों को हिला देता है। राठोड़ जी बेहतर तरीके से अपनी कला पेश करते है।
* दर्द मर्या ( वडाली ब्रदर्स, जसपिंदर नरुला)▼
▲दर्द मर्या ( वडाली ब्रदर्स, जसपिंदर नरुला)
यह गाना गम्भीर है और साथ ही साथ ख़ुशी भी मनाता है। वडाली ब्रदर्स गाने के संगीन हिस्सों को संभालते हैं। नरुला जी बाकी गाने को संभालती है, जो अन्य पंजाबी गानों के मुखड़े है। इनकी लाजवाब गएकी और गुलज़ार जी के लिखे मीठी बोलियों के साथ यह गाना दिल पर छाप लगा देता है।
* चरखा चलाती मा (प्रीती उत्तम)▼
▲चरखा चलाती मा (प्रीती उत्तम)
यह गाना अमृता प्रीतम कि लिखी गई एक कहानी है। इसमें एक महिला के जीवन के अन्य स्तिथियों का वर्णन कियागया है - उसके बेटी से माँ के बनने तक। यह भी एक धीमी गती वाला गाना है।
* सीता को देखे (सुरेश वाडकर, साधना सरगम)▼
▲सीता को देखे (सुरेश वाडकर, साधना सरगम)
यह कविता भी अमृता प्रीतम की ही कृति है। इसमें सीता देवी की अग्निपरीक्षा का वर्णन होता है। इसकी बोलियाँ पिछले कविताओं की तरह अधिक सुन्दर हैं मगर इसकी रचना के कारण गाना फीका पड़ जाता है। इसके गायक ने ही गाने को डूब जाने से बचाया है।
* वारिस शानू (प्रीती उत्तम, वडाली ब्रदर्स)▼
▲वारिस शानू (प्रीती उत्तम, वडाली ब्रदर्स)
इस गीत के बोली भी अमृता प्रीतम की लिखी कविता है। इसकी शुरुआत के धीमी आवाज़ों के साथ शुरू होती है और पूरे गाने को वे ही सँभालते है। उत्तम जी के सिर्फ़ कुछ ही हिस्सा है।
* वटना वे (उत्तम सिंह, रूप कुमार राठोड़)▼
▲वटना वे (उत्तम सिंह, रूप कुमार राठोड़)
यह गाना भी हिंदी और पंजाबी का संयोजन है और थोड़ी धीमी गति से चलती है। गीत में भारत और पाकिस्तान के विभाजन एवं वियोग कि बात होती है। इसके गीतात्मक दिल तक पहुँच जाती हैं। एकतारा का प्रयोग बखूबी से किया गया है। राठोड़ जी और सिंह जी अपनी तरफ़ से कोई कसर नहीं छोड़ते हैं।
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मनीष सेप्पल के सेट अत्यंत सुन्दर है और मुहम्म्द अली जिन्नाह जिन्नाह के चुरस, पुराने ट्रुकेँ, आदि दर्शक को १९४७ तक ले चलते हैं। और उस समय में रहने का अनुभव देते हैं। मनोज बाजपाई और प्रियांशू चट्टर्जी, दोनों का आभने उत्तम है। उर्मिला मं।तोडंकर भी अपनी अभिनेता का खूबसूरत प्रदर्शन करती है। अन्त में, चलचित्र दर्शकों को सोचने पर मजबूर करता है मगर एक स्थायी छाप नही छोड़ सका।
= पुरस्कार =
* राष्ट्रीय एकता का राष्ट्रीय पुरस्कार
* स्क्रीन वीकली अवार्ड्स, २००४,
़ सर्वश्रेष्ट कहानी - अमृता प्रीतम
़ सर्वश्रेष्ट कला निर्देशन - मनीष साप्पेल
़ सर्वश्रेष्ट चलचित्रण - सन्तोष तुडियायिल
* ज़ी सिने अवार्ड्स २००४:
़ सर्वश्रेष्ट कहानी और गीतकार - अमृता प्रीतम
़ सर्वश्रेष्ट कला निर्देशन और वेशभूषा रूपकार - मनीष साप्पेल
* गिणड पुरस्कार- प्रथम प्रवेक्षा निर्देशक - चंद्रप्रकाश द्विवेदी
* फिल्मफैर् पुरस्कार- सर्वश्रेष्ट कला निर्देशन - मनीष साप्पेल
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