"देवर्षि रमानाथ शास्त्री": अवतरणों में अंतर

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'''देवर्षि रमानाथ शास्त्री'''(जन्म: का1878, जन्म- आन्ध्रमृत्यु: से1943) [[जयपुरसंस्कृत भाषा]] आयेके कवि तथा [[कृष्ण यजुर्वेदवल्लभाचार्य|कृष्णयजुर्वेदश्रीमद्वल्लभाचार्य]] कीद्वारा तैत्तरीय शाखा अध्येता वेल्लनाडु ब्राह्मण विद्वानों के देवर्षि परिवार की विद्वत् परम्परा में सन् 1878 (विक्रम संवत् 1936, श्रावण शुक्ल पञ्चमी) कोप्रणीत [[जयपुरपुष्टिमार्ग]] मेंएवं हुआ।शुद्धाद्वैत आपके पिता का नाम श्री द्वारकानाथ तथा माता का नाम श्रीमती जानकी देवी था। आप संस्कृतदर्शन के मूर्धन्य विद्वान् तथा युगपुरुष कविशिरोमणि [[भट्ट मथुरानाथ शास्त्री]] के अग्रज थे। आपवे बाल्यावस्था से ही [[[[संस्कृत भाषा|संस्कृत]] में कविता करने लग गए थे और उसी दौरान प्रसिद्ध मासिक पत्र ‘संस्कृत रत्नाकर’ में उनकी चमत्कृत कर देने वाली प्रारंभिक कविता ‘वियोगिनीबाला’ छपी थी। उन्होने आपने [[हिन्दी]], [[ब्रजभाषा]] तथा [[संस्कृत]] में प्रचुर लेखन किया।किया आपहै। [[वल्लभाचार्य|श्रीमद्वल्लभाचार्य]]वे द्वारासंस्कृत प्रणीतके विद्वान् [[पुष्टिमार्गभट्ट मथुरानाथ शास्त्री]] एवं शुद्धाद्वैत दर्शन के मर्मज्ञ विद्वानअग्रज थे।
 
==प्रारंभिक जीवन और शिक्षा==
देवर्षि रमानाथ शास्त्री का देहावसान [[नाथद्वारा]] में सन् 1943 में 65 वर्ष की आयु में हुआ।
देवर्षिशास्त्री रमानाथका शास्त्रीजन्म आन्ध्र से [[जयपुर]] आये [[कृष्ण यजुर्वेद|कृष्णयजुर्वेद]] की तैत्तरीय शाखा अध्येता वेल्लनाडु ब्राह्मण विद्वानों के देवर्षि परिवार की विद्वत् परम्परा में सन् 1878 (विक्रम संवत् 1936, श्रावण शुक्ल पञ्चमी) को [[जयपुर]] में हुआ। उनके पिता का नाम श्री द्वारकानाथ तथा माता का नाम श्रीमती जानकी देवी था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा [[जयपुर]] के महाराजा संस्कृत कॉलेज में हुई और 1896 में 18 वर्ष की आयु में आपवे उच्च शिक्षा प्राप्त करने [[वाराणसी]] चले गए। उन्होने 1903 में आपने [[मुम्बई]] को अपना कार्यक्षेत्र चुना। कालबादेवी रोड पर उन दिनों नारायण मूलजी की प्रसिद्ध पुस्तकों की दुकान हुआ करती थी जहाँ सायंकाल को विद्वान लोग शास्त्रीय चर्चा के लिए इकट्ठे होते थे। कई बार विद्वानों में [[शास्त्रार्थ]] भी होजाताहो जाता था। ऐसे ही एक शास्त्रार्थ के दौरान देवर्षि रमानाथ शास्त्री कीउनकी भेंट वहाँ के एक सम्माननीय व्यक्ति सेठ चत्तामुरारजी से होगईहो गई जो उनकी विद्वत्ता और [[शास्त्रार्थ]] में उनकी पाण्डित्यपूर्ण वाग्मिता से अत्यंत प्रभावित हुए। उनके आग्रह पर शास्त्रीजी अनन्तवाड़ी में रहने लगे जहाँ वे [[श्रीमद्भागवत]] का अनुष्ठान करते। कुछ समय के बाद आपकोउन्हें श्रीगोकुलाधीश मन्दिर में व्यासगद्दी मिल गयी। मन्दिर के गोस्वामी गोवर्धनलालजी महाराज की अनुशंसा से आपवे हनुमान गली में स्थित तत्कालीन वसनजी मनजी संस्कृत विद्यालय में प्रधानाध्यापक भीहो गये। होगये।
 
