"शास्त्रीय संगीत": अवतरणों में अंतर

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==इतिहास==
भारतीय शास्त्रीय संगीत की परम्परा [[भरत मुनि]] के '''[[नाट्यशास्त्र]]''' और उससे पहले [[सामवेद]] के गायन तक जाती है। भरत मुनि द्वारा रचित भरत नाट्य शास्त्र, भारतीय संगीत के इतिहास का प्रथम लिखित प्रमाण माना जाता है. इसकी रचना के समय के बारे में कई मतभेद हैं। आज के भारतीय शास्त्रीय संगीत के कई पहलुओं का उल्लेख इस प्राचीन ग्रंथ में मिलता है। भरत मुनि के नाटयशास्त्र के बाद मतङ्ग मुनि की बृहद्देशी, और शारंगदेव रचित संगीत रत्नाकर, ऐतिहासिक दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ माना जाता है। बारहवीं सदी के पूर्वार्द्ध में लिखे सात अध्यायों वाले इस ग्रंथ में संगीत व नृत्य का विस्तार से वर्णन है।
 
'''[[संगीत रत्नाकर]]''' में कई तालों का उल्लेख है व इस ग्रंथ से पता चलता है कि प्राचीन भारतीय पारंपरिक संगीत में बदलाव आने शुरू हो चुके थे व संगीत पहले से उदार होने लगा था मगर मूल तत्व एक ही रहे। 11वीं और 12वीं शताब्दी में मुस्लिम सभ्यता के प्रसार ने उत्तर भारतीय संगीत की दिशा को नया आयाम दिया। राजदरबार संगीत के प्रमुख संरक्षक बने और जहां अनेक शासकों ने प्राचीन भारतीय संगीत की समृद्ध परंपरा को प्रोत्साहन दिया वहीं अपनी आवश्यकता और रुचि के अनुसार उन्होंने इसमें अनेक परिवर्तन भी किए। इसी समय कुछ नई शैलियाँ भी प्रचलन में आईं जैसे खयाल, गज़ल आदि और भारतीय संगीत का कई नये वाद्यों से भी परिचय हुआ जैसे [[सरोद]], [[सितार]] इत्यादि।
 
भारतीय संगीत के आधुनिक मनीषी स्थापित कर चुके हैं कि वैदिक काल से आरम्भ हुई भारतीय वाद्यों की यात्रा क्रमश: एक के बाद दूसरी विशेषता से इन यंत्रों को सँवारती गयी। एक-तंत्री वीणा ही त्रितंत्री बनी और सारिका युक्त होकर मध्य-काल के पूर्व किन्नरी वीणा के नाम से प्रसिद्ध हुई। मध्यकाल में यह यंत्र जंत्र कहलाने लगा जो बंगाल के कारीगरों द्वारा आज भी इस नाम से पुकारा जाता है। भारत में पहुँचे मुस्लिम संगीतकार तीन तार वाली वीणा को सह (तीन) + तार = सहतार या सितार कहने लगे। इसी प्रकार सप्त तंत्री अथवा चित्रा-वीणा, सरोद कहलाने लगी। उत्तर भारत में मुगल राज्य ज्यादा फैला हुआ था जिस कारण उत्तर भारतीय संगीत पर मुसलिम संस्कृति व इस्लाम का प्रभाव ज्यादा महसूस किया गया। जबकि दक्षिण भारत में प्रचलित संगीत किसी प्रकार के मुस्लिम प्रभाव से अछूता रहा।
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== भारतीय शास्त्रीय संगीत पद्धतियां ==
 
भारतीय शास्त्रीय संगीत की दो प्रमुख पद्धतियां हैं-
 
=== [[हिन्दुस्तानी संगीत]] ===
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=== [[कर्नाटक संगीत]] ===
यह दक्षिण भारत में प्रचलित हुआ। हिन्दुस्तानी संगीत मुगल बादशाहों की छत्रछाया में विकसित हुआ और कर्नाटक संगीत दक्षिण के मन्दिरों में। इसी कारण दक्षिण भारतीय कृतियों में भक्ति रस अधिक मिलता है और हिन्दुस्तानी संगीत में श्रृंगारशृंगार रस।
 
;कर्नाटक संगीत के प्रमुख रागों की सूची
[[राग हंसध्वनि]]
 
फोप्प्य वोन्क्तय डोन्केय डिच्क्
 
==चित्रवीथिका==
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चित्र:Tabla y duggi6.JPG|तबलावाद्यम्
चित्र:The Childrens Museum of Indianapolis - Sarangi.jpg|सारङ्गीवाद्यम्
चित्र: PAUL HARMONIUM11.jpg|हार्मोनियं वाद्यम्
चित्र: Ghatam.jpg|घटम्
चित्र: Indian bamboo flute.jpg|वेणुवाद्यम्
 
चित्र:Clarinet.jpg|सुमुरलीवाद्यम्
चित्र:Stainer.jpg|बाहुलीनावाद्याम्
चित्र:Elathalam.jpg|तालवाद्यम्
चित्र:Trumpet 1.jpg|गोविषाणिकवाद्यम्
चित्र:Saxophone alto.jpg|रणमुरलीवाद्यम्
चित्र:Resorocket guitar.jpg|दन्तवीणावाद्यम्
चित्र:Veena.png|वीणावाद्यम्
चित्र:Sitar full.jpg|सितारवाद्यम्
चित्र:Kadum Thudi.jpg|डक्कावाद्यम्
चित्र:Chandebadagufull.jpg|चण्डवाद्यम्
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== बाहरी कड़ियाँ ==