"विदिशा का इतिहास": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:EranVidishaCoin.jpg|thumb|]] [[विदिशा]] [[भारतवर्ष]] के प्रमुख प्राचीन नगरों में एक है, जो [[हिंदू]] तथा [[जैन]] धर्म के समृद्ध केन्द्र के रुप में जानी जाती है। जीर्ण अवस्था में बिखरे पड़े कई खंडहरनुमा इमारतें यह बताती है कि यह क्षेत्र ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक दृष्टि कोण से मध्य प्रदेश का सबसे धनी क्षेत्र है। यह अहीरवाडा के अंदर आता है। धार्मिक महत्व के कई भवनों को मुस्लिम आक्रमणकारियों ने या तो नष्ट कर दिया या मस्जिद में बदल दिया। [[महिष्मती]] ([[महेश्वर]]) के बाद विदिशा ही इस क्षेत्र की सबसे पुराना नगर माना जाता है। महिष्मती नगरी के ह्रास होने के बाद विदिशा को ही पूर्वी [[मालवा]] की राजधानी बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इसकी चर्चा वैदिक साहित्यों में कई बार मिलता है।
 
== प्राचीन इतिहास ==
[[चित्र:EranTypeCoin2ndCenturyBCE.jpg|thumb|]]
प्राचीनकाल में यहयहाँ यदुवंशीययदुवंशी राजाऔरहे की नगरी थी ।है। आमीरों का अधिपत्य था, वे बड़े सशक्त व बलशाली थे। मान्यता है कि वैदिक काल में किसी आर्यदेवी ने यहाँ के महिष नामक राजा को पराजित किया था, अतः आज भी यहाँ के सभी गाँवों में महिषासुर या भैंसासुर की पूजा होती है। श्रीमद देवी भागवत पुराण के अनुसार, वह देवी ही [[दुर्गा।महिषासुर मर्दनी]] कहलायी। सूर्यवंशी राजा सगर और श्री[[राम]] के समय से वहाँ [[इक्ष्वाकु वंश]] के अधिपत्य का पता चलता है। कहा जाता है कि श्रीराम के अनुज [[शत्रुघ्न]] ने [[अश्वमेघ]] यज्ञ के दौरान हराकर यह क्षेत्र अपने पुत्र शत्रुघाती या यूपकेतु (कहीं- कहीं सुबाहु) को सौप दिया।
 
[[स्कंद पुराण]] के अनुसार वाल्मिकी ॠषि, जो अग्नि शर्मा के नाम से बताये गये हैं, इसी क्षेत्र के निवासी थे। वही शंख ॠषियों के सानिध्य में रहकर वे प्रसिद्ध महर्षि बने।