== शिक्षा तथा पुष्टिमार्ग सम्प्रदाय को योगदान ==
 
देवर्षि रमानाथ शास्त्री की प्रारंभिक शिक्षा [[जयपुर]] के महाराजा संस्कृत कॉलेज में हुई और 1896 में 18 वर्ष की आयु में आप उच्च शिक्षा प्राप्त करने [[वाराणसी]] चले गए। 1903 में आपने [[मुम्बई]] को अपना कार्यक्षेत्र चुना। कालबादेवी रोड पर उन दिनों नारायण मूलजी की प्रसिद्ध पुस्तकों की दुकान हुआ करती थी जहाँ सायंकाल को विद्वान लोग शास्त्रीय चर्चा के लिए इकट्ठे होते थे। कई बार विद्वानों में [[शास्त्रार्थ]] भी होजाता था। ऐसे ही एक शास्त्रार्थ के दौरान देवर्षि रमानाथ शास्त्री की भेंट वहाँ के एक सम्माननीय व्यक्ति सेठ चत्तामुरारजी से होगई जो उनकी विद्वत्ता और [[शास्त्रार्थ]] में उनकी पाण्डित्यपूर्ण वाग्मिता से अत्यंत प्रभावित हुए। उनके आग्रह पर शास्त्रीजी अनन्तवाड़ी में रहने लगे जहाँ वे [[श्रीमद्भागवत]] का अनुष्ठान करते। कुछ समय के बाद आपको श्रीगोकुलाधीश मन्दिर में व्यासगद्दी मिल गयी। मन्दिर के गोस्वामी गोवर्धनलालजी महाराज की अनुशंसा से आप हनुमान गली में स्थित तत्कालीन वसनजी मनजी संस्कृत विद्यालय में प्रधानाध्यापक भी होगये।
 
इन्हीं दिनों आपका परिचय भूलेश्वर स्थित मोटा मन्दिर के गोस्वामी श्री गोकुलनाथ जी महाराज से होगया जो शीघ्र ही मित्रवत् घनिष्ठता में बदल गया। देवर्षि रमानाथ शास्त्री के प्रयत्नों से [[पुष्टिमार्गीय वैष्‍णव सम्‍प्रदाय]] में एक आन्दोलन की तरह नई चेतना जागृत हुई। आप मोटा मन्दिर के श्रीबालकृष्ण पुस्तकालय के मैनेजर तथा पाठशाला के प्रधान पण्डित होगये। गोस्वामीजी के अनुरोध पर आपने सम्प्रदाय में ‘शास्त्री’ पद भी स्वीकार किया। देवर्षि रमानाथ शास्त्री मुम्बई में सन् 1930 तक रहे। इस प्रवास के दौरान आप न केवल [[पुष्टिमार्गीय वैष्‍णव सम्‍प्रदाय|पुष्टिमार्गीय सम्प्रदाय]] के मर्मज्ञ व अद्वितीय विद्वान के रूप में प्रतिष्ठित हुए, वरन् आपने शुद्धाद्वैत [[दर्शन]] का विवेचन और [[पुष्टिमार्ग]] के अनुपम रहस्यों तथा [[सिद्धांत]] की व्याख्या करते हुए अनेक वैदुष्यपूर्ण ग्रन्थ भी लिखे।
 
