"स्वामी सोमदेव": अवतरणों में अंतर

→‎संक्षिप्त जीवनी: ===योग-दीक्षा===
→‎योग-दीक्षा: ===भारत-भ्रमण===
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===योग-दीक्षा===
बहुत दिनों तक इधर-उधर भटकने के बाद ब्रजलाल हरिद्वार पहुँचे। वहाँ पर उनकी मुलाकात एक सिद्ध योगी से हुई। बालक को जिस वस्तु की इच्छा थी, वह उसे मिल गयी थी। अब वह बालक ब्रजलाल से सोमदेव बन चुका था। गुरु के आश्रम में रहकर उन्होंने योग-विद्या की पूर्ण शिक्षा प्राप्त कर ली। योगिराज गुरु की कृपा से 15 से 20 घण्टे की समाधि लगाने का उन्हें अभ्यास हो गया। कई वर्ष तक स्वामी सोमदेव हरिद्वार में रहे। योगाभ्यास के माध्यम से वे अपने शरीर के भार को इतना हल्का कर लेते थे कि पानी पर पृथ्वी के समान चले जाते थे।
===भारत-भ्रमण===
भारत-भ्रमण की इच्छा जागृत होते ही उन्होंने एक दिन हरिद्वार त्याग दिया और अनेक स्थानों पर घूम-घूम कर देशाटन, अध्ययन व मनन करते रहे। जर्मनी तथा अमेरिका से शास्‍त्रों के सम्बन्ध में बहुत सी पुस्तकें मंगवाकर उनका गम्भीर अध्ययन किया। जिन दिनों लाला लाजपतराय को देश-निर्वासन की सजा दी गयी सोमदेव उन दिनों लाहौर में ही थे। वहाँ से एक अखबार निकालने की इच्छा से उन्होंने आवेदन दिया। लाहौर का डिप्टी कमिश्‍नर उस समय किसी भी नये अखबार का आवेदन स्वीकार ही न करता था परन्तु जब स्वामी सोमदेव से भेंट हुई तो वह उनके व्यक्तित्व से प्रभावित हुआ और उसने आवेदन स्वीकार कर लिया। अपने अखबार का पहला ही सम्पादकीय उन्होंने '''अंग्रेजों को चेतावनी''' के नाम से लिखा। लेख इतना उत्तेजनापूर्ण था कि थोड़ी देर में ही अखबार की सभी प्रतियाँ हाथोंहाथ बिक गयीं और जनता के अनुरोध पर उसी अंक का दूसरा संस्करण प्रकाशित करना पड़ा।
 
डिप्टी कमिश्‍नर के पास जैसे ही इसकी रिपोर्ट पेश हुई उसने सोमदेव को अपने कार्यालय में बुलवाया। वह लेख को पढ़कर क्रोध से काँपता, और मेज पर मुक्का मारता। परन्तु लेख के अन्तिम वाक्यों को पढ़कर शान्त हो जाता। उस लेख के अन्त में सोमदेव ने लिखा था - "यदि अंग्रेज अब भी न समझे तो वह दिन दूर नहीं कि सन् 1857 के दृश्य हिन्दुस्तान में फिर दिखाई दें और अंग्रेजों के बच्चों को कत्ल किया जाय व उनकी स्त्रियों की बेइज्जती हो। किन्तु यह सब स्वप्न है, यह सब स्वप्न है।" इन्हीं शब्दों को पढ़कर डिप्टी कमिश्‍नर कहता - "स्वामी सोमदेव! टुम निहायट होशियार हो। हम टुमारा कुछ नहीं कर सकता।"
 
==बाहरी कड़ियाँ==