"वैज्ञानिक प्रबन्धन": अवतरणों में अंतर
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अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) |
अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) |
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बैथलहम स्टील कंपनी, जिसमें टेलर स्वयं कार्यरत थे, में वैज्ञानिक प्रबंध के सिद्धांतों को लागू करने से उत्पादकता में तीन गुणा वृद्धि हुई। इसलिए इन सिद्धांतों पर विचार करना उचित ही होगा।
===विज्ञान पद्धति, न कि
टेलर ने प्रबंध के क्षेत्र में वैज्ञानिक पद्धति को लागू करने की पहल की। हम पहले ही प्रबंध अंगूठा टेक नियम की सीमाओं की चर्चा कर चुके हैं। अब क्योंकि सभी प्रबंधक अपने-अपने अंगूठा टेक नियमों को अपनाएँगे इसलिए स्वभाविक है कि सभी समान रूप से प्रभावी नहीं होंगे। टेलर का विश्वास था कि अधिकतम कार्यक्षमता में वृद्धि केवल एक ही सर्वोत्तम विधि थी। इस पद्धति को अध्ययन एवं विश्लेषण के द्वारा विकसित किया जा सकता है। इस प्रकार से विकसित पद्धति को पूरे संगठन में ‘अंगूठा टेक नियम’ के स्थान पर लागू करना चाहिए। वैज्ञानिक पद्धति में प्रारंभिक प्रणालियों का कार्य अध्ययन, सर्वश्रेष्ठ तरीकों का एकीकरण एवं स्तरीय पद्धति के विकास के माध्यम से जाँच पड़ताल सम्मिलित थी, जिसे कि पूरे संगठन में अपनाया जाना चाहिए। टेलर के अनुसार लोहे की छड़ों को डब्बाबंद गाड़ियों में लादने की छोटी सी उत्पादन क्रिया को भी वैज्ञानिक ढंग से नियोजित किया जा सकता है एवं उसका प्रबंधन किया जा सकता है। इससे मानवीय शक्ति एवं समय तथा माल की बर्बादी में भारी बचत होगी। जितनी अधिक व्यवस्थित प्रक्रिया होगी उतनी ही अधिक बचत होगी।
वर्तमान संदर्भ में इंटरनेट का प्रयोग आंतरिक कार्यकुशलता एवं ग्राहक की संतुष्टि में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया है।
===सहयोग, न कि टकराव===
उत्पादन की कारखाना प्रणाली में प्रबंधक, मालिक एवं श्रमिकों के बीच की कड़ी होते हैं। प्रबंधकों को श्रमिकों से कार्य पूरा कराने का अधिकार मिला होता है इसलिए आप सरलता से समझ सकते हैं कि एक प्रकार वे वर्ग भेद अर्थात् प्रबंधक बनाम श्रमिक, की सदा संभावना बनी रहती है। टेलर ने पाया कि इस टकराव से, श्रमिक, प्रबंधक अथवा कारखाना मालिक किसी को लाभ नहीं पहुँचाता है। उसने प्रबंध एवं श्रमिकों के बीच पूरी तरह से सहयोग पर जोर दिया। दोनों को समझना चाहिए कि दोनों का ही महत्त्व है। इस स्थिति को पाने के लिए टेलर ने प्रबंधक एवं श्रमिक दोनों में संपूर्ण मानसिक क्रांति का आहवान किया। इसका अर्थ था कि प्रबंधक एवं श्रमिक दोनों की सोच में बदलाव आना चाहिए। ऐसा होने पर श्रमिक संगठन भी हड़ताल करने आदि की नहीं सोचेंगे। यदि कंपनी को लाभ होता है तो प्रबंधकों को चाहिए कि वह इसे कर्मचारियों में बाँटे। कर्मचारियों को भी चाहिए कि कंपनी की भलाई के लिए वह परिश्रम करें एवं परिवर्तन को अपनाएँ। टेलर के अनुसार वैज्ञानिक प्रबंध इस दृढ़ विश्वास पर आधारित है कि दोनों का हित समान है, कर्मचारियों की समृद्धि के बिना प्रबंधकों की समृद्धि और इसके विपरीत प्रबंधकों की समृद्धि के बिना कर्म श्रमिकों की समृद्धि भी अधिक समय तक नहीं रह सकती। जापानियों की कार्य संस्कृति इस स्थिति का उत्कृष्ट उदाहरण है। जापानी कंपनियों में पितृवत्त शैली का प्रबंध होता है। प्रबंधक एवं श्रमिकों के बीच कुछ भी छुपा नहीं होता। श्रमिक यदि हड़ताल करते हैं तो वह काले बिल्ले लगा लेते हैं लेकिन प्रबंध की सहानुभूति प्राप्त करने के लिए सामान्य घंटों से भी अधिक कार्य करते हैं।
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