"आदर्शवाद": अवतरणों में अंतर

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==नि:श्रेयस का स्वरूप==
नि:श्रेयस या सर्वोच्च आदर्श के स्वरूप के संबंध में सभी इससे सहमत हैं कि यह चेतना से संबद्ध है, परंतु ज्योंहीज्यों ही हम जानना चाहते हैं कि चेतना में कौन सा अंश साध्यमूल्य है, त्योंही मतभेद प्रस्तुत हो जाता है। कुछ लोग कहते हैं कि सुख का उपभोग ऐसा मूल्य है। कुछ ज्ञान, बुद्धिमत्ता, प्रेम या शिवसंकल्प को यह पद देते हैं। कुछ इस विकल्प में एकवाद को छोड़कर अनेकवाद की शरण लेते हैं ओर कहते हैं कि एक से अधिक वस्तुएँ साध्यमूल्य हैं किसी वस्तु के साध्यमूल्य होने या न होने का निर्णय करने के लिए [[डाक्टर मूर]] ने निम्नलिखित सुझाव दिया है: ''कल्पना करो कि दो विकल्पों मे पूर्ण समानता है, सिवाय इस भेद के कि एक विशेष वस्तु एक विप्लव में विद्यमान है। इन दोनों विप्लवों में तुम्हारी बुद्धि किसके अस्तित्व को अधिक उपयुक्त समझती है? जो वस्तु ऐसी स्थिति में एक विप्लव को दूसरे से अधिक उपयुक्त बनाती है, वह साध्यमूल्य हैं।''
 
==आदर्शवाद की मान्य धारणाएँ==
मूल्यों का अस्तित्व, उनमें श्रेष्ठता का भेद ओर सर्वश्रेष्ठ मूल्य का अस्तित्व आदर्शवाद की मौलिक धारणा है। इससे संबद्ध कुछ अन्य धारणाएँ भी आदर्शवादियों के लिए मान्य हैं। इनमें से हम यहाँ तीन पर विचार करेंगे:
 
*(१) सामान्य का पद विशेष से ऊँचा है। प्रत्येक बुद्धिवंत बुद्धिवंत होने के नाते भद्र में भाग लेने का अधिकारी है। *(२) आध्यात्मिक भद्र का मूल्य प्राकृतिक भद्र से अधिक है।
*(२) आध्यात्मिक भद्र का मूल्य प्राकृतिक भद्र से अधिक है।
*(३) बुद्धिवंत प्राणी (मनुष्य) में भद्र को सिद्ध करने की क्षमता है। मनुष्य स्वाधीन कर्ता है।
 
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===स्वार्थ और सर्वार्थ===
सामान्य और विशेष का भेद स्वार्थवाद और सर्वार्थवाद के विवाद में प्रकट होता है। भोगवाद (सुखवाद) ने स्वार्थ से आरंभ किया, परंतु शीघ्र ही इसके ध्एयध्येय में सर्वार्थस्वार्थ ने स्थान प्राप्त कर लिया। मनुष्य का अंतिम उद्देश्य अधिक से अधिक संख्या का अधिक से अधिक उपभोग है। दूसरी ओर [[कांट]] ने भी कहा कि निरपेक्ष आदेश की दृष्टि में सारे मनुष्य एक समान साध्य हैं, कोई मनुष्य भी साधन मात्र नहीं। मृत्यु की तरह नैतिक जीवन सभी भेदों को मिटा देता है। कोई मनुष्य कर्तव्य से ऊपर नहीं, कोई अधिकारों से वंचित नहींनहीं।
 
===आध्यात्मिक और प्राकृतिक मूल्य===
इस विषय में कांट का कथन प्रसिद्ध है: ''जगत में ओर इसके परे भी हम शिवसंकल्प के अतिरिक्त किसी वस्तु का भी चिंतन नहीं कर सकते, जो बिना किसी शर्त के शुभ या भद्र हो।'' जान[[जॉन स्टुअर्ट मिल]] जैसे [[सुखवाद|सुखवादी]] ने भी कहा, तृप्त सुअर[[सूअर]] से अतृप्त [[सुकरात]] होना उत्तम है। मिल ने यह नहीं देखा कि इस स्वीकृति में वह अपने सिद्धांत से हटकर आदर्शवाद का समर्थन कर रहे हैं। सुकरात में ऐसा आध्यात्मिक अंश है जो सुअरसूअर में विद्यमान नहीं।
 
[[थॉमस हिल ग्रीन|टामस हिल ग्रीन]] ने विस्तार से यह बताने का यत्न किया है कि आधुनिक नैतिक भावना प्राचीन यूनान की भावना से इन दो बातों में बहुत आगे बढ़ी है-मनुष्य और मनुष्य में भेद कम हो गया है,और जीवन में आध्यात्मिक पक्ष अग्रसर हो रहा है।
 
===नैतिक स्वाधीनता===