"देवर्षि रमानाथ शास्त्री": अवतरणों में अंतर

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| occupation = कवि, लेखक और विद्वान
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'''देवर्षि रमानाथ शास्त्री''' (अंग्रेज़ी में- Devarshi Ramanath Shastri, जन्म: 1878, - मृत्यु: 1943) [[संस्कृत भाषा]] के कवि तथा [[वल्लभाचार्य|श्रीमद्वल्लभाचार्य]] द्वारा प्रणीत [[पुष्टिमार्ग]] एवं शुद्धाद्वैत दर्शन के विद्वान् थे। उन्होने [[हिन्दी]], [[ब्रजभाषा]] तथा [[संस्कृत]] में प्रचुर लेखन किया है। वे बाल्यावस्था से ही [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]] में कविता करने लग गए थे और उसी दौरान प्रसिद्ध मासिक पत्र ‘संस्कृत रत्नाकर’ में उनकी प्रारंभिक कविता ‘दुःखिनीबाला’ छपी थी। उन्होनेउनका जन्म आन्ध्र से [[हिन्दीजयपुर]], आये [[ब्रजभाषाकृष्ण यजुर्वेद|कृष्णयजुर्वेद]] तथाकी तैत्तरीय शाखा अध्येता वेल्लनाडु ब्राह्मण विद्वानों के देवर्षि परिवार की विद्वत् परम्परा में सन् 1878 (विक्रम संवत् 1936, श्रावण शुक्ल पञ्चमी) को [[संस्कृतजयपुर]] में प्रचुरहुआ। लेखनउनके कियापिता है।का नाम श्री द्वारकानाथ तथा माता का नाम श्रीमती जानकी देवी था। वे संस्कृत के उद्भट विद्वान् व युगपुरुष कविशिरोमणि [[भट्ट मथुरानाथ शास्त्री]] के अग्रज थे।
 
==प्रारंभिक जीवन और शिक्षा==
शास्त्रीजी का जन्म आन्ध्र से [[जयपुर]] आये [[कृष्ण यजुर्वेद|कृष्णयजुर्वेद]] की तैत्तरीय शाखा अध्येता वेल्लनाडु ब्राह्मण विद्वानों के देवर्षि परिवार की विद्वत् परम्परा में सन् 1878 (विक्रम संवत् 1936, श्रावण शुक्ल पञ्चमी) को [[जयपुर]] में हुआ। उनके पिता का नाम श्री द्वारकानाथ तथा माता का नाम श्रीमती जानकी देवी था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा [[जयपुर]] के महाराजा संस्कृत कॉलेज में हुई और 1896 में 18 वर्ष की आयु में वे उच्च शिक्षा प्राप्त करने [[वाराणसी]] चले गए। उन्होने 1903 में [[मुम्बई]] को अपना कार्यक्षेत्र चुना। कालबादेवी रोड पर उन दिनों नारायण मूलजी की पुस्तकों की दुकान हुआ करती थी जहाँ सायंकाल को विद्वान लोग शास्त्रीय चर्चा के लिए इकट्ठे होते थे। कई बार विद्वानों में [[शास्त्रार्थ]] भी हो जाता था। ऐसे ही एक शास्त्रार्थ के दौरान उनकी भेंट वहाँ के एक सम्माननीय व्यक्ति सेठ चत्तामुरारजी से हो गई जो उनकी विद्वत्ता और [[शास्त्रार्थ]] में उनकी पाण्डित्यपूर्ण वाग्मिता से अत्यंत प्रभावित हुए। उनके आग्रह पर शास्त्रीजी अनन्तवाड़ी में रहने लगे जहाँ वे [[श्रीमद्भागवत]] का अनुष्ठान करते। कुछ समय के बाद उन्हें श्रीगोकुलाधीश मन्दिर में व्यासगद्दी मिल गयी। मन्दिर के गोस्वामी गोवर्धनलालजी महाराज की अनुशंसा से वे हनुमान गली में स्थित तत्कालीन वसनजी मनजी संस्कृत विद्यालय में प्रधानाध्यापक हो गये।
 
==पुष्टिमार्ग सम्प्रदाय को योगदान==
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[[श्रेणी:हिन्दू धर्म]]
[[श्रेणी:संस्कृत साहित्यकार]]
[[श्रेणी:संस्कृत सम्पादक]]
[[श्रेणी:संस्कृत कवि]]
[[श्रेणी:पुष्टिमार्ग]]
[[श्रेणी:जयपुर के लोग]]
[[श्रेणी:संस्कृत साहित्य]]