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== जीवनी ==
शिव कुमार का जन्म 23 जुलाई 1936 को गांव बड़ा पिंड लोहटिया, शकरगढ़ तहसील(अब [[पाकिस्तान]] के [[पंजाब (पाकिस्तान)|पंजाब]] प्रांत में)<ref>[http://barapind.web.officelive.com शिव कुमार बटालवी का गांव बारापिंडबड़ापिंड, जहां वह पैदा हुआ था - बारापिंडबड़ापिंड की वेब साइट]</ref> राजस्व विभाग के ग्राम तहसीलदार पंडित क्रिशनकृष्ण गोपाल और गृहिणी शांति देवी के घर में हुआ. [[भारत का विभाजन|भारत के विभाजन]] के बाद उनका परिवार [[गुरदासपुर जिला|गुरदासपुर जिले]] के [[बटाला]] चला आया, जहां उनके पिता ने पटवारी के रूप में अपना काम जारी रखा और बाल शिव ने प्राथमिक शिक्षा पाई<ref>[http://www.tribuneindia.com/2000/20000430/spectrum/main2.htm#3 शिव कुमार बटालवी] ''द ट्रिब्यून'' , 30 अप्रैल 2000.</ref>.
 
1953 में उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से मैट्रिक पूरा किया {{dn}} और बटाला के बैरिंग यूनियन क्रिश्चियन कॉलेज में एफ एससी कार्यक्रम में नामांकित हुए, हालांकि, अपनी डिग्री पूरी करने से पहले उन्होंने कादियान के एस एन कॉलेज के कला विभाग में दाखिला लिया, जो उनके व्यक्तित्व से ज्यादा मेल खाता था, हालांकि दूसरे साल में उन्होंने उसे भी छोड़ दिया. उसके बाद वह [[बैजनाथ (हिमाचल प्रदेश)|हिमाचल प्रदेश के बैजनाथ]] के एक स्कूल में सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा लेने के लिए दाखिल हुए, पर फिर उन्होंने इसे बीच में ही छोड़ दिया<ref name="sikh">[http://www.sikh-heritage.co.uk/arts/shiv%20batalvi/Shiv%20batalvi.htm शिव कुमार बटालवी] ''sikh-heritage.co.uk.'' </ref>. इसके बाद उन्होंनेनाभाउन्होंने [[नाभा]] के सरकारी रिपुदमन कालेज में अध्ययन किया. उन्हें विख्यात पंजाबी लेखक गुरबख्श सिंह प्रीतलड़ी की बेटी से प्यार हो गया, जिन्होंने दोनों के बीच जाति भेद होने के कारण एक ब्रिटिश नागरिक से शादी कर ली. वह प्यार में दुर्भाग्यशाली रहे और प्यार की यह पीड़ा उनकी कविता में तीव्रता से परिलक्षित होती है.
 
बाद की जिंदगी में उनके पिता को कादियां में पटवारी की नौकरी मिली और इसी अवधि के दौरान उन्होंने अपना सबसे अच्छा साहित्यिक अवदान दिया. 1960 में उनकी कविताओं का पहला संकलन'' पीरांपीड़ां दा परांगा '' (दु:खों का दुपट्टा) प्रकाशित हुआ, जो काफी सफल रहा. 1965 में अपनी महत्वपूर्ण कृति महाकाव्य नाटिका ''लूना'' (1965) के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार पाने वाले वे सबसे कम उम्र के साहित्यकार बन गये<ref>[http://www.sahitya-akademi.gov.in/old_version/awa10316.htm#punjabi साहित्य अकादमी अवॉर्ड - पंजाबी 1957-2007] ''साहित्य अकादमी अवॉर्ड आधिकारिक लिस्टिंग'' .</ref>. काव्य पाठ और अपनी कविता को गाने की वजह से लोगों में वे और उनका काम काफी प्रसिद्ध हुआ.
 
1967 के प्रारंभ में उन्होंने शादी की और 1968 में [[चण्डीगढ़|चंडीगढ़]] चले गये, जहां वे स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में जन संपर्क अधिकरी बने. बाद के वर्षों में वे खराब स्वास्थ्य से त्रस्त रहे, हालांकि उन्होंने बेहतर लेखन जारी रखा. उनके लेखन में उनकी चर्चित मौत की इच्छा हमेशा से स्पष्ट रही है <ref>[http://cities.expressindia.com/fullstory.php?newsid=51123 मौत बरसी में बटालवी जिंदा लाया गया] ''इंडियन एक्सप्रेस'' , 6 मई 2003.</ref> और 7 मई 1973 में 36 साल की उम्र में शराब की दुसाध्य लत के कारण हुए लीवर सिरोसिस के परिणामस्वरूप पठानकोट के किरी मांग्याल में अपने ससुर के घर पर उनका निधन हो गया.