"उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन": अवतरणों में अंतर

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'''उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन''', [[उत्तराखण्ड]] राज्य के बनने से पहले की वे घटनाएँ है जो अन्ततः उत्तराखण्ड राज्य के रूप में परिणित हुईं। राज्य का गठन [[९ नवंबर]], [[२०००]] को [[भारत]] के सत्ताइसवें राज्य के रूप में हुआ। यहाँ पर यह उल्लेखनीय है कि उत्तराखण्ड राज्य का गठन बहुत लम्बे संघर्ष और बलिदानों के फलस्वरूप हुआ। उत्तराखण्ड राज्य की माँग सर्वप्रथम [[१८९७]] में उठी और धीरे-धीरे यह माँग अनेक समयों पर उठती रही।[[१९९४]] में इस माँग ने जनान्दोलन का रूप ले लिया और आखिरकार नियत तिथि पर यह देश का सत्ताइसवाँ राज्य बना।
{{merge|उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन}}
 
== संक्षिप्त इतिहास ==
== भौगोलिक विवरण ==
[[उत्तराखण्ड]] संघर्ष से राज्य के गठन तक जिन महत्वपूर्ण तिथियों और घटनाओं मुख्य ने भूमिका निभाई वे इस प्रकार हैं -
उत्तरांचल हिमालय पर्वत क्षेत्र के एक बड़े भाग में स्थित है। इस क्षेत्र की सीमायें चीन, तिब्बत एवं नेपाल की अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं को छूती हैं। उत्तर प्रदेश की सभी छोटी-बड़ी नदियों का उद्गम इसी क्षेत्र से हुआ है। उत्तरांचल क्षेत्र में छोटी-छोटी पहाड़ियों से लेकर उँची पर्वत श्रंखलाये तक विद्यमान हैं। इनमें अधिकांश समय तक बर्फ से ढकी रहने वाली नन्दा देवी, त्रिशुल, केदारनाथ, नीलकंठ तथा चौखंभा पर्वत चोटियाँ हैं। परिस्थितकीय विभिन्नताओं के कारण इस क्षेत्र में भिन्न-भिन्न वनस्पतियाँ व जीव-जन्तु विद्यमान हैं।
 