==योगदान==
देवर्षिमुंबई प्रवास के दौरान उनका परिचय भूलेश्वर स्थित मोटा मन्दिर के गोस्वामी श्री गोकुलनाथ जी महाराज से हो गया जो शीघ्र ही मित्रवत् घनिष्ठता में बदल गया। उनके प्रयत्नों से [[पुष्टिमार्गीय वैष्‍णव सम्‍प्रदाय]] में एक आन्दोलन की तरह नई चेतना जागृत हुई। वे मोटा मन्दिर के श्रीबालकृष्ण पुस्तकालय के मैनेजर तथा पाठशाला के प्रधान पण्डित हो गये। गोस्वामीजी के अनुरोध पर उन्होने सम्प्रदाय में ‘शास्त्री’ पद भी स्वीकार किया। वे मुम्बई में सन् 1930 तक रहे। इस प्रवास के दौरान वे न केवल [[पुष्टिमार्गीय वैष्‍णव सम्‍प्रदाय|पुष्टिमार्गीय सम्प्रदाय]] के मर्मज्ञ व अद्वितीय विद्वान के रूप में प्रतिष्ठित हुए, वरन् उन्होने शुद्धाद्वैत [[दर्शन]] का विवेचन और [[पुष्टिमार्ग]] के अनुपम रहस्यों तथा [[सिद्धांत]] की व्याख्या करते हुए अनेक वैदुष्यपूर्ण ग्रन्थ भी रमानाथलिखे। शास्त्रीवे कई वर्षों तक मुंबई की तत्कालीन विद्वत्परिषद, ब्रह्मवाद परिषद तथा [[सनातन धर्म]] सभा के मानद मंत्री रहे। यहाँ आपनेउन्होने ‘स्वधर्म विवर्धिनी सभा’ की स्थापना की जिसके अंतर्गत प्रत्येक एकादशी को एक व्याख्यानमाला का आयोजन किया जाता था। इनकेउनके [[व्याख्यान|व्याख्यानों]] और [[प्रवचन|प्रवचनों]] को इतना अधिक सराहा गया कि मुम्बई के माधवबाग में एक अन्य संस्था ‘आर्य स्वधर्मोदय सभा’ में भी आपकेउनके [[व्याख्यान]] और [[गीता]] पर प्रवचन होने लगे, जिन्हें सुनने विद्वज्जनों, धर्म-संस्कृति प्रेमियों व रसिक [[भक्तों]] के अतिरिक्त देवकरण नानजी, कृष्णदास नाथा, मथुरादास गोकुलदास, [[हनुमान प्रसाद पोद्दार|पं. हनुमान प्रसाद पोद्दार]] जैसे सम्मानित व्यक्ति भी आते थे। यहीं कई बार [[महात्मा गाँधी]], [[चितरंजन दास|चितरंजनदास]], [[चक्रवर्ती राजगोपालाचारी|राजगोपालाचारी]] जैसे राष्ट्रीय नेताओं से आपकाउनका संपर्क एवं संवाद होता था। आपवे पटना की चतुःसम्प्रदाय [[वैष्णव]] महासभा, [[वर्णाश्रम]] स्वराज्यसंघ, तथा [[सनातन धर्म]]सभाओं में भी अपनी वैदुष्यपूर्ण वक्तृता से सभी विद्वानों के आदर पात्र थे, जिसके कारण [[काशी]] में होनेवाली अखिल भारतीय [[ब्राह्मण]] महासम्मलेन में आपकोउन्हें सभा का नियामक बनाया गया।
[[मुम्बई]] से आपवे सन् 1930 में महाराणा [[मेवाड़]] तथा [[नाथद्वारा]] के तत्कालीन तिलकायित गोस्वामी गोवर्धनलाल जी के निमंत्रण पर नाथद्वारा आये, जहाँ वे मृत्युपर्यन्त 1943 तक सुप्रसिद्ध विद्याविभाग के अध्यक्ष रहे। आपकेउनके एकमात्र पुत्र देवर्षि व्रजनाथ शास्त्री थे, जो आपकेउनके निधन के पश्चात् कालांतर में विद्याविभागाध्यक्ष बने। उन्होंने सन् 1936 में अन्य सहयोगियों के साथ मिल कर [[नाथद्वारा]] में ‘साहित्य मण्डल’ नामक संस्था की स्थापना की और इस सम्बन्ध में वे काफ़ी समय तक [[मदनमोहन मालवीय|पं. मदनमोहन मालवीय]] के सम्पर्क में भी रहे। अपने जीवन के सन्ध्याकाल में वे [[श्रीनाथजी]] के दर्शनों का लाभ लेते थे और उनके विभिन्न श्रृंगारों पर [[संस्कृत]] में अत्यंत हृदयस्पर्शी व भावपूर्ण साहित्यिक [[श्लोक]] लिखते थे।
 
