"वार्षिकी (वित्त)": अवतरणों में अंतर

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[[वित्त सिद्धांत]] में '''वार्षिक भृति''' या '''वार्षिकी''' (annuity) का मतलब ऐसे भुगतान से है जो एकसमान मात्रा में निश्चित अन्तराल पर एक निश्चित अवधि तक किया जाता है।
 
उदाहरण के लिये [[बचत खाता]] में नियमित अन्तराल पर कोई निश्चित राशि जमा करना; घर की खरीदी पर मासिक [[किस्त]] की अदायगी; मासिक बीमा प्रिमियम जमा करना आदि। वार्षिकी (एनुइटी) का भुगतान साप्ताहिक, मासिक, त्रिमासिक, वार्षिक या किसी अन्य अन्तराल पर किया जाता है।
 
==परिचय==
वार्षिक भृति किसी दरिद्र या योग्य व्यक्ति की सहायता के लिए दी जानेवाली वृत्ति (stipend), अथवा किसी व्यक्ति के भरण पोषण के लिए वर्ष में दिए जानेवाले भत्ते, को वार्षिक भृति कहते हैं। इस प्रकार की सहायता के रूप में दिया गया धन अनेक किस्तों में, किसी निश्चित समय के अंतर पर, जैसे मासिक, त्रैमासिक या वार्षिक, दिया जाता है। अधिक व्यापक रूप में हम अनुदानों की किसी भी शृंखला (series of payments) को भृति कह सकते हैं। छात्रवृत्ति तथा पेंशन से सभी परिचित हैं। भारत सरकार के १५ वर्षीय भृतिपत्र (Annuity Certificates) भी इसी के उदाहरण हैं तथा राष्ट्रीय कोष बचत जमापत्रों (Treasury Saving Deposit Certificates) पर मिलनेवाले ब्याज की शृंखला भी भृति कहलाती है।
 
अनुदानों की शृंखला के भेद से भृतियों के भी अनेक भेद हो सकते हैं। जिस प्रकार ब्याज की दर साधारणत: 'प्रति वर्ष' दी जाती हैं, चाहे ब्याज वर्ष में अनेक बार देय हो, उसी प्रकार भृति चाहे वर्ष में कितनी बार भी देय हो, 'भृति धन प्रतिवर्ष' के हिसाब से आँका जाता है। यदि किसी को १०० रु. मासिक मिलते हैं, तो भृतिधन १,२०० रु. हुआ।
 
भृतियाँ दो प्रकार की होती हैं, एक जिनका संबंध केवल 'काल' से होता है, जैसे १५ वर्षीय भृतिपत्र। यहाँ पर भृतिपत्र का मालिक कोई भी हो, भृति ठीक १५ वर्ष तक मिलती रहेगी, न कम न अधिक। इसलिए इस प्रकार की भृतियों को 'नियत अवधि' या 'निश्चित' भृतियाँ (Annuities Certain) कह सकते हैं।
 
दूसरी वे भृतियाँ हैं, जिनका किसी जीवन (या अनेक जीवनों) से संबंध होता है, यथा मोहन के जीवन पर १,२०० रु. प्रति वर्ष की त्रैमासिक भृति है। इसके अंतर्गत मोहन जब तक जीवित रहेगा, तब तक हर तीन महीने पर ३०० रु. मिलते रहेंगे। यदि मोहन भृति के प्रारंभ के बाद ५० वर्ष जीता है, तो उसे ६०,००० रु. मिल सकते हैं, किंतु यदि १५ वर्ष जीवित रहता है तो केवल १८,००० रु. मिलेंगे। जैसे जीवन बीमे में यह नहीं कह सकते कि बीमाकर्ता (Insurer) को प्रस्तावक से कितना धन बीमा शुल्क (premiums) में मिलेगा, उसी प्रकार यहाँ पर भी नहीं कह सकते कि प्रस्तावक को कुल कितना धन भृति के रूप में मिलेगा। ऐसी भृति को 'जीवन भृति' (Life Annuity) कहेंगे।
 
