"समर्थ रामदास": अवतरणों में अंतर

पंक्ति 63:
 
==ग्रन्थरचना==
समर्थ रामदास जी ने दासबोध,आत्माराम, मनोबोध आदि ग्रंथोंकिं रचना है । इसके साथ उनके द्वारा रची गयी ९० से अधिक आरतियाँ महारष्ट्र के घर घर में गायी जातीं हैं । आपने सैंकड़ो 'अभंग' भी लिखें हैं ।समर्थजी स्वयं अद्वैत वेदांति एवं भक्तिमार्गी संत थे किन्तु उन्होंने तत्कालीन समाज कि अवस्था देखकर ग्रंथोंमें राजनीती, प्रपंच,व्यवस्थापन शास्त्र, इत्यादि अनेको विषयोंका मार्गदर्शन किया है।समर्थ जी का प्रमुख ग्रन्थ 'दासबोध ' गुरुशिष्य संवाद रूप में है । यह ग्रंथराज उन्होनें अपने परमशिष्य योगिराज कल्याण स्वामी के हाथोंसे महाराष्ट्र के 'शिवथर घल (गुफा)' नामक रम्य एवं दुर्गम गुफा में लिखवाया ।आत्माराम ,मानपंचक , पंचीकरण ,चतुर्थमान,बाग़ प्रकरण ,स्फूट अभंग इत्यादि समर्थ जी कि अन्य रचनाएं हैं ।यह सभी रचनाएं मराठी भाषा के 'ओवी ' नामक छंद में हैं
 
==कार्य==
समर्थ रामदास जी ने अपने शिष्योंके द्वारा समाज में एक चैतन्यदायी संगठन खड़ा किया । उन्होनें सतारा जिले में 'चाफल ' नाम के एक गाँव में भव्य श्रीराम मंदिर का निर्माण किया । यह मंदिर निर्माण केवल भिक्षा के आधार पर किया ।कश्मीर से कन्याकुमारी तक उन्होंने 1100 मठ तथा अखाड़े स्थापित कर स्वराज्यस्थापना के लिए जनता को तैयार करने का प्रयत्न किया। शक्ति एवं भक्ति के आदर्श श्री हनुमान जी कि मूर्तियां उन्होनें गाँव गाँव में स्थापित कि । आपने अपने सभी शिष्योंको विभिन्न प्रांतोंमें भेजकर भक्तिमार्ग तथा कर्मयोग कि सिख जनजन में प्रचारित करने कि आज्ञा कि ।समर्थजीनें ३५० वर्ष पहले संत वेणा स्वामी जैसी विधवा महिला को मठपति का दायित्व देकर कीर्तन समर्थजीनें ३५० वर्ष पहले संत वेणा स्वामी जैसी विधवा महिला को मठपति का दायित्व देकर कीर्तन का अधिकार दिया । समर्थ जी कि विचारधारा तथा कार्य का प्रभाव लोकमान्य तिलक,स्वातंत्र्यवीर सावरकर, डा. केशव बलिराम हेडगेवार आदि महान नेताओं पर था ।