"स्वामी सोमदेव": अवतरणों में अंतर

बम्बई प्रवास
पंक्ति 15:
 
डिप्टी कमिश्‍नर के पास जैसे ही इसकी रिपोर्ट पेश हुई उसने सोमदेव को अपने कार्यालय में बुलवाया। वह लेख को पढ़कर क्रोध से काँपता, और मेज पर मुक्का मारता। परन्तु लेख के अन्तिम वाक्यों को पढ़कर शान्त हो जाता। उस लेख के अन्त में सोमदेव ने लिखा था - "यदि अंग्रेज अब भी न समझे तो वह दिन दूर नहीं कि सन् 1857 के दृश्य हिन्दुस्तान में फिर दिखाई दें और अंग्रेजों के बच्चों को कत्ल किया जाय व उनकी स्त्रियों की बेइज्जती हो। किन्तु यह सब स्वप्न है, यह सब स्वप्न है।" इन्हीं शब्दों को पढ़कर डिप्टी कमिश्‍नर कहता - "स्वामी सोमदेव! टुम निहायट होशियार हो। हम टुमारा कुछ नहीं कर सकता।"
 
===बम्बई प्रवास===
भारत-भ्रमण करते हुए वे बम्बई पहुँचे। उनके व्याख्यान सुनकर जनता बहुत प्रभावित हुई। अबुल कलाम आज़ाद के बड़े भाई तो उनका व्याख्यान सुनकर इतने अधिक मोहित हुए कि उन्हें अपने घर ले गये। धार्मिक कथाओं का पाठ करने जाना छोड़ वह दिन रात सोमदेव के ही पास बैठे रहते। जब उनसे कहीं जाने को कहा जाता तो रोने लगते और कहते कि मैं तो आपके आत्मिक ज्ञान से अभिभूत हूँ। मुझे अब किसी भी सांसारिक वस्तु की कोई इच्छा ही नहीं रही। आज़ाद के बड़े भाई स्वयं भी बहुत अच्छे धार्मिक कथावाचक थे और उनके हजारों शिष्य थे। उनके शिष्यों को इस बात पर बड़ा क्रोध आया कि उनके इस्लामिक धर्मगुरु सोमदेव नाम के एक काफिर के चक्कर में फँस गये हैं। अतएव सभी शिष्य इकट्ठे होकर स्वामीजी को मार डालने के लिये मकान पर आये। उन्होंने स्वामीजी के प्राणों पर संकट आया देख उनसे बम्बई छोड़ देने की प्रार्थना की। स्वामीजी के बम्बई छोड़ते ही अबुल कलाम आजाद के भाई साहब इतने दुखी हुए कि उन्होंने आत्महत्या ही कर ली।
 
 
==बाहरी कड़ियाँ==