मनुष्य की मृत्यु निश्चित है, पर उसका समय कोई नहीं बता सकता। फलत: दो समस्याएँ मनुष्य के सामने आती हैं, प्रथम असमय में मृत्यु हो जाने पर आश्रितों का भरण पोषण कैसे होगा? दूसरी श्रम से थक जाने पर, अथवा सेवानिवृत्त होने पर, अपना ही भरणपोषण मृत्युपर्यंत कैस होगा
 
एक ६० वर्ष का वृद्ध पुरुष बीमा निगम को ४० हजार देकर ३०० रु. मासिक की जीवन भृति प्राप्त करता है। अब वह ४० छोड़ चाहे ५० वर्ष जीवित रहे, कोई चिंता नहीं, उसे ३०० रु. प्रति मास मिलते ही रहेंगे। ४० हजार की पूँजी कहाँ और कैसे लगाई जाए कि अच्छा सूद भी मिले तथा रुपया भी न डूबे आदि, कोई चिंता उसे अब नहीं करनी है। चिंता न होने से अधिक स्वस्थ और दीर्घजीवन की भी संभावना है।
 
किंतु यदि यही पुरुष चार ही वर्ष बाद मर जाए, तो कुल १४,४०० रु. ही प्राप्त होंगे। उस समय यह कह सकते हैं कि इस माया रूपी संसार से जीर्णशीर्ण शरीर को जल्दी छुट्टी मिली। किंतु ऐसी बात से किसी को संतोष न होगा, विशेष कर यदि कोई सगे संबंधी जीवित हों। ऐसी दशा में यह व्यक्ति नियत अवधि गारंटी जीवन भृति ले सकता है। उदाहरण के लिए, उस व्यक्ति ने १५ वर्ष की गारंटी के साथ जीवन भृति ली। अब उसे ४० हजार रुपए से रु. २४४.८० प्रति मास मिलेंगे। यदि प्रस्ताव करते ही उसकी मृत्यु हो जाए, तो भी नामित (nominee) को रु. ४४,०६४ भृति के रूप में प्राप्त होंगे। इस प्रकार इस दशा में भी १.२५ प्रतिशत की दर से सूद सहित पूँजी वापस हो जाएगी। यदि १५ वर्ष से अधिक जीवित रहे, तो जितने दिन जीवित रहेगा उतना ही लाभ होगा। जीवन से संबंधित होने के कारण, इनका क्रयमूल्य मर्त्यता पर निर्भर करता है।
 
यह आवश्यक नहीं कि जीवनभृति सेवानिवृत्त होने पर ही ली जाए। सेवानिवृत्त होने पर तत्काल देय भृति (immediate annuity) ली जाती है। पर बहुत पहले ही आस्थगित (deferred) भृति ली जा सकती है। ३५ वर्ष की आयु पर ही लगभग १,०२५ रु. वार्षिक शुल्क (२५ वर्षों तक) देकर ६० वर्ष की आयु से मृत्युपर्यंत ३०० रु. मासिक अथवा १५ वर्ष की गारंटी सहित २४७.७३ रु. मासिक बीमा निगम के द्वारा प्राप्त किए जा सकते हैं। दिए हुए शुल्कों पर आयकर से छूट भी प्राप्त हो सकती है।
 
एक प्रश्न और आता है कि भृति के अधिष्ठित होने से पूर्व ही यदि भृतिदार की मृत्यु हो जाए, तो ऐसी दशा में यदि नामित को कुछ न दिया जाए तो अच्छा न होगा। वास्तव में सेवानिवृत्त होने से पूर्व प्रस्तावक की मृत्यु हो जाने की दशा में उसके आश्रितों को धन की अधिक आवश्यकता होती है। अतएव साधारणत: ऐसी दशा में दिए हुए शुल्क वापस कर दिए जाते हैं। १,०२५ रु. का वार्षिक शुल्क इसी प्रकार की भृति योजना के लिए है। यह शर्त साथ न होती तो शुल्क और कम होता।
 