देवर्षि रमानाथ शास्त्री ने सन् 1936 में अन्य सहयोगियों के साथ मिल कर [[नाथद्वारा]] में ‘साहित्य मण्डल’ नामक संस्था की स्थापना की और इस सम्बन्ध में वे काफ़ी समय तक [[मदनमोहन मालवीय|पं. मदनमोहन मालवीय]] के सम्पर्क में भी रहे। अपने जीवन के सन्ध्याकाल में आप [[श्रीनाथजी]] के दर्शनों का लाभ लेते थे और उनके विभिन्न श्रृंगारों पर [[संस्कृत]] में अत्यंत हृदयस्पर्शी व भावपूर्ण साहित्यिक [[श्लोक]] लिखते थे।
== सम्मान ==
देवर्षि रमानाथ शास्त्री [[श्रीमद्भागवत]] के अद्भुत विद्वान् तथा कथावाचक थे जिन्हें लगभग 20 बार श्रीमद्भागवत के 108 पारायणों में मुख्यासन पर आसीन करके सम्मानित किया गया। प्रसिद्ध मासिकपत्र ‘कल्याण’ के संपादक स्व. [[हनुमान प्रसाद पोद्दार]] ([[गीताप्रेस]] गोरखपुर) ने श्रीमद्भागवत के प्रकाशन में आपकीउनकी विद्वत्ता को स्मरण करते हुए आपकाउनका सादर उल्लेख किया है। मुंबई में राजा बलदेवदास बिड़ला ने भी आपकोउन्हें मुख्य व्यास मान कर सम्मानित किया था। [[पुष्टिमार्गीय वैष्‍णव सम्‍प्रदाय|पुष्टिमार्ग सम्प्रदाय]] के तलस्पर्शी विद्वानों में आपकाउनका नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है।
 
देवर्षि रमानाथ शास्त्री [[श्रीमद्भागवत]] के अद्भुत विद्वान् तथा कथावाचक थे जिन्हें लगभग 20 बार श्रीमद्भागवत के 108 पारायणों में मुख्यासन पर आसीन करके सम्मानित किया गया। प्रसिद्ध मासिकपत्र ‘कल्याण’ के संपादक स्व. [[हनुमान प्रसाद पोद्दार]] ([[गीताप्रेस]] गोरखपुर) ने श्रीमद्भागवत के प्रकाशन में आपकी विद्वत्ता को स्मरण करते हुए आपका सादर उल्लेख किया है। मुंबई में राजा बलदेवदास बिड़ला ने भी आपको मुख्य व्यास मान कर सम्मानित किया था। [[पुष्टिमार्गीय वैष्‍णव सम्‍प्रदाय|पुष्टिमार्ग सम्प्रदाय]] के तलस्पर्शी विद्वानों में आपका नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है।
 
