"स्वामी सोमदेव": अवतरणों में अंतर
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==स्वामीजी का बिस्मिल पर प्रभाव==
जिन दिनों बालक रामप्रसाद उनकी सेवा में नियुक्त था वे उसे धार्मिक तथा राजनैतिक उपदेश
सन् 1916 में जब लाहौर षड्यन्त्र का मुकदमा चला मैं और भाई परमानन्द की फाँसी की सजा का समाचार छपा तो उसे पढ़कर बिस्मिल के तन वदन में आग लग गयी। उसने प्रतिज्ञा की कि वह इसका बदला अवश्य लेगा। प्रतिज्ञा करने के पश्चात् बिस्मिल स्वामी सोमदेव के पास गये और उन्हें अपनी प्रतिज्ञा के बारे में बताया। इस पर उन्होंने बिस्मिल से कहा कि प्रतिज्ञा करना तो आसान है परन्तु उस पर कायम रहना काफी कठिन है। रामप्रसाद बिस्मिल ने स्वामीजी को प्रणाम कर कहा कि यदि उनके श्रीचरणों की कृपा बनी रही तो प्रतिज्ञा पूर्ति में किसी प्रकार की कोताही नहीं होगी। उस दिन से स्वामी सोमदेव ने बालक बिस्मिल को राजनीति सम्बन्धी बहुत-सी बातें बतानी शुरू कीं। बकौल बिस्मिल उसी दिन से रामप्रसाद के मन में क्रान्तिकारी बनने की तमन्ना जागृत हुई और वह राम प्रसाद से रामप्रसाद बिस्मिल हो गया।
सोमदेव आर्य-समाज के सिद्धान्तों के अतिरिक्त [[रामकृष्ण परमहंस]], [[स्वामी विवेकानन्द]], [[स्वामी रामतीर्थ]] और महात्मा [[कबीरदास]] के उपदेशों के बारे में बिस्मिल को काफी कुछ बताया करते थे।
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