"श्यामजी कृष्ण वर्मा": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:ShyamjiKriShnaVerma.jpg|right|thumb|250px|श्यामजी कृष्ण वर्मा (सौजन्य से [[:en:User:Nizil Shah|Nizil Shah]])]]
'''श्यामजी कृष्ण वर्मा''' ([[जन्म]]: 4 अक्टूबर, 1857 - [[मृत्यु]]: 31 मार्च, 1933) क्रान्तिकारी गतिविधियों के माध्यम से भारत की आजादी के संकल्प को गतिशील करने वाले अध्यवसायी एवं कई क्रान्तिकारियों के प्रेरणास्रोत थे। वे पहले भारतीय थे, जिन्हें ऑक्सफोर्ड से एम.ए.[[एम॰ए॰]] और बैरिस्टर की उपाधियाँ मिलीं थीं। [[पुणे]] में दिये गये उनके [[संस्कृत]] के भाषण से प्रभावित होकर मोनियर विलियम्स ने वर्माजी को ऑक्सफोर्ड में [[संस्कृत]] का सहायक प्रोफेसर बना दिया था। उन्होनेउन्होंने [[लन्दन]] में [[इण्डिया हाउस]] की स्थापना की जो [[इंग्लैण्ड]] जाकर पढ़ने वालोंवाले छात्रों के परस्पर मिलन एवं विविध विचार-विमर्श का एक प्रमुख केन्द्र था।
 
== जीवन वृत्त ==
श्यामजी कृष्ण वर्मा का जन्म 4 अक्टूबर, 1857 को [[गुजरात]] प्रान्त के [[मांडवी लोकसभा क्षेत्र|मांडवीमाण्डवी गाँव]] में हुआ था।था जो अब [[मांडवी लोकसभा क्षेत्र]] हो चुका है। उन्होंने 1888 में [[अजमेर]] में वकालत के दौरान [[स्वराज]] के लिएलिये काम करना शुरू कर दिया था। [[मध्यप्रदेश]] मेंके [[रतलाम]] और गुजरात मेंके [[जूनागढ़]] में दीवान रहकर उन्होंने जनहित के काम किए।किये। मात्र बीस वर्ष की आयु से ही वे क्रांतिकारीक्रान्तिकारी गतिविधियों में हिस्सा लेने लगे थे। वे लोकमान्य [[बाल गंगाधर तिलक]] और [[स्वामी दयानंद सरस्वती]] से प्रेरित थे। 1918 के [[बर्लिन]] और इंग्लैंडइंग्लैण्ड में हुए विद्या सम्मेलनों में उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया था।
 
1897 में वे पुनः इंग्लैंडइंग्लैण्ड गए।गये। 1905 में [[लॉर्ड कर्जन]] की ज्यादतियों के विरुद्ध संघर्षरत रहे। इसी वर्ष इंग्लैंडइंग्लैण्ड से मासिक समाचार-पत्र "द इंडियनइण्डियन सोशियोलोजिस्ट" निकाला, जिसे आगे चलकर [[जिनेवा]] से भी प्रकाशित किया गया। इंग्लैंडइंग्लैण्ड में रहकर उन्होंने [[इंडिया हाउस]] की स्थापना की। भारत लौटने के बाद 1905 में उन्होंने क्रान्तिकारी छात्रों को लेकर [[इंडियनइण्डियन होम रूल सोसायटी]] की स्थापना की।
 
उस समय यह संस्था क्रान्तिकारी छात्रों के जमावड़े के लिएलिये प्रेरणास्रोत सिद्ध हुई। क्रान्तिकारी शहीद [[मदनलाल ढींगरा]] उनके प्रिय शिष्यों में थे। उनकी शहादत पर उन्होंने छात्रवृत्ति भी शुरू की थी। [[विनायक दामोदर सावरकर|वीर सावरकर]] ने वर्माजी का मार्गदर्शन पाकर लन्दन में रहकर लेखन कार्य किया था। 31 मार्च, 1933 को जिनेवा के एक अस्पताल में वे सदा के लिये चिरनिद्रा में सो गये।
 
==अस्थियों का भारत में संरक्षण==
वर्माजी का दाह संस्कार करके उनकी अस्थियों को जिनेवा की सेण्ट जॉर्ज सीमेट्री में सुरक्षित रख दिया गया। बाद में उनकी पत्नी भानुमती कृष्ण वर्मा का जब निधन हो गया तो उनकी अस्थियाँ भी उसी सीमेट्री में रख दी गयीं।
 
22 अगस्त 2003 को भारत की स्वतन्त्रता के 55 वर्ष बाद गुजरात के मुख्यमन्त्री [[नरेन्द्र मोदी]] ने स्विस सरकार से अनुरोध करके [[जिनेवा]] से श्यामजी कृष्ण वर्मा और उनकी पत्नी भानुमती की अस्थियों को भारत मँगाया। [[बम्बई]] से लेकर [[माण्डवी]] तक पूरे राजकीय सम्मान के साथ भव्य जुलूस की शक्ल में उनके अस्थि-कलशों को [[गुजरात]] लाया गया। वर्मा के जन्म स्थान में दर्शनीय '''क्रान्ति-तीर्थ''' बनाकर उसके परिसर स्थित [[मन्दिर|श्यामजीकृष्ण वर्मा स्मृतिकक्ष]] में उनकी स्मृतिअस्थियों को संरक्षण प्रदान किया।<ref>{{cite news|url=http://www.telegraphindia.com/1030825/asp/nation/story_2296566.asp|title=Road show with patriot ash|last=Soondas|first=Anand|work= द टेलीग्राफ, कलकत्ता, भारत|date=24 अगस्त 2003|accessdate =10 फरबरी 2014}}</ref>
 
उनके जन्म स्थान पर गुजरात सरकार द्वारा विकसित श्रीश्यामजी कृष्ण वर्मा मेमोरियल को गुजरात के मुख्यमन्त्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 13 दिसम्बर 2010 को राष्ट्र को समर्पित किया गया। [[कच्छ]] जाने वाले सभी देशी विदेशी पर्यटकों के लिये माण्डवी का क्रान्ति-तीर्थ एक उल्लेखनीय पर्यटन स्थल बन चुका है।