* [[भारतीय स्वतंत्रता आंन्देालन]] की एक इकाइ के रुप् मे [[उत्तराखंड में स्वाधीनता संग्राम]] के दौरान [[1913]] के [[कांग्रेस अधिवेशन]] में [[उत्तराखंड]] के ज्यादा प्रतिनिधि सम्मिलित हुये। इसी वर्ष [[उत्तराखंड]] के [[अनुसूचित जातियों]] के उत्थान के लिये गठित [[टम्टा सुधारिणी सभा]] का रूपान्तरण एक व्यापक [[शिल्पकार महासभा]] के रूप में हुआ।
उत्तरांचल आन्दोलन - उत्तरांचल को अलग राज्य की मान्यता देने को लेकर उत्तरांचल आन्दोलन सन् १९५७ में प्रारंभ हुआ। उत्तरांचलवासियों की मांग है कि कई राज्य ऐसे हैं जिनका क्षेत्रफल और जनसंख्या प्रस्तावित उत्तरांतल राज्य से काफी कम है। इसके अतिरिक्त पहाड़ों का दुर्गम जीवन और पिछड़े होने की वजह से इस क्षेत्र का संपूर्ण विकास नहीं हो पा रहा है। अत: उत्तराखण्ड को उत्तर प्रदेश से अलग करके उसे सम्पूर्ण राज्य का दर्जा मिलना चाहिए। हालांकि उत्तराखण्ड राज्य बनाये जाने के टिहरी के पूर्व नरेश मानवेन्द्र शाह के १९५७ के आन्दोलन से पूर्व ही १९५२ में कम्युनिस्ट नेता पी.सी. जोशी ने पर्वतीय क्षेत्र को स्वायता देने की सर्वप्रथम मांग रखी थी।
* 1916 के सितम्बर माह में [[हरगोविन्द पंत]] [[गोविन्द बल्लभ पंत]] [[बदरी दत्त पाण्डे]] [[इन्द्रलाल साह]] [[मोहन सिंह दड़मवाल]] [[चन्द्र लाल साह]] [[प्रेम बल्लभ पाण्डे]] [[भोलादत पाण्डे]] ओर [[लक्ष्मीदत्त शास्त्री]] आदि उत्साही युवकों के द्वारा [[कुमाऊँ परिषद]] की स्थापना की गयी जिसका मुख्य उद्देश्य तत्कालीन [[उत्तराखंड]] की सामाजिक तथा आर्थिक समस्याआं का समाधान खोजना था। 1926 तक इस संगठन ने [[उत्तराखण्ड]] में स्थानीय सामान्य सुधारो की दिशा के अतिरिक्त निश्चित राजनैतिक उद्देश्य के रूप में संगठनात्मक गतिविधियां संपादित कीं। [[1923]] तथा [[1926]] के [[प्रान्तीय काउन्सिल]] के चुनाव में [[गोविन्द बल्लभ पंत]] [[हरगोविन्द पंत]] [[मुकुन्दी लाल]] तथा [[बदरी दत्त पाण्डे]] ने प्रतिपक्षियों को बुरी तरह पराजित किया।
* [[1926]] में [[कुमाऊँ परिषद]] का [[कांग्रेस]] में विलीनीकरण कर दिया गया।
* आधिकारिक सूत्रों के अनुसार मई १९३८ में तत्कालीन ब्रिटिश शासन मे [[गढ़वाल मण्डल|गढ़वाल]] के [[श्रीनगर, उत्तराखण्ड|श्रीनगर]] में आयोजित [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस|कांग्रेस]] के अधिवेशन में पंडित [[जवाहर लाल नेहरू]] ने इस पर्वतीय क्षेत्र के निवासियों को अपनी परिस्थितियों के अनुसार स्वयं निर्णय लेने तथा अपनी संस्कृति को समृद्ध करकने के आंदोलन का समर्थन किया।
* सन् १९४० में [[हल्द्वानी]] सम्मेलन में बद्रीदत्त पाण्डेय ने पर्वतीय क्षेत्र को विशेष दर्जा तथा [[अनुसूया प्रसाद बहुगुणा]] ने [[कुमाऊँ मण्डल|कुमाऊँ]]-[[गढ़वाल]] को पृथक इकाई के रूप में गठन की मांग रखी। [[१९५४]]में [[विधान परिषद]] के सदस्य [[इन्द्रसिंह नयाल]] ने [[उत्तर प्रदेश]] के मुख्यमंत्री [[गोविन्द बल्लभ पंत]] से पर्वतीय क्षेत्र के लिये पृथक विकास योजना बनाने का आग्रह किया तथा [[१९५५]] में [[फजल अली आयोग]] ने पर्वतीय क्षेत्र को अलग राज्य के रूप में गठित करने की संस्तुति की।
