"आचार्य रामदेव": अवतरणों में अंतर

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'''आचार्य रामदेव''' (३१ जुलाई, १८८१ - ९ दिसम्बर १९३९) [[आर्यसमाज]] के नेता तथा शिक्षाशास्त्री, इतिहासकार, स्वतंत्रता-संग्राम सेनानी एवं महान वक्ता थे। उन्होने भारतीय इतिहास के संबंध में मौͧलक अनुसंधान कर [[हिन्दी]] में अपना प्रͧसिद्ध ग्रन्थ 'भारतवर्ष का इतिहास' प्रकाशित किया।
 
==परिचय==
आचार्य रामदेव जी का जन्म [[पंजाब]] के [[होशियारपुर]] जिले के बजवाड़ा ग्राम में हुआ था। उनके पिता का नाम लाला चंदूलाल था। वे अध्यापक थे, अत: उन्होंने अपने पुत्र की शिक्षा की व्यवस्था सुचारू रूप से की। १५ वर्ष की आयु में रामदेव जी ने मेट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की और डी.ए.वी कॉलेज [[लाहौर]] में अध्ययनार्थ प्रविष्ट हुए। उन दिनों गुरुकुल दल और कॉलेज दल में मत भेद पराकाष्टा पर थे। रामदेव जी की सहानभूति गुरुकुल दल की और होने से उन्हें अलग कर दिया गया ऐसे समय में उन्हें [[महात्मा मुंशीराम]] जी ने सहारा दिया। उन्हें आर्य प्रतिनिधि सभा, [[पंजाब]] की साप्तहिक पत्रिका "आर्यापत्रिका" का उपसंपादक बना दिया। उन्होंने ने १९०४ में बी.ए की परीक्षा और १९०५ में सेंट्रल कॉलेज, लाहौर बी.टी की परीक्षा उतीर्ण किया।

महात्मा मुंशीराम जी ने आचार्य रामदेव जी को [[गुरुकुल कांगडी]] के मुख्य अध्यापक के पद पर नियुक्त किया। [[शिक्षाशास्त्र]] के मर्मज्ञ आचार्य रामदेव जी ने गुरुकुल की व्यवस्था, पाठ्यपद्धति, तथा शिक्षा प्रणाली में अनेक सुधार किये। [[संस्कृत]] और [[वेद]] तथा आर्ष ग्रंथो के साथ साथ अर्थ-शास्त्र, इतिहास, राजनीति-विज्ञान, गणित, अंग्रेजी, तथा विज्ञान भी पाठ्य क्रम में मिलाये गये। इन परिवर्तनों की वजह से ग्रुकुल कांगडी ने एक विश्वविद्यालय का दर्जा हासिल किया। रामदेवजी १९३२ में देश के स्वाधीनता संग्राम में कूद पड़े। पंजाब में कांग्रेस आंदोलन के सर्वाधिकारी रहे और कारावास भी भोगा। १९३६ में होनेवाले "कांफेरेंस ऑफ लिविंग रिलीजन्स" में समिलित होने का निमंत्रण प्राप्त कर आप उसमे जाने के लिये तैयार हुए परन्तु [[पक्षाघात]] का आक्रमण होने के कारण यह यात्रा रुक गयी। ९ दिसम्बर १९३९ को लगभग तीन वर्ष की अस्वस्थता के पश्च्यात आर्यसमाज के इस [[मनीषी]] का [[देहरादून]] में निधन हुआ।
 
==कृतियाँ==