"श्यामजी कृष्ण वर्मा": अवतरणों में अंतर

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1897 में वे पुनः इंग्लैण्ड गये। 1905 में [[लॉर्ड कर्जन]] की ज्यादतियों के विरुद्ध संघर्षरत रहे। इसी वर्ष इंग्लैण्ड से मासिक समाचार-पत्र "द इण्डियन सोशियोलोजिस्ट" निकाला, जिसे आगे चलकर [[जिनेवा]] से भी प्रकाशित किया गया। इंग्लैण्ड में रहकर उन्होंने [[इंडिया हाउस]] की स्थापना की। भारत लौटने के बाद 1905 में उन्होंने क्रान्तिकारी छात्रों को लेकर इण्डियन होम रूल सोसायटी की स्थापना की।
 
उस समय यह संस्था क्रान्तिकारी छात्रों के जमावड़े के लिये प्रेरणास्रोत सिद्ध हुई। क्रान्तिकारी शहीद [[मदनलाल ढींगरा]] उनके प्रिय शिष्यों में थे। उनकी शहादत पर उन्होंने छात्रवृत्ति भी शुरू की थी। [[विनायक दामोदर सावरकर|वीर सावरकर]] ने वर्माजी का मार्गदर्शन पाकर लन्दन में रहकर लेखन कार्य किया था। 31 मार्च, 1933 को जिनेवा के एक अस्पताल में वे सदा के लिये चिरनिद्रा में सो गये।
 
31 मार्च, 1930 को जिनेवा के एक अस्पताल में वे अपना नश्वर शरीर त्यागकर चले गये। उनका शव अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों के कारण भारत नहीं लाया जा सका और वहीं उनकी [[अन्त्येष्टि]] कर दी गयी। बाद में गुजरात सरकार ने काफी प्रयत्न करके जिनेवा से उनकी अस्थियाँ भारत मँगवायीं।<ref name="क्रान्त"> {{cite book |last1=क्रान्त |first1=|authorlink1= |last2= |first2= |editor1-first= |editor1-last= |editor1-link= |others= |title=स्वाधीनता संग्राम के क्रान्तिकारी साहित्य का इतिहास |url=http://www.worldcat.org/title/svadhinata-sangrama-ke-krantikari-sahitya-ka-itihasa/oclc/271682218 |format= |accessdate=११ फरबरी २०१४ |edition=1 |series= |volume=1 |date= |year=2006 |month= |origyear= |publisher=प्रवीण प्रकाशन |location=नई दिल्ली |language=Hindi |isbn= 81-7783-119-4|oclc= |doi= |id= |page=२५० |pages= |chapter= |chapterurl= |quote=गुजरात सरकार ने प्रयत्न करके जिनेवा से उनकी अस्थियाँ भारत मँगवायीं और उनकी अन्तिम इच्छा का समादर किया।|ref= |bibcode= |laysummary= |laydate= |separator= |postscript= |lastauthoramp=}}</ref>
 
==अस्थियों का भारत में संरक्षण==