"गुरु-शिष्य परम्परा": अवतरणों में अंतर
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'''[[गुरु]]-शिष्य परम्परा''' आध्यात्मिक प्रज्ञा का नई पीढियों तक पहुंचाने का सोपान।
[[भारतीय संस्कृति]] में '''गुरु-शिष्य परम्परा''' के अन्तर्गत गुरु (शिक्षक) अपने शिष्य को शिक्षा देता है या कोई विद्या सिखाता है। बाद में वही शिष्य गुरु के रूप में दूसरों को शिक्षा देता है। यही क्रम चलता जाता है। यह परम्परा सनातन धर्म की सभी धाराओं में मिलती है। गुरु-शिष्य की यह परम्परा [[ज्ञान]] के किसी भी क्षेत्र में हो सकती है, जैसे- आध्यात्म, संगीट, कला, वेदाध्ययन, वास्तु आदि। भरतीय संस्क्र्ति में गुरु का बहुत महत्व है। कहीं गुरु को 'ब्रह्मा-विष्णु-महेश' कहा गया है तो कहीं 'गोविन्द'। 'सिख' शब्द [[संस्कृत]] के 'शिष्य' से व्युत्पन्न है।
[[श्रेणी:भारतीय संस्कृति]]
A student should always obey his/her teacher. He/She should not argue and make the teacher sad. He/She should respect their teachers.
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