"शाहिद (फ़िल्म)": अवतरणों में अंतर

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राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार
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'''''शाहिद'''''<ref>{{cite web | publisher= cinemanewstoday.com| title=Shahid Movie Reviews and views | url=http://www.cinemanewstoday.com/shahid-movie-reviews-and-views-viewers-movie-at-its-best/ }}</ref> एक [[अनुराग कश्यप]] निर्मित एवं हंसल मेहता निर्देशित जीवनी आधारित २०१३ की हिन्दी फ़िल्म है। यह एक वकील और मानवाधिकार कार्यकर्त्ता, [[शाहिद आज़मी]], जिनकी २०१० में मुम्बई में हत्या कर दी गई थी<ref name=toi10>{{cite news |title=26/11 accused Fahim Ansari's lawyer Shahid Azmi shot dead |url=http://articles.timesofindia.indiatimes.com/2010-02-11/india/28127692_1_fahim-ansari-assailants-shahid-azmi |publisher=''द टाइम्स ऑफ़ इण्डिया'' |date=11 फरवरी 2010 }}</ref><ref>{{cite web |url=http://www.tehelka.com/story_main43.asp?filename=Ne270210a_grain.asp |title=A Grain In My Empty Bowl: A crusader for justice is silenced. Actually not .. |author= अजीत साही |date= 27 फरवरी 2010 |publisher=''तहलका'', भाग 7, Issue 08|accessdate=19 अक्टूबर 2013}}</ref> के जीवन पर आधारित फ़िल्म है। फ़िल्म का प्रथम प्रदर्शन २०१२ के [[टोरंटो अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म समारोह]] में सितम्बर २०१२ में 'सिटी टू सिटी' प्रोग्राम में किया गया।<ref name=iexp12>{{cite news |title= The ‘unlikely’ lawyer as an unlikely hero |url=http://www.indianexpress.com/news/the-unlikely-lawyer-as-an-unlikely-hero/985769/0 |newspaper=इण्डियन एक्सप्रेस |date=09 अगस्त 2012 |accessdate=19 अक्टूबर 2013}}</ref><ref>{{cite news |title=Anurag Kashyap's film at Toronto Film Festival|url=http://www.mid-day.com/entertainment/2012/aug/020812-Anurag-Kashyaps-film-at-Toronto-Film-Festival.htm |newspaper=मिड-डे |date=2 अगस्त 2012|accessdate=19 अक्टूबर 2013}}</ref><ref>{{cite web|title=Shahid|url=http://tiff.net/filmsandschedules/tiff/2012/shahid|publisher=Toronto International Film Festival|accessdate=19 अक्टूबर 2013}}</ref> फ़िल्म के वितरण अधिकार [[यूटीवी मोशन पिक्चर्स]] के पास हैं और इसे १८ अक्टूबर २०१३ को जारी किया गया।<ref>http://www.indianexpress.com/news/disney-utv-to-release-hansal-mehtas-shahid-on-oct-18/1165067/</ref>
 
अप्रैल 2014 में 61वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में हंसल मेहता को सर्वश्रेष्ठ निर्देशक तथा राजकुमार को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार मिला।<ref name="nbt-16apr2014">{{cite web | url= http://hindi.economictimes.indiatimes.com/movie-masti/news-from-bollywood/61st-National-Film-Awards-Ship-of-Theseus-Jolly-LLB-Best-Films/articleshow/33824636.cms| title= नैशनल अवॉर्डः शिप ऑफ थीसियस, जॉली LLB बेस्ट फिल्में| publisher = नवभारत टाईम्स| date= 16 अप्रैल 2014| accessdate= 17 अप्रैल 2014}}</ref>
 
 
==कथानक==
शाहिद अंसारी (राज कुमार यादव) को मुंबई पुलिस ने जब 1992 के बम धमाकों में कथित तौर पर आतंक फैलाने का आरोप लगाकर जेल में डाल दिया जाता है।। इस घटना में शाहिद को नजदीक से जानने वाला हर कोई हैरान होता है। गरीब फैमिली के शाहिद का कसूर क्या था, इसका पता तो खुद उसे और उसके परिवार तक को नहीं था। पुलिस कस्टडी में दिल दहला देने वाली यातनाओं को सहने के बाद जेल जाने के बाद शाहिद की मुलाकात वॉर साब ([[केके मेनन]]) से हुई। वॉर साब से मिलने के बाद शाहिद को महसूस हुआ कि बेगुनाह होने के बावजूद जेल में बंद अकेला वही नहीं है। उस जैसे सैकड़ों और भी हैं, जिन्हें पुलिस ने सिर्फ शक के आधार पर थर्ड डिग्री टॉर्चर देने के बाद जेल में बंद कर रखा है। यहीं रहकर शाहिद ने कानून की पढ़ाई पूरी की और बाहर आकर वकालत की पढ़ाई जारी रखते हुए करने इसकी डिग्री लेने के बाद मशहूर वकील मेमन (तिग्मांशु धूलिया) के साथ वकालत शुरू की। शाहिद की वकालत का मकसद उन बेगुनाहों को जेल से बाहर निकालना था, जिन्हें पुलिस ने सिर्फ शक के आधार पर बंद कर रखा था। अल्पसंख्यक समुदाय के उन तमाम लोगों की क़ानूनी मदद करता है जो ग़लत आरोपों में जेल में डाल दिए गए हैं। शाहिद ने वकालत को उन गरीब बेगुनाहों को न्याय दिलाने का जरिया बनाया जिनके पास क़ानूनी लड़ाई के लिए पैसा नहीं है। शाहिद ने 2006 में घाटकोपर बस धमाके के आरोपी आरिफ पान वाला को बरी कराया, तो सरकारी वकील (विपिन शर्मा) से जबर्दस्त बहस के बाद अदालत से 26/11 के आरोपी फहीम अंसारी को भी बरी कराया। इसी दौरान शाहिद की मुलाकात मरियम (प्रभलीन संधु) से हुई जो अपनी पुश्तैनी जायदाद को हासिल करने के लिए बरसों से मुकदमा लड़ रही थीं। कुछ मुलाकातों के बाद शाहिद और मरियम नजदीक आए और साथ रहने लगे। साथ ही वह अपनी वकालत जारी रखता है लेकिन धार्मिक कट्टरपंथियों को 'शाहिद' के तौर तरीके रास नहीं आते। उसे धमकियां मिलती हैं कि वो अपनी 'हरकतों' से बाज़ आए लेकिन शाहिद पुलिस ज़्यादतियों का शिकार हुए लोगों की लगातार मदद करता रहता है।