* वर्ष [[१९५७]] में [[योजना आयोग]] के उपाध्यक्ष [[टीटी कृष्णमाचारी]] ने पर्वतीय क्षेत्र की समस्याओं के निदान के लिये विशेष ध्यान देने का सुझाव दिया। [[१२ मई]] [[१९७०]] को [[प्रधानमंत्री]] [[इंदिरा गांधी]] द्वारा पर्वतीय क्षेत्र की समस्याओं का निदान राज्य तथा केन्द्र सरकार का दायित्व होने की घोषणा की और [[२४ जुलाई]] [[१९७९]] में पृथक राज्य के गठन के लिये [[मसूरी]] में [[उत्तराखण्ड क्रान्ति दल]] की स्थापना की गई। जून [[१९८७]] में [[कर्ण प्रयाग]] के सर्वदलीय सम्मेलन में [[उत्तराखण्ड]] के गठन के लिये संघर्ष का आह्वान किया तथा नवंबर १९८७ में पृथक [[उत्तराखण्ड]] राज्य के गठन के लिये [[नई दिल्ली]] में प्रदर्शन और राष्ट्रपति को ज्ञापन एवं [[हरिद्वार]] को भी प्रस्तावित राज्य में सम्मिलित् करने की मांग की गई।
* १९९४ [[उत्तराखण्ड]] राज्य एवं आरक्षण को लेकर छात्रों ने सामूहिक रूप से आन्दोलन किया। [[मुलायम सिंह यादव]] के [[उत्तराखण्ड]] विरोधी वक्तव्य से क्षेत्र में आन्दोलन तेज हो गया। [[उत्तराखण्ड क्रान्ति दल]] के नेताओं ने अनशन किया। [[उत्तराखण्ड]] में सरकारी कर्मचारी पृथक राज्य की मांग के समर्थन में लगातार तीन महीने तक हड़ताल पर रहे तथा [[उत्तराखण्ड]] में चक्काजाम और पुलिस फायरिंग की घटनाएं हुई। [[उत्तराखण्ड]] आन्दोलनकारियों पर मसूरी और [[खटीमा]] में पुलिस द्वारा गोलियां चलायीं गईं। संयुक्त मोर्चा के तत्वाधान में [[२ अक्टूबर]], [[१९९४]] को दिल्ली में भारी प्रदर्शन किया गया। इस संघर्ष में भाग लेने के लिये उत्तराखण्ड से हजारों लोगों की भागीदारी हुई। प्रदर्शन में भाग लेने जा रहे आन्दोलनकारियों को [[मुजफ्फर नगर]] में बहुत पेरशान किया गया और उन पर पुलिस ने फायिरिंग की और लाठिया बरसाईं तथा महिलाओं के साथ अश्लील व्यहार और अभद्रता की गयी। इसमें अनेक लोग हताहत और घायल हुए। इस घटना ने [[उत्तराखण्ड आन्दोलन]] की आग में घी का काम किया। अगले दिन तीन अक्टूबर को इस घटना के विरोध में [[उत्तराखण्ड]] बंद का आह्वान किया गया जिसमें तोड़फोड़ गोलाबारी तथा अनेक मौतें हुईं।
* [[७ अक्टूबर]], १९९४ को देहरादून में एक महिला आन्दोलनकारी की मृत्यु हो हई इसके विरोध में आन्दोलनकारियों ने पुलिस चौकी पर उपद्रव किया।
* [[१५ अक्टूबर]] को देहरादून में कर्फ्यू लग गया और उसी दिन एक आन्दोलनकारी शहीद हो गया।
* [[२७ अक्टूबर]], १९९४ को देश के तत्कालीन गृहमंत्री [[राजेश पायलट]] की आन्दोलनकारियों की वार्ता हुई। इसी बीच श्रीनगर में श्रीयंत्र टापू में अनशनकारियों पर पुलिस ने बर्बरतापूर्वक प्रहार किया जिसमें अनेक आन्दोलनकारी शहीद हो गए।
* [[१५ अगस्त]], [[१९९६]] को तत्कालीन प्रधानमंत्री [[एच.डी. देवगौड़ा]] ने उत्तराखण्ड राज्य की घोषणा [[लालकिले]] से की।
* [[१९९८]] में केन्द्र की [[भारतीय जनता पार्टी|भाजपा]] गठबंधन सरकार ने पहली बार राष्ट्रपति के माध्यम से उ.प्र. विधानसभा को '''उत्तरांचल विधेयक''' भेजा। उ.प्र. सरकार ने २६ संशोधनों के साथ उत्तरांचल राज्य विधेयक विधान सभा में पारित करवाकर केन्द्र सरकार को भेजा। केन्द्र सरकार ने [[२७ जुलाई]], [[२०००]] को उत्तर प्रदेश पुनर्गठन विधेयक २००० को [[लोकसभा]] में प्रस्तुत किया जो [[१ अगस्त]], २००० को लोकसभा में तथा [[१० अगस्त]], २००० अगस्त को [[राज्यसभा]] में पारित हो गया। [[भारत के राष्ट्रपति]] ने उत्तर प्रदेश पुनर्गठन विधेयक को [[२८ अगस्त]], २००० को अपनी स्वीकृति दे दी और इसके बाद यह विधेयक अधिनियम में बदल गया और इसके साथ ही ९ नवंबर, २००० को [[उत्तरांचल]] राज्य अस्तित्व मे आया जो अब [[उत्तराखण्ड]] नाम से अस्तित्व में है।
 
