"वार्ता:अफ़ग़ानिस्तान": अवतरणों में अंतर

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:{{सुनिए|Bill william compton}}, {{सुनिए|संजीव कुमार}}, {{सुनिए|Prateekmalviya20}} {{ping|Shubhamkanodia}} {{ping|Hindustanilanguage}}-मैं बिल जी व मुज़म्मिल जी से पूर्णतया सहमत हूँ। हिंदी भाषा की सबसे बड़ी खासियत ही यही है कि इसमें लेखन व उच्चारण में कोई भेद नहीं है, किसी एक अक्षर के दो उच्चारण नहीं होते और यह खासियत इसे कई वैश्विक भाषाओं से बेहतर बनाती है। हिंदी के बाहर से आने वाले शब्दों को इस प्रकार से हिंदी में ढालना कि इसकी यह विशेषता यथासंभव बनी रहे, यही आज के समय में हम सबके लिए सबसे बड़ी चुनौती है। संजीव जी की बात भी कुछ हद तक ठीक है कि प्रचलन का ध्यान भी रखना होगा। अतः मेरे विचार से मध्य मार्ग यही है कि पृष्ठनाम तो शुद्ध ही होना चाहिए, लेकिन प्रचलित नाम से एक अनुप्रेषित पृष्ठ भी रखा जा सकता है क्योंकि कोई भी पाठक सर्च करते समय तो अशुद्ध वर्तनी लिखेगा किंतु अनुप्रेषित पृष्ठ पर ठीक वर्तनी मिलेगी तो आगे के लिए उसे भी सही वर्तनी का ज्ञान हो जाएगा। --<font color="orange">&#9742;</font>[[u:Manojkhurana|<u><b><font color="green">मनोज खुराना</font></b></u>]] <sup> [[user talk:Manojkhurana| <b><font color="orange">वार्ता </font> </b>]] </sup> 05:08, 13 अप्रैल 2014 (UTC)
 
:: बिल जी का जवाब मुझे बड़ा सटीक लगा। आजकल तकनीक ने हिंदी में टाइप करना इतना आसान कर दिया है, कि समाचार पत्रिकाओं और नेट पर भी भाषा व वर्तनी की शुद्धता पर लोग ध्यान नहीं देते। पर मैंने अक्सर देखा है की बीबीसी अन्य स्रोतों के मुकाबले इस मामले में ज़्यादा विश्वसनीय रहता है। मैं अफ़गानिस्तान के समर्थन में हूँ। <font color="#585858">░▒▓</font>► [[User:Shubhamkanodia|<b><font color="#1B7CFF">शुभम</font><font color="#1B5AFF"> कनो</font><font color="#1B4AF">डिया</font></b>]]<sup>[[User talk:shubhamkanodia|<span title="(͡° ͜ʖ ͡°) बातचीत करें!"> वार्ता</span>]]</sup> 07:07, 13 अप्रैल 2014 (UTC)
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