== विविध विधाओं में निपुणता ==
प्रभावशाली व्यक्तित्व वाले देवर्षि रमानाथ शास्त्री असाधारण प्रतिभा के धनी थे, जिन्होंने कई क्षेत्रों में महारत हासिल की। मुम्बई के जे. जे. स्कूल ऑफ़ आर्ट्स के सौजन्य से आपनेउन्होने तैल तथा जल रंगों से [[चित्रकला]] में अद्भुत निपुणता प्राप्त की तथा ‘लन्दन स्कूल ऑफ़ पेन्टिंग’ की शैली में अनेक [[तैलचित्रण|तैलचित्रों]] की रचना की। आपकेउनके कई अविस्मरणीय तैलचित्र आज भी अनेक दीर्घाओं तथा बैठकों की शोभा बढ़ा रहे हैं। आपकेउनके द्वारा बनाये गए चित्रों – “शेरों का स्वराज्य”, शार्दूल विक्रम”, “राधा माधव” जैसे कई चित्रों ने बहुत प्रसिद्धि पायी, जिन्हें ‘नॉट फ़ॉर कम्पीटिशन’ का बोर्ड लगा कर प्रदर्शित किया जाता था। आपवे [[संगीत]], [[छायाचित्र|फ़ोटोग्राफी]] तथा [[क्रिकेट]] का भी शौक रखते थे और [[शतरंज]] के माहिर खिलाड़ी थे। मुंबई के प्रसिद्ध हिन्दू जिमखाना क्लब के सदस्य की हैसियत से आपवे यूरोपियाई शतरंज खिलाड़ियों के साथ स्पर्धा भी करते थे और अक्सर विजयी रहते थे।
प्रभावशाली व्यक्तित्व वाले देवर्षि रमानाथ शास्त्री असाधारण प्रतिभा के धनी थे, जिन्होंने कई क्षेत्रों में महारत हासिल की। मुम्बई के जे. जे. स्कूल ऑफ़ आर्ट्स के सौजन्य से आपने तैल तथा जल रंगों से [[चित्रकला]] में अद्भुत निपुणता प्राप्त की तथा ‘लन्दन स्कूल ऑफ़ पेन्टिंग’ की शैली में अनेक [[तैलचित्रण|तैलचित्रों]] की रचना की। आपके कई अविस्मरणीय तैलचित्र आज भी अनेक दीर्घाओं तथा बैठकों की शोभा बढ़ा रहे हैं। आपके द्वारा बनाये गए चित्रों – “शेरों का स्वराज्य”, शार्दूल विक्रम”, “राधा माधव” जैसे कई चित्रों ने बहुत प्रसिद्धि पायी, जिन्हें ‘नॉट फ़ॉर कम्पीटिशन’ का बोर्ड लगा कर प्रदर्शित किया जाता था। आप [[संगीत]], [[छायाचित्र|फ़ोटोग्राफी]] तथा [[क्रिकेट]] का भी शौक रखते थे और [[शतरंज]] के माहिर खिलाड़ी थे। मुंबई के प्रसिद्ध हिन्दू जिमखाना क्लब के सदस्य की हैसियत से आप यूरोपियाई शतरंज खिलाड़ियों के साथ स्पर्धा भी करते थे और अक्सर विजयी रहते थे।
 