इस दृष्टि से शायद यह अधिक अच्छा होगा कि कुछ अधिक शुल्क (१,२७५ रु. वार्षिक) देकर ३०,००० रु. का लाभ सहित, या (१,४६३ रु. वार्षिक द्वारा) ४०,००० रु. का लाभरहित बीमा २५ वर्षों के लिए बंदोबस्ती योजना में करा लिया जाए और ६० वर्ष की आयु प्राप्त होने पर बीमा धन से तत्काल देय जीवन भृति ले ली जाए। किंतु संभव है, २५ वर्ष बाद सूद की दरें गिर जाएँ और तत्काल देय भृति का क्रय मूल्य बढ़ जाए। ऐसी अवस्था में दूसरा ढंग यह हो सकता है कि जीवन की दोनों समस्याओं (अकाल मृत्यु और दीर्घायु) का अलग अलग, कम से कम मूल्य में, समाधान किया जाए। पहले के लिए उचित धनराशि का केवल अवधि बीमा (term assurance) किया जाए, जिसें सेवानिवृत्त होने से पूर्व मृत्यु हो जाने की दशा में बीमाधन मिले, अन्यथा कुद नहीं। दीर्घायु व्यक्ति के लिए वह आस्थगित जीवन भृति दी जाए, जिसमें मृत्युपरांत कुछ न मिले। साधारणत: ऐसे बीमे दिए नहीं जाते, किंतु सामूहिक बीमा योजनाओं में प्राप्त होते हैं।
 
एक प्रश्न यह भी है कि सेवानिवृत्त होने पर कितनी भृति की आवश्यकता होगी, उस समय जीवन निर्वाह का स्तर क्या होगा तथा मूल्य कैस होंगे? उत्तर आसान नहीं, किंतु कह सकते हैं कि यदि भृति सेवानिवृत्त होने से ठीक पूर्व की आय से संबंधित हो, तो प्रश्न का बहुत कुछ समाधान हो जाता है। ऐसा प्रबंध वेतनभोगियों के सामूहिक बीमा योजनओं द्वारा सुगमता से होता है।
 
इनमें नियोजक (employer) के लिए शुल्क का एक भाग (प्राय: २५ प्रतिशत) वहन करना आवश्यक होता है। साथ ही भविष्य में प्रत्येक नए बीमे योग्य (eligible) कर्मचारी का सम्मिलित होना आवश्यक होता है। बीमाधन एवं भृतिधन वेतनादि पर निर्धारित किए जाते हैं तथा हर वर्ष फिर से (बढ़ाकर) नियत किए जाते हैं। शुल्क भी इसी प्रकार निर्धारित होते हैं कि या तो नियोजक पूर्ण भार वहन कर सकता है, या कुछ भाग नियोजक और कुछ कर्मचारी। नियोजक शुल्क का एक निश्चित भाग यथा चतुर्थांश, या तृतीयांश, वहन कर सकता है और शेष कर्मचारी; अथवा कर्मचारी वेतन का एक निश्चित भाग, यथा ५ या ७.५ प्रतिशत, वहन कर सकता है और शेष नियोजक। नियोजक के नाम एक बृहत् बीमापत्र (Master Policy) बन जाता है, जिसें सब कर्मचारियों के नाम तथा उनके जीवन पर बीमे की धनराशि आदि का विवरण होता है। बीमे योग्य सभी नए कर्मचारी तथा प्रारंभ में भी बहुत से, यथा कम से ५०% तथा संख्या में कम से कम ५० या १०० व्यक्ति, सम्मिलित होते हैं। अत: बीमा निगम ऐसी दशा में शुल्क में कुछ छूट भी देता है। डाक्टरी परीक्षा एवं प्रस्ताव पत्र के मामले में भी विशेष सुविधाएँ दी जाती हैं। आयकर विभाग भी कुछ दशाओं में छूट देता है। सरकारी कर्मचारियों को तो सरकार की ओर से पेंशन मिलती ही है, पर अन्य नियोजक जीवन बीमा निगम की इन योजनाओं से लाभ उठा सकते हैं।
 
== साधारण वार्षिकी ==