"ययाति": अवतरणों में अंतर

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पंक्ति 12:
तृष्णा न जीर्णा वयमेव जीर्णाः ॥
 
अर्थात, हमने भोग नहीं भुगते, बल्कि भोगों ने ही हमें भुगता है; हमने तप नहीं किया, बल्कि हम स्वयं ही तप्त हो गये हैं; काल समाप्त नहीं हुआ हम ही समाप्त हो गये; तृष्णा जीर्ण नहीं हुई, पर हम ही जीर्ण हुए हैं !
 
== सन्दर्भ ==
"https://hi.wikipedia.org/wiki/ययाति" से प्राप्त