==प्रमुख कृतियाँ==
== देवर्षि रमानाथ शास्त्री द्वारा प्रणीत प्रमुख ग्रन्थ: ==
.*शुद्धाद्वैत दर्शन (द्वितीय भाग), प्रकाशक - बड़ा मन्दिर, भोईवाड़ा, मुंबई, 1917 <br />
.*रासलीला-विरोध परिहार, प्रकाशक - विद्याविभाग, नाथद्वारा, 1932<br />
.*ब्रह्मसम्बन्ध अथवा पुष्टिमार्गीय दीक्षा, प्रकाशक - सनातन भक्तिमार्गीय साहित्य सेवा सदन, मथुरा, सन् 1932<br />
.*श्रीकृष्णावतार किं वा परब्रह्म का आविर्भाव, प्रकाशक - शुद्धाद्वैत पुष्टिमार्गीय सिद्धान्त कार्यालय, नाथद्वारा, 1935<br />
.*भक्ति और प्रपत्ति का स्वरूपगत भेद, प्रकाशक - शुद्धाद्वैत सिद्धान्त कार्यालय, नाथद्वारा, 1935<br />
.*श्रीकृष्णाश्रय, प्रकाशक - पुष्टिसिद्धान्त भवन, परिक्रमा, नाथद्वारा, 1938<br />
.*ईश्वर दर्शन, प्रकाशक - विद्याविभाग, नाथद्वारा, 1939<br />
.*पुष्टिमार्गीय स्वरूपसेवा, प्रकाशक - विद्याविभाग, नाथद्वारा, 1943<br />
.*श्रीकृष्णकी लीलाओं पर शास्त्रीय प्रकाश (प्रथम भाग), विद्याविभाग, नाथद्वारा, 1944<br />
.*ब्रह्मवाद, प्रकाशक - पुष्टिमार्गीय कार्यालय, नाथद्वारा, 1945<br />
.*पुष्टिमार्गीय नित्यसेवा स्मरण, प्रकाशक - श्रीवल्लभाचार्य जनकल्याण प्रन्यास, मथुरा, 1989<br />
.*अनुग्रह मार्ग (सुबोधिनीजी के अनुसार), प्रकाशक - श्रीवल्लभाचार्य जनकल्याण प्रन्यास, मथुरा, 1994<br />
.*शुद्धाद्वैत दर्शन (तीन भाग), प्रकाशक - विद्या विभाग, नाथद्वारा , नया संस्करण, 2000<br />
 
उक्त ग्रंथों के अतिरिक्त आपकेउनके द्वारा लिखे अन्य प्रमुख ग्रंथों में “सिद्धांतरहस्यविवृत्ति”, “शुद्धाद्वैत सिद्धान्तसार” (हिन्दी – गुजराती), “त्रिसूत्री”, “गीता के सिद्धान्तों पर शांकर एवं वाल्लभ मत की तुलना”, “षोडशग्रन्थ टीका”, “स्तुतिपारिजातम्” (संस्कृत में), “दर्शनादर्शः” (संस्कृत में), “गीतातात्पर्य”, “श्रीमद्वल्लभाचार्य”, “भगवानक्षरब्रह्म”, “श्रीमद्भगवतगीता (हिन्दी अनुवाद)”, “राधाकृष्णतत्व”, “सुबोधिनीजी का हिन्दी विशद अनुवाद”, “छान्दोग्योपनिषद् भाष्यं (संस्कृत में) आदि ग्रन्थ भी सम्मिलित हैं। आपनेउन्होने सन् 1942 में “गीता की समालोचना” नामक ग्रन्थ लिखना प्रारम्भ किया जो आपकेउनके देहावसान के केवल एक सप्ताह पहले ही 1943 में पूरा हुआ।
देवर्षि रमानाथ शास्त्री ने चालीस से अधिक ग्रन्थ लिखे हैं जिनमें प्रमुख हैं -<br />
==निधन==
.शुद्धाद्वैत दर्शन (द्वितीय भाग), प्रकाशक - बड़ा मन्दिर, भोईवाड़ा, मुंबई, 1917 <br />
देवर्षि रमानाथ शास्त्री का देहावसान [[नाथद्वारा]] में सन् 1943 में 65 वर्ष की आयु में हुआ।
.रासलीला-विरोध परिहार, प्रकाशक - विद्याविभाग, नाथद्वारा, 1932<br />
.ब्रह्मसम्बन्ध अथवा पुष्टिमार्गीय दीक्षा, प्रकाशक - सनातन भक्तिमार्गीय साहित्य सेवा सदन, मथुरा, सन् 1932<br />
.श्रीकृष्णावतार किं वा परब्रह्म का आविर्भाव, प्रकाशक - शुद्धाद्वैत पुष्टिमार्गीय सिद्धान्त कार्यालय, नाथद्वारा, 1935<br />
.भक्ति और प्रपत्ति का स्वरूपगत भेद, प्रकाशक - शुद्धाद्वैत सिद्धान्त कार्यालय, नाथद्वारा, 1935<br />
.श्रीकृष्णाश्रय, प्रकाशक - पुष्टिसिद्धान्त भवन, परिक्रमा, नाथद्वारा, 1938<br />
.ईश्वर दर्शन, प्रकाशक - विद्याविभाग, नाथद्वारा, 1939<br />
.पुष्टिमार्गीय स्वरूपसेवा, प्रकाशक - विद्याविभाग, नाथद्वारा, 1943<br />
.श्रीकृष्णकी लीलाओं पर शास्त्रीय प्रकाश (प्रथम भाग), विद्याविभाग, नाथद्वारा, 1944<br />
.ब्रह्मवाद, प्रकाशक - पुष्टिमार्गीय कार्यालय, नाथद्वारा, 1945<br />
.पुष्टिमार्गीय नित्यसेवा स्मरण, प्रकाशक - श्रीवल्लभाचार्य जनकल्याण प्रन्यास, मथुरा, 1989<br />
.अनुग्रह मार्ग (सुबोधिनीजी के अनुसार), प्रकाशक - श्रीवल्लभाचार्य जनकल्याण प्रन्यास, मथुरा, 1994<br />
.शुद्धाद्वैत दर्शन (तीन भाग), प्रकाशक - विद्या विभाग, नाथद्वारा , नया संस्करण, 2000<br />
 