== राज्य आन्दोलन की घटनाएँ ==
१९६२ को चीन के साथ युद्ध के समय इस आन्दोलन को राष्ट्रहित में स्थगित कर दिया गया था, बाद में १९७९ में उत्तरांचल क्रान्ति दल (उक्रांद) का गठन मसूरी में हुआ, १२ वर्ष के आन्दोलन के बाद १२ आगस्त १९९१ को उत्तर प्रदेश की विधान सभा ने उत्तरांचल राज्य का प्रस्ताव पास कर केन्द्र सरकार की स्वीकृति के लिए
उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन में बहुत सी हिंसक घटनाएँ भी हुईं जो इस प्रकार हैं:
भेजा गया। २४ आगस्त १९९४ को उत्तर प्रदेश विधान सभा में एक बार पुन: उत्तराखण्ड राज्य का प्रस्ताव पास करके केन्द्र सरकार को मंजूरी के लिए भेजा गया।
 
=== खटीमा गोलीकाण्ड ===
उत्तर में हिमाच्छादित पर्वत श्रंखला, दक्षिण में दून और तराई-भाबर के घने जंगल, पूर्व में सदानीरा काली और पश्चिम में टोंस नदियों की भौगोलिक परिधि में स्थित उत्तरांचल नाम से ज्ञात मध्य हिमालय का प्रदेश एक सांस्कृतिक क्षेत्र माना जाता है।
[[१ सितंबर]], १९९४ को उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन का काला दिन माना जाता है, क्योंकि इस दिन की जैसी पुलिस बर्बरता की कार्यवाही इससे पहले कहीं और देखने को नहीं मिली थी। पुलिस द्वारा बिना चेतावनी दिये ही आन्दोलनकारियों के ऊपर अंधाधुंध फायरिंग की गई, जिसके परिणामस्वरुप सात आन्दोलनकारियों की मृत्यु हो गई।
मारे ग एलोगों के नाम हैं:
* अमर शहीद स्व० भगवान सिंह सिरौला, ग्राम श्रीपुर बिछुवा, खटीमा।
* अमर शहीद स्व० प्रताप सिंह, खटीमा।
* अमर शहीद स्व० सलीम अहमद, खटीमा।
* अमर शहीद स्व० गोपीचन्द, ग्राम-रतनपुर फुलैया, खटीमा।
* अमर शहीद स्व० धर्मानन्द भट्ट, ग्राम-अमरकलां, खटीमा
* अमर शहीद स्व० परमजीत सिंह, राजीवनगर, खटीमा।
* अमर शहीद स्व० रामपाल, निवासी-बरेली।
* अमर शहीद स्व० श्री भगवान सिंह सिरोला।
 
इस पुलिस फायरिंग में बिचपुरी निवासी श्री बहादुर सिंह, श्रीपुर बिछुवा के पूरन चन्द्र भी गंभीर रुप से घायल हुये थे।
इस प्रान्त का नाम कूर्माचल या कुमाऊँ होने के विषय में यह किम्वदन्ती कुमाउँ के लोगों में प्रचलित है कि जब विष्णु भगवान् का दूसरा अवतार कूर्म अथवा कछुवे का हुआ, तो वह अवतार कहा जाता है कि चंपावती नदी के पूर्व कूर्म पर्वत में जिसे आजकल कांड़देव या कानदेव कहते हैं, ३ वर्ष तक खड़ा रहा। उस समय हाहा हूहू देवतागण तथा नारदादि मुनीश्वरों ने उसकी प्रशंसा की। उस कूर्म (कच्छप)-अवतार के चरणों का चिन्ह पत्थर में हो गया और वह अब तक विद्यमान होना कहा जाता है। तब से इस पर्वत का नाम कूर्माचल (कूर्मअअचल) हो गया। कूर्माचल का प्राकृत रुप बिगड़ते-बिगड़ते 'कूमू' बन गया और यही शब्द भाषा में 'कुमाऊँ' में परिवर्तित हो गया। पहले यह नाम चंपावत तथा उसके आसपास के गाँवों को दिया गया। तत्पश्चात काली नदी के किनारे के प्रान्त-चालसी, गुमदेश, रेगङू, गंगोल, खिलफती और उन्हीं से मिली हूई ध्यानिरौ आदि पट्टियाँ भी काली कुमाऊँ नाम से प्रसिद्ध हुई। ज्यों-ज्यों चंदों का राज्य-विस्तार बढ़ा, तो कूर्माचल उर्फ़े कुमाऊँ इस सारे प्रदेश का नाम हो गया।
 
