"बदायूँ": अवतरणों में अंतर

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== स्थापना ==
यह जान पड़ता है कि अहिच्छत्रा नगरी, जो अति प्राचीन काल से उत्तर पांचाल की राजधानी चली आई थी, इस समय तक अपना पूर्व गौरव गँवा बैठी थी। एक किंवदन्ती में यह भी कहा गया है कि, इस नगर को अहीर सरदार राजा बुद्ध ने 10वीं शती में बसाया था। 13 वीं शताब्दी में यह दिल्ली के मुस्लिम राज्य की एक महत्त्वपूर्ण सीमावर्ती चौकी था और 1657 में बरेली द्वारा इसका स्थान लिए जाने तक प्रांतीय सूबेदार यहीं रहता था। 1838 में यह ज़िला मुख्यालय बना। कुछ लोगों का यह मत है कि बदायूँ की नींव अजयपाल ने 1175 ई. में डाली थी। राजा लखनपाल को भी नगर के बसाने का श्रेय दिया जाता है।
 
गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए राजा भगीरथ ने कहां तपस्या की थी। यहां गंगा के कछला घाट से कुछ ही दूर पर बूढ़ी गंगा के किनारे एक प्राचीन टीले पर अनूठी गुफा है। कपिल मुनि आश्रम के बगल स्थित इस गुफा को भगीरथ गुफा के नाम से जानते हैं। पहले यहां राजा सगर के 60 हजार पुत्रों की भी मूर्तियां थी, जो कुछ साल पहले चोरी चली गईं। करीब ही राजा भगीरथ का एक अति जीर्ण-शीर्ण मंदिर है, जहां अब सिर्फ चरण पादुका बची हैं।
अध्यात्मिक दृष्टि से सूकरखेत (बाराह क्षेत्र) का वैसे भी बहुत महत्व है। बदायूं के कछला गंगा घाट से करीब पांच कोस की दूरी पर कासगंज की ओर बढ़कर एक बोर्ड दिखाई पड़ता है, जिस पर लिखा है भगीरथ गुफा। एक गांव है होडलपुर। थोड़ी दूर जंगल के बीच एक प्राचीन टीला दिखाई पड़ता है। बरगद का विशालकाय वृक्ष और अन्य पेड़ों के झुरमुटों बीच मठिया है। इसी टीले पर स्थित है कपिल मुनि आश्रम और भगीरथ गुफा। लाखोरी ईंटें से बनी एक मठिया के द्वार पर हनुमानजी की विशालकाय मूर्ति लगी है। भीतर प्रवेश करने पर एक मूर्ति और दिखाई पड़ती है, इसे स्थानीय लोग कपिल मुनि की मूर्ति बताते हैं। मूर्ति के बगल से ही सुरंगनुमा रास्ता अंदर को जाता है, जिसमें से एक व्यक्ति ही एक बार में प्रवेश कर सकता है। पांच मीटर भीतर तक ही सुरंग की दीवारों पर लाखोरी ईटें दिखाई पड़ती हैं। इसके बाद शुरू हो जाती है कच्ची अंधेरी गुफा। सुरंगनुमा रास्ते से भीतर जाने के बाद एक बड़ी कोठरी मिलती है, जहां एक शिवलिंग भी कोने में है। कोठरी के बाद फिर सुरंग और फिर कोठरी। पहले गंगा इसी टीले के बगल से होकर बहती थीं। अभी भी गंगा की एक धारा समीप से होकर बहती है, जिसे बूढ़ी गंगा कहते हैं। टीले के नीचे स्थित मंदिर से दुर्लभ मुखार बिंदु शिवलिंग भी चोरी चला गया था। बाद में पुलिस ने पाली (अलीगढ़) के एक तालाब से शिवलिंग तो बरामद कर लिया, लेकिन सगर पुत्रों की मूर्तियों का अभी भी कोई पता नहीं है। इसी टीले पर तीन समाधि भी हैं, इनमें से एक को गोस्वामी तुलसीदास के गुरु नरहरिदास की समाधि कहते हैं।
 
== इतिहास ==