"कृष्ण": अवतरणों में अंतर
[अनिरीक्षित अवतरण] | [अनिरीक्षित अवतरण] |
Content deleted Content added
No edit summary टैग: मोबाइल संपादन |
No edit summary टैग: मोबाइल संपादन |
||
पंक्ति 48:
== जन्म ==
कृष्ण का जन्म चंद्रवंश में हुआ। कंस ने अपनी प्रिय बहन [[देवकी]] का विवाह यदुवंशी [[वसुदेव]] से विधिपुर्वक कराया।
जब कंस अपनी बहन को रथ में बिठा कर वसुदेव के घर ले जा रहा था तभी आकाशवाणी हुई और उसे पता चला कि उसकी बहन का आठवाँ संतान ही उसे मारेगा।
[[कंस]] ने अपनी बहन को कारागार (Lockup) में बंद कर दिया और क्रमश: 6 पुत्रों को मार दिया, 7वें पुत्र के रूप में नाग के अवतार [[बलराम]] जी थे जिसे श्री हरि ने योगमाया से रोहिणी के गर्भ में स्थगित कर दिया।
आठवें गर्भ में कृष्ण थे। भाद्रपद कृष्ण पक्ष अष्टमी को रात के 12:00 बजे उनका जन्म हुआ।
कहते हैं माता देवकी को कृष्ण के जन्म का पता ही नहीं चला उन्हें दर्द का आभास हीही नहीं हुआ।
जब कृष्ण जी का जन्म हुआ तो महल के सारे सैनिक सो गये और कारागार के ताले खुल गये। वसुदेव जी कृष्ण को लेकर रातोरात [[यशोदा]] के घर चले गए और कहते हैं तब वर्षा हो रही थी जिससे वसुदेव की रक्षा नागदेव ने की तथा यमुना भी बीच से दो भागों में बँट गईं। रात में ही वसुदेव गोकुल में [[नंद]] और यशोदा के घर गये और यशोदा की कन्या की जगह अपने पुत्र को रखकर कन्या को कारागार में ले आए।
जब कंस को पता चला कि देवकी की कन्या का जन्म हो चुका है तब उसने उसे भी मारने का प्रयास किया परंतु माता परांबा भगवती योगमाया रूपी वह कन्या आकाशमार्ग में अंतर्ध्यान हो गई।
जाते जाते उस कन्या ने कंस से कहा, "अरे दुष्ट! जा ढूँढ सकता है तो ढूँढ ले तेरा काल गोकुल में है।" ऐसा कहकर वह कन्या विंध्याचल पर्वत में चली गई, बाद में वही माता [[विंध्यवासिनी]] के रूप में प्रसिद्ध हुईं।
माता विंध्यवासिनी की जय!
जय जय श्री राधारमण, जय जय नवलकिशोर।
जय गोपी चितचोर प्रभु! जय जय माखनचोर।।
ब्रजे वसंतं नवनीत चौरं, गोपांगनानां चदुकूल चौरम्।
अनेक जन्मार्जित पाप चौरं, चौराग्रगण्यं पुरुषं नममि।।
== कृष्ण लीलाओं में छिपा संदेश ==
|