=== मसूरी गोलीकाण्ड ===
सब लोग में यही बात प्रचलित है कि कुमाऊँ का नाम कूर्मपर्वत के कारण पड़ा, पर ठा. जोधसिंह नेगीजी 'हिमालय-भ्रमण' में लिखते हैं - "कुमाऊँ के लोग खेती व धन कमाने में सिद्धहस्त हैं। वे बड़े कमाउ हैं, इससे इस देश का नाम कुमाउँ हुआ"। काली कुमाऊँ का नाम काली नदी के कारण नहीं, बल्कि कालू तड़ागी के नाम से पड़ा, जो किसी समय चम्पावत में राज्य करता था। इन तथ्यों को स्वीकार करना है कि किसी भू-प्रदेश का नाम किसी राजा के नाम से प्रचलित होना सार्वदेशिक नियम नहीं हैं। किसी प्रदेश या भूभाग का नाम किसी कारण से अधिक प्रसिद्ध होते हैं। देवदारु और बाँझ की घनी, काली झाड़ियों से भी इसका विशेषण 'काली' गया है।
[[२ सितंबर]], १९९४ को खटीमा गोलीकाण्ड के विरोध में मौन जुलूस निकाल रहे लोगों पर एक बार फिर पुलिसिया कहर टूटा। प्रशासन से बातचीत करने गई दो सगी बहनों को पुलिस ने झूलाघर स्थित आन्दोलनकारियों के कार्यालय में गोली मार दी। इसका विरोध करने पर पुलिस द्वारा अंधाधुंध फायरिंग कर दी गई, जिसमें कई लोगों को (लगभग २१) गोली लगी और इसमें से तीन आन्दोलनकारियों की अस्पताल में मृत्यु हो गई।
 
मसूरी गोलीकाण्ड में शहीद लोगः
चंद राजाओं के समय ऐसा भी हमें मालूम हुआ है कि कुर्माचल में तीन शासन मंडल थे -
* अमर शहीद स्व० बेलमती चौहान (४८), पत्नी श्री धर्म सिंह चौहान, ग्राम-खलोन, पट्टी घाट, अकोदया, टिहरी।
* अमर शहीद स्व० हंसा धनई (४५), पत्नी श्री भगवान सिंह धनई, ग्राम-बंगधार, पट्टी धारमंडल, टिहरी।
* अमर शहीद स्व० बलबीर सिंह (२२), पुत्र श्री भगवान सिंह नेगी, लक्ष्मी मिष्ठान्न, लाइब्रेरी, मसूरी।
* अमर शहीद स्व० धनपत सिंह (५०), ग्राम-गंगवाड़ा, पट्टी-गंगवाड़स्यू, गढ़वाल।
* अमर शहीद स्व० मदन मोहन ममगई (४५), नागजली, कुलड़ी, मसूरी।
* अमर शहीद स्व० राय सिंह बंगारी (५४), ग्राम तोडेरा, पट्टी-पूर्वी भरदार, टिहरी।
 