=== संदर्भ-स्रोत ===
उक्त ग्रंथों के अतिरिक्त आपके द्वारा लिखे अन्य प्रमुख ग्रंथों में “सिद्धांतरहस्यविवृत्ति”, “शुद्धाद्वैत सिद्धान्तसार” (हिन्दी – गुजराती), “त्रिसूत्री”, “गीता के सिद्धान्तों पर शांकर एवं वाल्लभ मत की तुलना”, “षोडशग्रन्थ टीका”, “स्तुतिपारिजातम्” (संस्कृत में), “दर्शनादर्शः” (संस्कृत में), “गीतातात्पर्य”, “श्रीमद्वल्लभाचार्य”, “भगवानक्षरब्रह्म”, “श्रीमद्भगवतगीता (हिन्दी अनुवाद)”, “राधाकृष्णतत्व”, “सुबोधिनीजी का हिन्दी विशद अनुवाद”, “छान्दोग्योपनिषद् भाष्यं (संस्कृत में) आदि ग्रन्थ भी सम्मिलित हैं। आपने सन् 1942 में “गीता की समालोचना” नामक ग्रन्थ लिखना प्रारम्भ किया जो आपके देहावसान के केवल एक सप्ताह पहले ही 1943 में पूरा हुआ।
 
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=== स्रोत ===
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1. व्रजनाथ शास्त्री द्वारा देवर्षि रमानाथ शास्त्री का विस्तृत परिचय, ‘श्रीकृष्णलीलाओं पर शास्त्रीय प्रकाश’ में, प्रकाशक- विद्याविभाग, नाथद्वारा, 1944.<br />
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5. “ब्रह्मवाद”, प्रकाशक - पुष्टिमार्गीय कार्यालय, नाथद्वारा, 1945.<br />
 
[[श्रेणी:1878 में जन्मे लोग]]
 
[[श्रेणी:विद्वान्]]
[[श्रेणी:सनातन धर्मज्ञ]][[श्रेणी:भागवत कथावाचक]][[श्रेणी:शुद्धाद्वैत विवेचक]][[श्रेणी:पुष्टिमार्गीय विद्वान्]][[श्रेणी:राजस्थान के लोग]][[श्रेणी:नाथद्वारा के लोग]][[श्रेणी:1878 जन्म]][[श्रेणी:1943 मृत्यु]]
[[श्रेणी:राजस्थान के लोग]]
[[श्रेणी:१९४३ मृत्यु]]