"भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद": अवतरणों में अंतर

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'''भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद ''' (आई.सी.एम.आर), [[नई दिल्ली]], [[भारत]] में [[जैवचिकित्सा|जैव-चिकित्सा]] [[अनुसंधान]] हेतु निर्माण, समन्वय और प्रोत्साहन के लिए शीर्ष संस्था है। यह विश्व के सबसे पुराने [[आयुर्विज्ञान]] संस्थानों में से एक हैं। इस परिषद को भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा वित्तीय सहायता प्राप्त होती है ।
 
==परिचय==
देश[[भारत]] में [[आयुर्विज्ञान]] [[अनुसंधान]] को वित्तीय सहायता प्रदान करने और समन्वय स्थापित करने के विशेष उद्देश्य
के साथ भारत सरकार द्वारा वर्ष 1911 में 'इंडियन रिसर्च फण्ड एसोसिएशन' की स्थापना की गई थी । स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद इसके संगठन और इसकी गतिविधियों में अनेक महत्वपूर्ण परिवर्तन किए गए । वर्ष 1949 में इसके कार्यों में कापी विस्तार के साथ इसका नाम भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आई सी एम आर ) कर दिया गया ।
 
परिषद की शोध प्राथमिकताएं राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राथमिकताओं के अनुरूप हैं जिनमें साम्मिलित हैं - संचारी रोगों पर नियंत्रण और उनका चिकित्सा प्रबन्ध, प्रजनन क्षमता नियंत्रण,मातॄ एवं शिशु स्वास्थ्य,पोषणज विकारों का नियंत्रण, स्वास्थ्य सुरक्षा वितरण हेतु वैकाल्पिक नीतियों का विकास, पर्यावरणी एवं एयावसायिक स्वास्थ्य समस्याओं को रोकना, कैंसर, हृदवाहिकीय रोगों अंधता, मधुमेह तथा चयापचयज एवं रुधिर विकारों जैसे प्रमुख असंचारी रोगों पर अनुसंधान, मानसिक स्वास्थ्य अनुसंधान और औषध अनुसंधान (पारम्परिक औषधियों सहित) । ये सारे प्रयास रोग के पूर्ण भार को घटाने और आबादी के स्वास्थ्य एवं कल्याण को बढ़ावा देने को ध्यान में रखते हुए किए जा रहे हैं ।
परिषद की शोध प्राथमिकताएं राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राथमिकताओं के अनुरूप हैं जिनमें साम्मिलित हैं - संचारी रोगों
पर नियंत्रण और उनका चिकित्सा प्रबन्ध, प्रजनन क्षमता नियंत्रण,मातॄ एवं शिशु स्वास्थ्य,पोषणज विकारों का नियंत्रण, स्वास्थ्य सुरक्षा वितरण हेतु वैकाल्पिक नीतियों का विकास, पर्यावरणी एवं एयावसायिक स्वास्थ्य समस्याओं को रोकना, कैंसर, हृदवाहिकीय रोगों अंधता, मधुमेह तथा चयापचयज एवं रुधिर विकारों जैसे प्रमुख असंचारी रोगों पर अनुसंधान, मानसिक स्वास्थ्य अनुसंधान और औषध अनुसंधान (पारम्परिक औषधियों सहित) । ये सारे प्रयास रोग के पूर्ण भार को घटाने और आबादी के स्वास्थ्य एवं कल्याण को बढ़ावा देने को ध्यान में रखते हुए किए जा रहे हैं ।
 
केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री परिषद के शासी निकाय के अध्यक्ष हैं । जैवआयुर्विज्ञान के विभिन्न विषयों के प्रतिष्ठित विशेषज्ञों की सदस्यता में बने एक वैज्ञानिक सलाहकार बोर्ड द्वारा इसके वैज्ञानिक एवं तकनीकी मामलों में सहायता प्रदान की जाती है । इस बोर्ड को वैज्ञानिक सलाहकार दलों,वैज्ञानिक सलाहकार समितियों,विशेषज्ञ दलों, टास्क फोर्स, संचालन समितयों, आदि द्वारा सहायता प्रदान की जाती है, जो परिषद की विभिन्न शोध गतिविधियों का मूल्यांकन करती हैं और उन पर निगरानी रखती हे ।
विशेषज्ञों की सदस्यता में बने एक वैज्ञानिक सलाहकार बोर्ड द्वारा इसके वैज्ञानिक एवं तकनीकी मामलों में सहायता प्रदान की जाती है । इस बोर्ड को वैज्ञानिक सलाहकार दलों,वैज्ञानिक सलाहकार समितियों,विशेषज्ञ दलों, टास्क फोर्स, संचालन समितयों, आदि द्वारा सहायता प्रदान की जाती है, जो परिषद की विभिन्न शोध गतिविधियों का मूल्यांकन करती हैं और उन पर निगरानी रखती हे ।
 