=== मुजफ्फरनगर (रामपुर तिराहा) गोलीकाण्ड ===
१. काली कुमाऊँ जिसमें काली कुमाऊँ के अतिरिक्त सारे, सीरा अस्कोट भी शामिल थे।
{{मुख्य|रामपुर तिराहा गोली काण्ड}}
२ अक्टूबर, १९९४ की रात्रि को दिल्ली रैली में जा रहे आन्दोलनकारियों का रामपुर तिराहा, मुजफ्फरनगर में पुलिस-प्रशासन ने जैसा दमन किया, उसका उदारहण किसी भी लोकतान्त्रिक देश तो क्या किसी तानाशाह ने भी आज तक दुनिया में नहीं दिया कि निहत्थे आन्दोलनकारियों को रात के अन्धेरे में चारों ओर से घेरकर गोलियां बरसाई गई और पहाड़ की सीधी-सादी महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार तक किया गया। इस गोलीकाण्ड में राज्य के ७ आन्दोलनकारी शहीद हो गये थे। इस गोली काण्ड के दोषी आठ पुलिसवालों पर्, जिनमे तीन इंस्पै़क्टर भी हैं, पर मामला चलाया जा रहा है।<ref>[http://english.samaylive.com/regional/uttarakhand/676467715.html उत्तराखण्ड गोली काण्ड] {{अंग्रेज़ी चिह्न}}</ref>
 
शहीदों के नाम:
२. अल्मोड़ा - जिसमें सालम, बारामंडल पाली तथा नैनीताल के वर्तमान पहाड़ी इलाके थे।
* अमर शहीद स्व० सूर्यप्रकाश थपलियाल (२०), पुत्र श्री चिंतामणि थपलियाल, चौदहबीघा, मुनि की रेती, ऋषिकेश।
* अमर शहीद स्व० राजेश लखेड़ा (२४), पुत्र श्री दर्शन सिंह लखेड़ा, अजबपुर कलां, देहरादून।
* अमर शहीद स्व० रविन्द्र सिंह रावत (२२), पुत्र श्री कुंदन सिंह रावत, बी-२०, नेहरु कालोनी, देहरादून।
* अमर शहीद स्व० राजेश नेगी (२०), पुत्र श्री महावीर सिंह नेगी, भानिया वाला, देहरादून।
* अमर शहीद स्व० सतेन्द्र चौहान (१६), पुत्र श्री जोध सिंह चौहान, ग्राम हरिपुर, सेलाकुईं, देहरादून।
* अमर शहीद स्व० गिरीश भद्री (२१), पुत्र श्री वाचस्पति भद्री, अजबपुर खुर्द, देहरादून।
* अमर शहीद स्व० अशोक कुमारे कैशिव, पुत्र श्री शिव प्रसाद, मंदिर मार्ग, ऊखीमठ, रुद्रप्रयाग।
 
=== देहरादून गोलीकाण्ड ===
३. तराऊ भावर का इलाका या माल। ये शासन मंडल उस समय थे, जब चंद-राज्य चरम सीमा को पहुँच गया था।
[[३ अक्टूबर]], १९९४ को मुजफ्फरनगर काण्ड की सूचना देहरादून में पहुंचते ही लोगों का उग्र होना स्वाभाविक था। इसी बीच इस काण्ड में शहीद स्व० श्री रविन्द्र सिंह रावत की शवयात्रा पर पुलिस के लाठीचार्ज के बाद स्थिति और उग्र हो गई और लोगों ने पूरे देहरादून में इसके विरोध में प्रदर्शन किया, जिसमें पहले से ही जनाक्रोश को किसी भी हालत में दबाने के लिये तैयार पुलिस ने फायरिंग कर दी, जिसने तीन और लोगों को इस आन्दोलन में शहीद कर दिया।
 
मारे गए लोगों के नामः
कुमाऊँ को हूणदेश वाले 'क्युनन' अँग्रेज 'कमाऊन' (कहसोदल), देशी लोग 'कमायूं' यहाँ को रहने वाले 'कुमाऊँ' और संस्कृतज्ञ 'कूर्माचल' कहते हैं। खास काली कुमाऊँ में चंपावत का नाम 'कुमू' कहा जाता है। वहाँ अब भी लोग चंपावत को 'कुमू' कहते है।
* अमर शहीद स्व० बलवन्त सिंह सजवाण (४५), पुत्र श्री भगवान सिंह, ग्राम-मल्हान, नयागांव, देहरादून।
* अमर शहीद स्व० राजेश रावत (१९), पुत्र श्रीमती आनंदी देवी, २७-चंदर रोड, नई बस्ती, देहरादून।
* अमर शहीद स्व० दीपक वालिया (२७), पुत्र श्री ओम प्रकाश वालिया, ग्राम बद्रीपुर, देहरादून।
* स्व० राजेश रावत की मृत्यु तत्कालीन [सपा] नेता सूर्यकांत धस्माना के घर से हुई फायरिंग में हुई थी।
 
