"कलापक्ष": अवतरणों में अंतर

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'''कलापक्ष''' या '''हायमेनोप्टेरा''' (Hymenoptera; हायमेन (hymen) = एक झिल्ली; टेरोन (pteron) =एक पक्ष) के अंतर्गत चींटियाँ, बर्रे, मधुमक्ख्यियाँ और इनके निकट संबंधी तथा [[आखेटि पतंग]] आते हैं। लिनीयस ने 1758 ई. में हायमेनोप्टेरा नाम उन कीटों को दिया जिनके पक्ष झिल्लीमय होते हैं तथा जिनकी नारियों में डंक होता है।
 
'''कलापक्ष''' या '''हायमेनोप्टेरा''' (Hymenoptera; हायमेन (hymen) = एक झिल्ली; टेरोन (pteron) =एक पक्ष या पंख) के अंतर्गत [[चींटी|चींटियाँ]], [[बर्र|बर्रे]], मधुमक्ख्यियाँ[[मधुमक्खी|मधुमक्खियाँ]] और इनके निकट संबंधी तथा [[आखेटि पतंग]] आते हैं। लिनीयस ने 1758 ई. में हायमेनोप्टेरा नाम उन कीटों को दिया जिनके पक्ष झिल्लीमय होते हैं तथा जिनकी नारियों में डंक होता है।
इन कीटों के लक्षण ये हैं – पक्ष झिल्लीमय, प्राय: छोटे और पारदर्शक होते हैं तथा पक्षों का नाड़ीविन्यास (Venation) क्षीण होता है। अग्रपक्ष की तुलना में पश्चपक्ष बड़ा होता है। पश्चपक्ष अग्रपक्ष के पिछलेवाले किनारे में ठीक-ठीक समा जाता है। अग्रपक्ष का पिछला किनारा मुड़ा रहता है जिसमें पश्चपक्ष के अगले किनारेवालें काँटे (Hamuli) फँस जाते हैं। ये काँटे बहुत ही छोटे तथा एक पंक्ति में होते हैं। कुछ जातियों की नारियाँ पक्षविहीन भी होती हैं, उदाहरणत: डेसीबेबरिस अरजेंटीपेस (Dasybabris argenti) में, किंतु नर सदैव पक्षवाले होते हैं। इनके मुखभाग चबाकर खानेवाले (chewing type) या चबाने चाटनेवाले (chewing lapping type) होते हैं। मैंडिबल तो चबाने या काटने का कार्य करते हैं, किंतु लेबियम प्राय: एक प्रकार की जिह्वा सी बन जाता है, जिससे पतंग भोजन चाटता है। वक्ष के अग्र और मध्य खंड का समेकन हो जाता है। उदर प्राय: पतला होकर कमर सा बन जाता है और इसके प्रथम खंड का वक्ष से सदा ही समेकन रहता है। नारियों में अंडरोपक (ovipositor) सदा पाया जाता है, जो काटने तथा छेदने और रक्षक तथा आक्रामक शस्त्र के रूप में डंक मारने का कार्य करता है। इनमें पूर्ण रूतांपरण होता है। डिंभ या तो इल्लियों के आकार के या बिना टाँगोंवाले होते हैं। उदर की टाँगें, जो पूर्वपाद (Proleg) कहलाती हैं, पाँच जोड़ी से अधिक होती हैं। कलापक्ष की बहुत सी जातियाँ समाजों में रहती हैं।
 
==परिचय==
इन कीटों के लक्षण ये हैं – पक्ष (पंख) झिल्लीमय, प्राय: छोटे और पारदर्शक होते हैं तथा पक्षों का नाड़ीविन्यास (Venation) क्षीण होता है। अग्रपक्षआगे वाले पंख की तुलना में पश्चपक्षपीछे वाला पंख बड़ा होता है। पश्चपक्ष अग्रपक्ष के पिछलेवाले किनारे में ठीक-ठीक समा जाता है। अग्रपक्ष का पिछला किनारा मुड़ा रहता है जिसमें पश्चपक्ष के अगले किनारेवालें काँटे (Hamuli) फँस जाते हैं। ये काँटे बहुत ही छोटे तथा एक पंक्ति में होते हैं। कुछ जातियों की नारियाँ पक्षविहीन भी होती हैं, उदाहरणत: डेसीबेबरिस अरजेंटीपेस (Dasybabris argenti) में, किंतु नर सदैव पक्षवाले होते हैं। इनके मुखभाग चबाकर खानेवाले (chewing type) या चबाने चाटनेवाले (chewing lapping type) होते हैं। मैंडिबल तो चबाने या काटने का कार्य करते हैं, किंतु लेबियम प्राय: एक प्रकार की जिह्वा सी बन जाता है, जिससे पतंग भोजन चाटता है। वक्ष के अग्र और मध्य खंड का समेकन हो जाता है। उदर प्राय: पतला होकर कमर सा बन जाता है और इसके प्रथम खंड का वक्ष से सदा ही समेकन रहता है। नारियों में अंडरोपक (ovipositor) सदा पाया जाता है, जो काटने तथा छेदने और रक्षक तथा आक्रामक शस्त्र के रूप में डंक मारने का कार्य करता है। इनमें पूर्ण रूतांपरण होता है। डिंभ या तो इल्लियों के आकार के या बिना टाँगोंवाले होते हैं। उदर की टाँगें, जो पूर्वपाद (Proleg) कहलाती हैं, पाँच जोड़ी से अधिक होती हैं। कलापक्ष की बहुत सी जातियाँ समाजों में रहती हैं।
 
कलापक्ष सर्वाधिक विकसित कीटगणों में से एक गण है। इस गण की महत्ता केवल इसलिए नहीं है कि इसकी रचना पूर्ण रीति से हो चुकी है, वरन्‌ इसलिए भी है कि इसमें अंत: प्रवृत्ति का अद्भूत विकास मिलता है। इसके जीवन के विषय में पर्याप्त अध्ययन द्वारा ज्ञात हुआ है कि इस कीटगण में समाज का विकसन किस प्रकार हुआ। कलापक्ष की लगभग 90,000 जातियों का पता चला है। इनमें से अधिकांश जातियाँ अन्य गणों की जातियों की भाँति एकाकी (Solitary) जीवन ही व्यतीत करती हैं, केवल कुछ ही जातियों में सामाजिक जीवन की प्रवृत्ति विकसित हुई है। ये जातियाँ बड़े-बड़े समाजों में रहती हैं, जैसे मधुमक्खियाँ, बर्रे और चीटियाँ। कलापक्ष की सहस्रों जातियाँ पराश्रयी (parasitic) होने के कारण मनुष्य के लिए बहुत लाभदायक हैं, क्योंकि ये अनेक हानिकारक कीटों को नष्ट कर देती हैं।