"हिन्दू पौराणिक कथाएँ": अवतरणों में अंतर

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= <big>देवी</big> =
देवी अपने पुरु प्रतिरूप की शक्ति है, बल है, अन्त:’शक्ति है। शिव की पत्नी के रूप में अधीनस्थ दिखाई देती है, तो दूसरी ओर महादेवी के रूप में ’शिव के बराबर या ब्रह्माण्ड की उच्चतम देवी के रूप में सर्व जीवों की चेतना, शक्ति व साक्रियता का मूलभूत सुोत है। माता अथवा पत्नी के रूप में उसकी पारंपरिक प्रकृति दिखाई इेती है-सुंदर, अज्ञाकारिणी जैसे पार्वती-’शिव, लक्ष्मी-विष्णु ,सरस्वती-ब्रह्मा।
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उग रूप में दुर्गा महिशासुर का वध करने वाली तथा अति उग भे में वह चामुण्डा-काली है जिसने रक्तबीज दानव का रक्त पी लिया अन्यथा उसके रक्त की हर बूंद से पुन: नया दानव उत्पन्न हो जाता था।
 
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चित्र:उदाहरण.jpg|चित्रशीर्षक१
चित्र:उदाहरण.jpg|चित्रशीर्षक२
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== <big>इतर देवता</big> ==
विष्णु, ’शिव, दुर्गा के साथ अनेक अन्य देवी-देवताओं को भी पूजा जाता है। उत्तर वैदिक काल में अरण्यकों और उपनिशदों में ब्राह्मण का महत्तव बढ़ा। पहले प्रजापति बाद में सृजनकर्ता माने जाने लगे।
कुछ देवतागण किसी कार्य विढेश से ही संबंधित माने गए : इंद्र-देवताओं के राजा, अस्र के धारक,वायू र्के देवता, वरुण-जल देवता, यम-काल,मृत्यु के देवता, कुबेर-धनz-संपत्ति के देवता, अग्निदेव,पवनदेव,चंदzदेव, आदि
यम, इंद्र, वरुण व कुबेर लोकपाल कहलाते हैं।’शिव-पार्वती के पुत्र स्कंद-युद्ध के देवता, गणेश-विघ्न विना’शक हैं। प्रत्येक कार्य को सुचारु रूप से संपन्न करने के लिए प्रारंभ में गणेश की पूजा की जाती है।
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देवियों में लक्ष्मी-सौभाज्ञ एवं लौकिक, धन की देवी, सरस्वती-विद्या एवं कला की देवी हैं।
 
===<big>यक्ष-गंधर्व</big>===
हिंदू धार्मिक कथाओं में अनेकानेक देवी-देवता माने गए हैं। नाग-बहुमूल्य को की रक्षा करते हैं, यक्ष-कुबेर के गण हैं, गंधर्व-इंदz के संगीतकार हैं, किन्नर गंधर्वों के साथ रहते हैं, गंधर्वों की स्त्री प्रतिरूप हैं अप्सराएँ, जो सुंदर और कामुक होती हैं।
ऋषियों ने वैदिक शलोकों की संरचना करी। इनमें मुख्य हैं सप्त ऋषि- मारीचि, अत्री, अंगीरस, पुलस्त्य,कृतु, वशिष्ठ। ये तारामंडल के रूप में आकाश में दिखाई देते हैं। दक्ष व कशयप देवों एवं मानवों के पूर्वज हैं, नारद वीणा के आविशकारक, बृहस्पति व शुक सुर तथा असुरों के गुरु, अगस्त्य ने दक्षिण प्रायद्वीप में धर्म एवं संस्कृति का प्रचार किया। पितृ पूर्वजों की आत्माएँ जिन्हें पिंड दान दिया जाता है।<br />
 
असुर मुख्य दुरात्माएँ जो सदा देवजाओं से युद्धरत रहते थे। ये दिति की संतानें दैत्य कहलाते हैं, दनु की संतानें दानव कहलाते हैं। असुरों के प्रमुख राजा वृत्र, हिरणाकशिप, बाली आदि, पुलस्त्य ऋषि के पुत्र रावण राक्षस हैं।
 
====<big>युद्ध</big>====
देव और असुरों के बीच त्रिलोक के लिए कुल 12 भीण युद्ध हुए। हिरणाक्ष्य-वराह युद्ध जिसमें हिरणाक्ष्य दिव्य सागर में मारा गया। नरसिंह-हिरण्याक’शिप युद्ध-नरसिंह ने दैत्य का वध किया।वजगपुत्र तारकासुर स्कंद द्वारा मारा गया। अंधक वध इसमें अंधकासुर ’शिव के द्वारा मारा गया।<br />
पंचम युद्ध में देवता जब तारकासुर के तीन पुत्रों को मारने में विफल हुए, तब ’शिव ने अपने धनु पिनाक के एक बाण से तीनों को उनके नगरों समेत ध्वस्त कर दिया।
अमृतमंथन-इंद ने महाबली को परास्त किया वामन अवतार धर विष्णु ने तीन पग में त्रिलोक लेकर महाबली को बंदी बनाया।
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शस्त्र-जिनको हाथ में पकड़ कर प्रहार किया जाता है जैसे तलवार,कटार। अस्त्र-जिनको शत्रु पर फेंका जाता है जैसे बॅाण।
पारंपरिक अस्त्र- शस्त्र जैसे धनु-बाँण,तलवार,कटार,भाले,गदा, ढाल के अतिरिक्त दैविक अस्त्र जैसे इंद्र का अस्र,ब्स्त्र,त्रिशूल,सुदर्शन चक्र,पिनाक आदि हैं। अनेक अस्त्र ई’वरों द्वारा देवताओं,राक्षसों या मनुष्यों को वरदान स्वरूप दिए जाते थे जैसे, ब्रह्मास्त्र,आग्नेयास्त्र। इन्हें चलाने के लिए विश ज्ञान का होना आवश्यक था।
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कुछ अस्त्र एक सुनिशि्चत कार्य के लिए ही बने होते थे यथा - नागास्त्र जिसके उपयोग से विरोधी सेना पर कोटी-कोटी सर्पों की वृष्टि हो जाती थी। आग्नेयास्त्र विरोधी को जलाने, वरुणास्त्र अग्निशमन करने अथवा बाढ़ लाने के लिए,ब्रह्मास्त्र का प्रयोग केवल शत्रु विशेश पर ही प्राणघाती वार करने के लिए होता था। इनके अतिरिक्त अन्य दैविक उपकरणों का उल्लेख भी है जैसे कवच, कुण्डल, मुकुट, शिरस्त्राण आदि।
 
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चित्र:उदाहरण.jpg|चित्रशीर्षक१
चित्र:उदाहरण.jpg|चित्रशीर्षक२
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======<big>प्रलय</big>======
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<ref>Sanskrit Documents Collection: Documents in ITX format of Upanishads, Stotras etc.</ref>
<ref>Clay Sanskrit Library publishes classical Indian literature, including the Mahabharata and Ramayana, with facing-page text and translation. Also offers searchable corpus and downloadable materials.</ref>
<ref>Williams, George (2003). Handbook of Hindu mythology. ABC-Clio Inc. ISBN 1-57607-106-5.</ref>