=== कोटद्वार काण्ड ===
[[श्रेणी:उत्तराखण्ड]]
३ अक्टूबर, १९९४ को पूरा उत्तराखण्ड मुजफ्फरनगर काण्ड के विरोध में उबला हुआ था और पुलिस-प्रशासन इनके किसी भी प्रकार से दमन के लिये तैयार था। इसी कड़ी में कोट्द्वार में भी आन्दोलन हुआ, जिसमें दो आन्दोलनकारियों को पुलिस कर्मियों द्वारा राइफल के बटों व डण्डों से पीट-पीटकर मार डाला।
 
कोटद्वार में शहीद आन्दोलनकारी:
* अमर शहीद स्व० श्री राकेश देवरानी।
* अमर शहीद स्व० श्री पृथ्वी सिंह बिष्ट, मानपुर, कोटद्वार।
 
=== नैनीताल गोलीकाण्ड ===
नैनीताल में भी विरोध चरम पर था, लेकिन इसका नेतृत्व बुद्धिजीवियों के हाथ में होने के कारण पुलिस कुछ कर नहीं पाई, लेकिन इसकी भड़ास उन्होने निकाली प्रशान्त होटल में काम करने वाले प्रताप सिंह के ऊपर। आर०ए०एफ० के सिपाहियों ने इसे होटल से खींचा और जब यह बचने के लिये मेघदूत होटल की तरफ भागा, तो इनकी गर्दन में गोली मारकर हत्या कर दी गई।
 
नैनीताल गोलीकांड में शहीद लोगः
* अमर शहीद स्व० श्री प्रताप सिंह।
 
=== श्रीयंत्र टापू (श्रीनगर) काण्ड ===
[[श्रीनगर, उत्तराखण्ड|श्रीनगर]] कस्बे से २ कि०मी० दूर स्थित [[श्रीयन्त्र टापू]] पर आन्दोलनकारियों ने [[७ नवंबर]], १९९४ से इन सभी दमनकारी घटनाओं के विरोध और पृथक [[उत्तराखण्ड]] राज्य हेतु आमरण अनशन आरम्भ किया। [[१० नवंबर]], [[१९९४]] को पुलिस ने इस टापू में पहुँचकर अपना कहर बरपाया, जिसमें कई लोगों को गम्भीर चोटें भी आई, इसी क्रम में पुलिस ने दो युवकों को राइफलों के बट और लाठी-डण्डों से मारकर [[अलकनन्दा नदी]] में फेंक दिया और उनके ऊपर पत्थरों की बरसात कर दी, जिससे इन दोनों की मृत्यु हो गई।
 
श्रीयन्त्र टापू के शहीद लोगः
* अमर शहीद स्व० श्री [[राजेश रावत]]।
* अमर शहीद स्व० श्री [[यशोधर बेंजवाल]]।
 
इन दोनों शहीदों के शव [[१४ नवंबर]], [[१९९४]] को [[बागवान]] के समीप [[अलकनन्दा]] में तैरते हुये पाये गये थे।
 
== यह भी देखें ==
* [[उत्तराखण्ड का इतिहास]]
 
== संदर्भ ==
{{टिप्पणीसूची}}
 
== बाहरी कड़ियाँ ==
 
* [http://www.merapahadforum.com/uttarakhand-history-and-peoples-movement/martyrs-of-uk-movement/ उत्तराखण्ड आन्दोलन के अमर शहीद और आन्दोलनकारी]
* [http://www.country-data.com/cgi-bin/query/r-6037.html उत्तराखण्ड राज्य के बनने के कारण] {{अंग्रेज़ी चिह्न}}
* [http://uttarakhand.prayaga.org/news-inauguration.html नए राज्य उत्तरांचल की स्थापना पर पर संग्रहित टीकाएँ] {{अंग्रेज़ी चिह्न}}
 
{{उत्तराखण्ड}}
 
[[श्रेणी:उत्तराखण्ड का इतिहास]]