परिषद इंट्राम्युरल (परिषद के संस्थानों द्वारा सम्पन्न) और एकक़्स्ट्राम्युरल (परिषद से असम्बद्ध संस्थानों द्वारा सम्पन्न) अनुसंधान के माध्यम से देश में जैवआयुर्विज्ञान शोध को बढ़ावा देती है ।
सम्पन्न) अनुसंधान के माध्यम से देश में जैवआयुर्विज्ञान शोध को बढ़ावा देती है ।
 
वर्तमान में इंट्राम्युरल शोध देश भर में स्थित 21 स्थाई शोध संस्थानों/केन्द्रों और 6 क्षेत्रीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान केन्द्रों के माध्यम से किए जा रहे हैं । परिषद के स्थाई संस्थान क्षयरोग, कुष्ठरोग, हैजा एवं अतिसारीय रोगों, एड्स सहित विषाणुज रोगों, मलेरिया, कालाजार, रोगवाहक नियंत्रण, पोषण, खाद्य एवं औषध विषविज्ञान, प्रजनन, प्रतिरक्षा रुधिरविज्ञान, अर्बुदविज्ञान, आयुर्विज्ञान सांख्यिकी, आदि विशिष्ट क्षेत्रों में शोधरत हैं । इसके अलावा क्षेत्रीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान केन्द्रों द्वारा क्षेत्रीय स्वास्थ्य समस्याओं को दूर करने से संबंद्ध शोध किए जा रहे हैं, साथ-साथ देश के विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों मे शोध क्षमताओं को तैयार करना अथवा उन्हें सुदृढ बनाना भी उनका उद्देश्य है ।
वर्तमान में इंट्राम्युरल शोध देश भर में स्थित 21 स्थाई शोध संस्थानों/केन्द्रों और 6 क्षेत्रीय आयुर्विज्ञान
अनुसंधान केन्द्रों के माध्यम से किए जा रहे हैं । परिषद के स्थाई संस्थान क्षयरोग, कुष्ठरोग, हैजा एवं अतिसारीय रोगों, एड्स सहित विषाणुज रोगों, मलेरिया, कालाजार, रोगवाहक नियंत्रण, पोषण, खाद्य एवं औषध विषविज्ञान, प्रजनन, प्रतिरक्षा रुधिरविज्ञान, अर्बुदविज्ञान, आयुर्विज्ञान सांख्यिकी, आदि विशिष्ट क्षेत्रों में शोधरत हैं । इसके अलावा क्षेत्रीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान केन्द्रों द्वारा क्षेत्रीय स्वास्थ्य समस्याओं को दूर करने से संबंद्ध शोध किए जा रहे हैं, साथ-साथ देश के विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों मे शोध क्षमताओं को तैयार करना अथवा उन्हें सुदृढ बनाना भी उनका उद्देश्य है ।
 
परिषद द्वारा एकक़्स्ट्राम्युरल अनुसंधान को -
 
:(१) मेडिकल कॉलेजों के चुने हुए विभागों,विश्वविद्यालयों तथा अन्य गैर-आई सी एम आर संस्थानों में उपलब्ध विशेषज्ञता तथा मूलभूत सुविधाओं की उपलब्धता के आधार पर विभिन्न अनुसंधान क्षेत्रों में उन्नत अनुसंधान केन्द्रों की स्थापना के द्वारा प्रोत्साहन दिया जाता है ;
 
:(२) समय-बद्ध, लक्ष्योन्मुख प्रयासों तथा स्पष्ट रूप से एयकक़्त लक्ष्यों के साथ टास्क पोर्स अध्ययनों पर भी बल दिया जाता है ;
 
:(३) वैज्ञानिकों द्वारा प्रस्तावित परियोजनाएँ : देश के विभिन्न भागों में स्थित गैर आई सी एम आर संस्थानों, मेडिकल कॉलेजों, विश्वविद्यालयों, आदि के वैज्ञानिकों से वित्तीय सहायता के लिए प्राप्त आवेदनों के आधार फर अनुसंधान को बढ़ावा दिया जाता है ।
 
== संदर्भ ==
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* [http://icmr.nic.in/ भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद, आधिकारिक जालस्थल]
* [http://pib.nic.in/newsite/hindifeature.aspx?relid=11899 भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद – प्रगति के 100 वर्ष]
* [http://pib.nic.in/newsite/PrintHindiRelease.aspx?relid=16841 भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद, नई दिल्‍ली : चिकित्‍सा अनुसंधान में अग्रणी]
 
[[श्रेणी:आयुर्विज्ञान]]